Dr. Kumari Basanti
भाषा मानव की जीभ है. जीभ के द्वारा ही मनुष्य भावों, विचारों, चेतना, संस्कृति और जीवन दर्शन का प्रकाशन होता है. भाषा के बिना हृदय का शूल, दुःख-दर्द नहीं मिटता है. यदि भाषा नहीं रहेगी, तो मनुष्य अपने भावों और विचारों को प्रकट नही कर पाने के कारण पागल हो जाएगा. नागपुरी भाषा झारखंड प्रदेश की प्राचीनतम भाषा में से एक है. सदानी और सादरी इसके दूसरे पर्यायवाची शब्द हैं. यह मूल रूप से सदानों की मातृभाषा है. ये सदान झारखंड के सदावासी या मूलनिवासी हैं. सदान कई जातियों का एक समुदाय है. भाषा विज्ञान की दृष्टि से नागपुरी आर्य परिवार की भाषा है. यह आदिवासी और मूलवासी सदान के बीच संपर्क भाषा है. यह प्राचीन काल से इन दोनों जातियों की संस्कृति, बोली, वाणी, गीत, नृत्य, राग, ताल, लय, परंपरा, आदर्श, और देसज औषधियों का समवहन करती आ रही है. इसमें लोक साहित्य का अकूत भंडार है. लेकिन इसके सबसे महत्वपूर्ण अंश इसके लोक गीत हैं, जो अत्यंत संवेदनशील, समावेशी, सरल, सुगम्य और विषय की दृष्टि से विराट, विस्तृत एवं चिरंजीवी है.
रोजगार के अवसर नहीं
नागपुरी अब विलुप्ति के कगार की ओर जा रही है. यह राजनीति का शिकार बन गई है. यह राज्य की द्वितीय राज भाषा जरूर है, लेकिन इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने का सौभाग्य नहीं मिला. नागवंशी महाराजाओं के शासनकाल में यह उनकी राजभाषा जरूर रही थी किन्तु जिस प्रकार मिथिला राजवंश ने मैथिली भाषा को राजनीतिक संरक्षण दिया, उस प्रकार का संरक्षण नागपुरी भाषा नहीं मिला. रांची विश्वविद्यालय, डॉ श्याम प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्याल में इसका पठन-पाठन जरूर होता है, किन्तु इसके पाठ्य पुस्तकों और संदर्भ ग्रंथों का प्रकाशन, प्रसारण, संचयन और संरक्षण की कोई सम्यक व्यवस्था नहीं है.
अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के कारण नागपुरी पढ़ने वाले बच्चों की संख्या पर अनुचित असर पड़ रहा है. हालांकि सरकार प्राथमिक, माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक, इंटर, स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर पठन-पाठन के लिए प्रत्यनशील है, परन्तु पढ़ाने के लिए शिक्षकों की व्यवस्था नहीं है. परिवार और गांव में भी अधिकांश लोग अपनी मातृभाषा बोलने से कतराते हैं, शर्माते हैं. सबसे बड़ी बात है इसे रोजगार से नहीं जोड़ा गया है, जो वर्तमान समय की जरूरत है.
नागपुरी लोक गीतों, गीतों, कथाओं, मुहावरों, पहेलियों और कहावतों का प्रचलन बंद होता जा रहा है. हालांकि भाषा के प्रति चिंतनशील, विद्वान साहित्यकार इसको जीवंत रखने का प्रयास कर रहे हैं. नागपुरी भाषा अपनी क्षेत्रीय विविधता, मानकीकरण की समस्या, अपने निजी स्वार्थ, आपसीफूट और सर्वमान्य नेतृत्व का अभाव का संकट भी झेल रही है. अबतक इसके लिए झारखंड में साहित्य अकादमी की स्थापना नहीं हुई है. नागपुरी के लिए एक दूसरी समस्या आ खड़ी हुई है. कुछ लोग मूल भाषा को नागपुरी और सादरी को दो भाषा में बांट कर देख रहे हैं और लोगों में फूट डाल रहे हैं. जबकि नागपुरी और सादरी दोनों एक ही भाषा है. नागपुरी के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए समाज, सरकार, सोशल मीडिया और नागपुरी भाषा-भाषियों को सदा प्रत्यनशील रहना चाहिए.