Manoj Choube
Pakur : पाकुड़ (Pakur) डीसी ऑफिस के सामने शहीद सिदो कान्हूं पार्क में खड़ा 166 वर्ष पुराना मार्टिलो टॉवर आज भी अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासियों की पहली लड़ाई संथाल हूल की गाथा कह रहा है. आजादी की लड़ाई में आदिवासी योद्धाओं से छुपकर मुकाबला के लिए अंग्रेजों ने वर्ष 1856 में इस टॉवर का निर्माण कराया था. इतिहास के अनुसार, वैसे तो आजादी की पहली लड़ाई 18 57 में हुई थी, लेकिन इससे पहले ही झारखंड के आदिवासियों ने 1855 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया था. इसकी शुरुआत साहिबगंज के भोगनाडीह से 30 जून 1855 को हुई थी, जिसका नेतृत्व चार भाइयों सिदो, कान्हूं, चांद और भैरव ने किया था.
अंग्रेजी सरकार की नजर संथाल परगना के जंगलों, खेती-बाड़ी व वहां निवास करने वाली संथाल आदिवासियों व पहाड़िया समुदाय पर थी. यहां के लोग खेती-बाड़ी कर अपना जीवन यापन करते थे और बिना लगान दिए ही खुशहाल जिंदगी जी रहे थे. यह ईस्ट इंडिया कंपनी को रास नहीं आया और आदिवासियों को काबू में लाकर उनसे लगान वसूलने की योजना बनाई. जमींदारों-सामंतों को अपने पक्ष में मिलाया और लोगों से जबरन लगान वसूलना शुरू कर दिया.
400 गांवों के आदिवासियों को एकजुट कर किया था विद्रोह
लगान देने से मना करने पर जमींदार पहाड़िया आदिवासियों के साथ अत्याचार करने लगे. इससे लोगों में धीरे-धीरे अंग्रेजों के खिलाफ असंतोष बढ़ता गया. चार भाइयों सिदो, कान्हूं, चांद और भैरव ने संथाल के आदिवासी पहाड़िया समाज को एकजुट किया. तय रणनीति के तहत 30 जून 1855 को 400 गांवों के 50 हजार आदिवासियों व पहाड़ियों के साथ बैठक कर अंग्रेजी सरकार को लगान नहीं देने की घोषणा कर दी. लगान वसूलने के लिए अंग्रेजों द्वारा नियुक्त जमींदारों के खिलाफ भी विद्रोह का बिगुल फूंक दिया. करीब एक साल बाद 12 जुलाई 1856 को चारों भाई अपने समर्थकों के साथ राजमहल की ओर कूच कर गए और सभाकर जमींदारों को फांसी पर लटका कर मार डाला. इसके बाद पूरा जत्था पाकुड़ पहुंच गया.
अंग्रेज अधिकारियों ने 24 घंटे में खड़ा कर दिया टॉवर
पाकुड़ पटना-हावड़ा लूप रेल लाइन पर स्थित था. इसीलिए ब्रिटिश सरकार के बड़े अधिकारी, इंजीनियर व कर्मचारी पाकुड़ में ही रहते थे. ब्रिटिश अधिकारी सर मार्टिन को पता चुका था कि उनके खिलाफ आदिवासी संथाल व पहाड़िया समुदाय के लोग विद्रोह कर चुके हैं. उसने अपने सैनिकों को सुरक्षा प्रदान करने और विद्रोह को दबाने की रणनीति बनाई. अंग्रेजों को आदिवासियों के हमले से बचाने और विद्रोहियों पर छिपकर हमले के लिए 24 घंटे में टॉवर खड़ा कर दिया. टॉवर में कई सुराग बनाए गए, ताकि अंग्रेज सैनिक अंदर छिपकर आदिवासियों पर गोलियां दाग सकें और आदिवासियों के तीर सैनिकों को वेध नहीं पाएं. दोनों ओर से लड़ाई छिड़ गई. आदिवासियों ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया. टॉवर में छिपने के बावजूद बड़ी संख्या में अंग्रेज सैनिक हताहत हुए. संथाल विद्रोह के इतिहास में यह घटना महत्वपूर्ण मानी जाती है. यह मार्टिलो टॉवर आज भी आजादी की पहली लड़ाई संथाल हूल का प्रतीक बनकर खड़ा है.
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