Bermo: बोकारो के गोमिया प्रखंड अंतर्गत मनरेगा मजदूरों का 3 करोड़ 60 लाख रुपये का भुगतान बकाया है. ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले मनरेगा मजदूरों का भुगतान नहीं होने से उनकी परेशानी बढ़ गई है. इस हिसाब से तो जिलेभर में कई करोड़ का बकाया होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. मनरेगा भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है. सरकार ने इस योजना को लाकर देश के 70 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों में बसने वाले ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार देने की व्यवस्था की गई. लेकिन इन दिनों गोमिया में इस योजना के तहत किये गए काम के एवज में उन्हें मज़दूरी नहीं मिल रही है. जिसके कारण मजदूर मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं.
अप्रैल 2021 से मनरेगा मद की मजदूरी का भुगतान लंबित
इस संबंध गोमिया बीपीओ पवन गुप्ता ने बताया कि 31 मार्च 2021 तक मज़दूरों का भुगतान किया गया है. इसके बाद राशि नहीं रहने के कारण भुगतान नहीं किया जा रहा है. सरकार द्वारा मनरेगा योजना में आवंटन मिलते ही मजदूरों का बकाया भुगतान किया जा सकेगा. कुआं, डोबा, दीदी बाड़ी और टीसीबी योजना, प्रधानमंत्री आवास, आंगनबाड़ी भवन निर्माण के तहत प्रखंड के प्रत्येक पंचायत में मजदूरों से काम कराया गया है. इन योजनाओं के कार्यान्वयन के कारण गांव में ही ग्रामीणों को रोजगार के साधन मिलने लगा था. लॉकडाउन के बाद मजदूर को अपने घर पर ही काम मिल रहा था. लेकिन मज़दूरी भुगतान नहीं होने के कारण उनके सामने आर्थिक संकट पैदा हो गया. बेरोजगारी की समस्या विकराल रूप ले चुकी है. महामारी के कारण मजदूर काम के लिए बाहर नहीं गए. सरकार की भी यही मंशा थी कि ग्रामीण क्षेत्र के किसान एवं मजदूर को गांव में ही रोजगार मिले.
बकाया भुगतान नहीं होने से मजदूरों की आर्थिक स्थिति खराब
मनरेगा कानून के तहत जो मजदूर काम मांगता है. यदि उसे काम नहीं दिया गया तो बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान है. लेकिन यहां इस कानून का लाभ मजदूरों को नहीं मिल रहा है. गोमिया प्रखंड में कुल 36 पंचायत हैं. जिसमें चार पांच पंचायतों को छोड़ दें तो अमूमन सभी पंचायत ग्रामीण क्षेत्रों में आते हैं. पिछले दिनों सरकार की इस योजना अंतर्गत प्रत्येक पंचायत में कम से कम दो सौ मानव दिवस सृजन करने का लक्ष्य रखा गया था. ताकि हर बेरोजगार को काम मिल सके. इसी उद्देश्य के तहत कुआं, टीसीबी, दीदी बाड़ी योजना के अलावा मिट्टी के अन्य तरह के काम कराये गए. इन कार्यों की वजह से ग्रामीणों को गांव में ही काम मिल गया और उनका पलायन नहीं हुआ. लेकिन पिछले अप्रैल माह से इन मजदूरों का बकाया मजदूरी का भुगतान नहीं होने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई है.