Colombo : अपने इतिहास के सबसे खराब आर्थिक दौर का सामना कर रहे श्रीलंका के पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को गुरुवार को देश का अगला प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया गया है. रानिल विक्रमसिंघे के पास 225 सदस्यीय संसद में केवल एक सीट है. यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के 73 वर्षीय नेता विक्रमसिंघे ने बुधवार को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे से बात की थी. सूत्रों के अनुसार सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी), विपक्षी समगी जन बालावेगाया (एसजेबी) के एक धड़े और अन्य कई दलों ने संसद में विक्रमसिंघे के बहुमत साबित करने के लिए अपना समर्थन दिया है.
अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी जुटा सकते हैं
विक्रमसिंघे को दूरदृष्टि वाली नीतियों के साथ अर्थव्यवस्था को संभालने वाले नेता के तौर पर जाने जाते हैं. उन्हें श्रीलंका का ऐसा राजनेता माना जाता है, जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी जुटा सकते हैं. श्रीलंका 1948 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से सबसे बुरे आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है.
चार बार प्रधानमंत्री रह चुके विक्रमसिंघे
यूनाइटेड नेशनल पार्टी के 73 वर्षीय नेता विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने प्रधानमंत्री नियुक्त किया. इससे पहले दोनों ने बुधवार को बंद कमरे में बातचीत की थी. श्रीलंका के चार बार प्रधानमंत्री रह चुके विक्रमसिंघे को अक्तूबर 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने प्रधानमंत्री पद से हटा दिया था. हालांकि, दो महीने बाद ही सिरीसेना ने उन्हें इस पद पर बहाल कर दिया था.
कई दलों ने समर्थन जताया है
सूत्रों के मुताबिक, सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी), विपक्षी समगी जन बालावेगाया (एसजेबी) के एक धड़े और अन्य कई दलों ने संसद में विक्रमसिंघे के बहुमत साबित करने के लिए अपना समर्थन जताया है. बताया गया है कि उनके पास अंतरिम प्रशासन का नेतृत्व करने के लिए क्रॉस पार्टी समर्थन है, जिसे छह महीने चलना है. यूएनपी के चेयरमैन वजीरा अभयवर्धना ने कहा है कि नए प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने के बाद विक्रमसिंघे संसद में बहुमत पाने में सक्षम हो जाएंगे. विक्रमसिंघे ने प्रधानमंत्री के तौर पर महिंदा राजपक्षे का स्थान लिया है, जिन्होंने सोमवार को इस्तीफा दिया था.
संसदीय चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत सकी थी सबसे पुरानी पार्टी यूएनपी
देश की सबसे पुरानी पार्टी यूएनपी 2020 के संसदीय चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत सकी थी और यूएनपी के मजबूत गढ़ रहे कोलंबो से चुनाव लड़ने वाले विक्रमसिंघे भी हार गए थे. बाद में वह सकल राष्ट्रीय मतों के आधार पर यूएनपी को आवंटित राष्ट्रीय सूची के माध्यम से संसद पहुंच सके. उनके साथी रहे सजीत प्रेमदासा ने उनसे अलग होकर अलग दल एसजेबी बना लिया, जो मुख्य विपक्षी दल बन गया. रिपोर्ट के अनुसार प्रेमदास ने राष्ट्रपति को एक खुला पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने देश का अगला प्रधानमंत्री बनने की इच्छा व्यक्त की थी.
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