Ranchi: असहाय पीड़ा और तन पर मैला कपड़ा. सोने के लिए फर्श और किसी को तरस आयी तो रोटी मिल जाती है. आने-जाने वाले इन्हें अननोन (लावारिस) कहते हैं. अपने बच्चों को याद कर सभी भावुक हो जाते हैं. अपनी भाषा में अपने शरीर में हो रही असहाय पीड़ा को महसूस करते हैं. जहां लोगों का इलाज होता है. वहीं इन्हें देखने वाला भी कोई नहीं है. ये लावारिस हैं, इसलिए तो इनका इलाज करना भी किसी ने मुनासिब नहीं समझा.
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रिम्स के ऑर्थोपेडिक्स विभाग के पास हैं चार लावारिस मरीज
रिम्स के ऑर्थोपेडिक्स विभाग की फर्श पर चार ऐसे मरीज हैं जिनकी सुधि लेने वाला भी कोई नहीं है. हां इनकी सुध उस वक्त जरूर ली गई थी, जब ये सड़कों पर भटक रहे थे. रहनुमा बनकर कुछ राहगीर इन्हें अस्पताल तो जरूर पहुंचा गए, लेकिन इसके बाद इन्हें देखने वाला कोई नहीं होता है. खामोश रहते हैं. घर जाना चाहते हैं, लेकिन शायद घर का पता इन्हें अब याद नहीं है.
परिजन नहीं होने के कारण अस्पताल में नहीं हो पाता है इलाज
अस्पताल में अपने मरीज का इलाज कराने आई एक महिला कहती हैं कि इनके घर वाले नहीं है, इसीलिए तो शायद इनका इलाज नहीं होता है. महिला कहती है कि इनकी हालत को देखकर तरस आती है. संभव होता है तो मदद कर देती हूं. लेकिन मैं कब तक इनकी मदद कर सकूंगी.
लावारिस मरीजों के इलाज के लिए होनी चाहिए थी व्यवस्था
रिम्स प्रबंधन को लावारिस मरीजों के इलाज के लिए कर्मियों की नियुक्ति करनी चाहिए थी, ताकि ऐसे मरीजों की बेहतर तरीके से देखभाल हो सके. लेकिन प्रबंधन में मुनासिब नहीं समझा और यह लावारिस मरीज अपनों की राह देख रहे हैं.
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