Ranchi: राज्य में अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति समुदायों के विकास के लिए आयोगों का गठन किया गया है. ये आयोग संबंधित समुदाय के विकास, उत्थान, समुदाय की आवश्यकता व सुविधा, उनके लिए चल रही योजनाओं की समीक्षा समेत अन्य बातों का ध्यान रखते हैं. साथ ही इससे संबंधित सुझाव सरकार को देते हैं. लेकिन इनमें अनुसूचित जनजाति आयोग ऐसा है, जो अपने गठन के बाद से कागजों पर ही सिमट कर रह गया है. पिछले एक साल से यह आयोग क्रियाशील होने की बाट जोह रहा है.
रघुवर सरकार ने किया था गठन
जनवरी 2019 में तत्कालीन रघुवर सरकार ने अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन किया था. फरवरी 2019 में आयोग गठन को विधानसभा से मंजूरी मिल गई. इसके बाद भी यह फाइलों में ही अटका रहा. आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन सदस्यों का चयन होना था. इनका कार्यकाल तीन वर्ष का है. आयोग गठन के बाद रघुवर सरकार अगले दस महीने तक सत्ता में रही, लेकिन अध्यक्ष सहित अन्य सदस्यों और पदाधिकारियों की नियुक्ति नहीं हुई. पिछले दस महीने से हेमंत सोरेन की सरकार है. हेमंत सरकार ने भी अभी तक आयोग को क्रियाशील बनाने की दिशा में कदम नहीं उठाया है. पदाधिकारियों के चयन के लिए अभी तक कल्याण विभाग को कोई निर्देश नहीं मिला है.
अन्य आयोग भी पड़े हैं निष्क्रिय
राज्य में अनुसूचित जाति आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, सूचना आयोग समेत कई बोर्ड-निगम निष्क्रिय पड़े हुए हैं. कहीं अध्यक्ष का पद खाली है, तो कहीं उपाध्यक्ष व सदस्य नहीं हैं. कुछ बोर्ड व निगम पर विधायकों व सत्ताधारी दल के पदाधिकारियों की नजर भी टिकी हुई है. वह भी इन जगहों पर पद पाने के लिए लालायित हैं और अपनी जगह बनाने की जुगत लगा रहे हैं. मुख्यमंत्री ने चार महीने पहले रिक्त स्थानों की सूची कैबिनेट को-आर्डिनेशन विभाग से मांगी थी. सूची सीएमओ को उपलब्ध भी करा दी गयी, लेकिन इसके बाद से मामला अटका हुआ है. नतीजन राज्य के एक दर्जन से अधिक आयोग व बोर्ड-निगम निष्क्रिय हैं.