Nilay Singh
Ranchi: हॉकी झारखंड की पहचान है जयपाल सिंह मुंडा, सिलवानुस डुंगडुंग, सुमराय टेटे, सावित्री पूर्ति, अशुंता लकड़ा से लेकर निक्की प्रधान तक सैकड़ों नाम हैं जिन्होंने देश का प्रतिनिधित्व किया है, ओलंपिक जीता है. इनमें से कईयों को हॉकी की बारीकियां सीखाने वाले और उन्हे निखारने वाले कोच द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित नरेंद्र सैनी हैं. जो मूल रूप से हरियाणा के रहने वाले हैं लेकिन इनकी कर्मभूमि झारखंड है और अपने जीवन के 22 साल झारखंड में हॉकी खिलाड़ियों को निखारने में दिए हैं. बरियातु हॉकी सेंटर, रांची में खिलाड़ियों को हॉकी की बारीकियां सीखाईं .बीच मे उनका ट्रांसफर चंडीगढ़ हो गया था लेकिन पिछले साढ़े तीन सालों से ये स्पोर्टस ऑथिरिटी ऑफ झारखंड में एडमिनिस्ट्रेटर कम चीफ कोच के रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं और मोरहाबादी के एकलव्य हॉकी ट्रेनिंग सेंटर जो कि सेंटर ऑफ एक्लीलेंसी भी है. वहां खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दे रहे हैं.
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सैनी का मानना है कि यहां बच्चे अच्छा कर रहे हैं जबकि कोरोना के कारण डेढ़ साल तक ट्रेनिंग बंद थी. उसके बाद भी महिला और पुरूष दोनों ही टीमें अच्छा कर रही हैं, लेकिन उनकी पीड़ा ये है कि उन्हे जिस भरोसे और वादे के साथ झारखंड लाया गया था वो पूरा नहीं हो रहा है, और इसे लेकर वे काफी निराश हैं. सरकार की ओर से उन्हें एक अदद गेंद तक नहीं मिली है और वे लोकल गेंद से ही प्रैक्टिस करवा रहे हैं. नरेंद्र सैनी बताते हैं कि जिस गेंद से वो प्रैक्टिस करवा रहे हैं वो ट्रेनिंग के लायक नहीं है और उसमें हिट मारने से खिलाड़ियों के हाथ झनझनाते हैं. उनका कहना है कि जो मेहनत वे कर रहे हैं उसके नतीजे से वे संतुष्ट नहीं हैं और जो सामान प्रैक्टिस के लिए मिल रहा है, उससे संतुष्ट होने का सवाल ही नहीं है. हालात ये हैं कि खिलाड़ियों को साढ़े तीन सालों में एक किट तक नहीं मिला है.
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सुविधाओं के अलावा खिलाड़ियों को संतुलित और पर्याप्त डाइट तक नहीं मिल पा रहा. उनका कहना है कि एक खिलाड़ी को कम से कम चार हजार कैलोरी प्रतिदिन डाइट चाहिए लेकिन यहां एक हजार कैलोरी भी डाइट नहीं मिल पा रहा, जिसका असर क्वालिटी पर पड़ रहा है. उन्होंने कई बार दिल्ली और चंडीगढ़ के सेंटर ऑफ एक्सीलेंसी के डाइट चार्ट दिखाए और व्यक्तिगत रूप से भी मिले लेकिन नतीजा सिफर निकला.
व्यवस्था से निराश नरेंद्र सैनी कहते हैं कि साझा के नए डायरेक्टर आने वाले हैं और वे उसका इंतजार कर रहे हैं और उन्हे उम्मीद है कि स्पोर्ट्स ऑथिरिटी ऑफ झारखंड सकारात्मक रूख अपनाएगी.
नरेंद्र सैनी की पीड़ा ये भी है कि उन्होने कई अच्छे ऑफर सिर्फ इसलिए ठुकराए क्योंकि उन्हे झारखंड से व्यक्तिगत रूप से लगाव है, लेकिन अगर स्थितियां सुधरी नहीं तो उन्हें कोई कड़ा फैसला लेने को मजबूर होना पड़ेगा.
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