Deepak Ambastha
क्वाड्रीलेटरल ग्रुप आफ नेशन्स अर्थात क्वाड की मीटिंग कल शुक्रवार को होने जा रही है. भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्राध्यक्ष इसमें भाग लेंगे. समझा जाता है कि कोरोना, वैक्सीनेशन, आर्थिक मसलों के अलावा यहां अफगानिस्तान के घटनाक्रम समेत एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता चर्चा के मुख्य विषय होंगे. इस बैठक से चीन चिंतित है और उसने चेतावनी दी है कि क्वाड की बैठक का उद्देश्य किसी देश के खिलाफ न हो,न ही क्वाड का इस्तेमाल किसी देश के हितों को चोट पहुंचाने के लिए किया जाय, चीन ने यह भी कहा है कि क्वाड जैसे संगठन का कोई मतलब नहीं है.
यह जानना अच्छा रहेगा कि क्वाड की स्थापना ही एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को नियंत्रित करने के लिए ही किया गया है. बदलते वैश्विक परिदृश्य में यह देखना जरूरी है कि अफगानिस्तान से अमेरिका का बाहर निकलना अगर उसकी हार है तो इसका दूसरा पहलू भी है कि यह अमेरिका की रणनीतिक जीत भी है, इसे ऐसे समझना बेहतर होगा कि चीन अमेरिका के अफगानिस्तान में उलझे रहने का लाभ लेकर एशिया प्रशांत क्षेत्र में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने लगा था, क्योंकि अमेरिका जब तक अफगानिस्तान में उलझा हुआ था. चीन का वह इलाका जो अफगानिस्तान से लगता है अपेक्षाकृत शांत था, इसका लाभ चीन को एशिया प्रशांत क्षेत्र में अपनी ताकत बढ़ाने में मिल रहा था, यहां तक कि वह इस क्षेत्र के देशों से दादागिरी के अंदाज में पेश आ रहा था, चीनी रवैये से भारत, जापान, इंडोनेशिया जैसे कई देश चिंतित हैं.
चीन की आक्रामकता ने ही क्वाड की अवधारणा को जन्म दिया है. एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन की दादागिरी अमेरिकी हितों को सीधी चुनौती है. अमेरिका अधिक समय तक इसे नजरंदाज नहीं कर सकता है. अफगानिस्तान से अमेरिकी वापसी देर सबेर चीन का सिर दर्द बनेगी, क्योंकि चीन आर्थिक, सामरिक और राजनीतिक कारणों से अफगानिस्तान में प्रवेश करेगा ही फिर उसके लिए अफगानिस्तान और एशिया प्रशांत क्षेत्र पर एकसाथ पकड़ बनाए रखना कठिन होगा. इस बदली हुई परिस्थिति में क्वाड की बैठक और चीन की बेचैनी को समझना कठिन नहीं है.
क्वाड की बैठक से भारत के हित बहुत अधिक जुड़े हैं, अफगानिस्तान में चीन, पाकिस्तान और तालिबान का गठजोड़ भारत की परेशानी का कारण है. वह अमेरिका जैसे देश से यह आश्वासन चाहेगा कि वह भारत के हितों की रक्षा करने में पूरी तरह से उसके साथ खड़ा रहेगा, वैसे यह मसला एकदम से एक पक्षीय भी नहीं है, अमेरिका ने जिस तरह अफगानियों को तालिबान के हाथ सौंप दिया उससे अमेरिका के मित्र देशों समेत दुनिया भर के देशों की ऊंगली उस पर उठ रही है, क्वाड की बैठक अमेरिका के लिए भी एक अवसर है दुनिया को संदेश देने का कि अमेरिका अभी भी सुपर पावर है और वह मित्रों का साथ छोड़ने वाला नहीं है.
अमेरिकी संसद में विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी, डेमोक्रेट राष्ट्रपति जो बाइडेन पर हमलावर है अमेरिका और अमेरिकी राष्ट्रपति के सामने विश्वसनीयता और साख का संकट है, राष्ट्रपति बाइडेन भी साथी देशों समेत दुनिया को एक सुपर पावर की तरह संदेश दे सकते हैं क्योंकि उन पर अपनी पार्टी समेत विपक्ष का दबाव है कि अमेरिका भारत, जापान समेत अन्य देशों को आश्वस्त करे कि वह मजबूती से उनके साथ खड़ा है. यही बात चीन को परेशान कर रही है ,क्वाड की बैठक में यदि दुनिया को कोई स्पष्ट संदेश दिया जा सका तो अफगानिस्तान से वापसी को लेकर जो किरकिरी हुई है वह कुछ कम होगी तो भारत जापान इंडोनेशिया जैसे देशों के लिए भी अंदरुनी और बाहरी संकट से निपटने की ताकत मिलेगी.