Ashok Kumar
Jamshedpur : पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) जिला के थानों में पड़ी गाड़ियों की नीलामी पिछले दो दशक से नहीं हुई है. दो साल पहले नीलामी की प्रक्रिया भी शुरू की गयी थी, लेकिन वह भी रूक गयी. विभाग के कड़े नियमों की वजह से थाने में जब्त कर रखी गयी गाड़ियों की नीलामी नहीं होने से वो सड़ रही हैं. जब्त गाड़ियों में से अधिकांश के कल-पूर्जे बेकार हो गये हैं. नियम भी ऐसा है कि केस के निर्णय के बाद ही वाहन मालिक को गाड़ी हैंडओवर किया जा सकता है या नीलामी की जा सकती है. लेकिन निर्णय आने तक गाड़ियों का मात्र ढांचा ही शेष रह जाता है. जब्त की गयी गाड़ियों पर हर किसी की नजर पड़ती है और उनके मुंह से यही बात निकलती है कि आखिर नीलामी क्यों नहीं होती है. अगर समय पर नीलामी होती, तब सरकार को राजस्व भी प्राप्त हो सकता था.
खुले आसमान के नीचे सड़ रही हैं गाड़ियां
पूर्वी सिंहभूम जिला की बात करें तो यहां के सभी थानों में खुले आसमान के नीचे ही गाड़ियां सड़ रही हैं. अगर गाड़ियों के रख-रखाव की व्यवस्था की जाती, तब गाड़ियों का अस्तित्व बच सकता था. अगर किसी केस में निर्णय आ भी गया, तो विभागीय कागजी प्रक्रिया इतनी लंबी है कि तबतक गाड़ियां सड़ जाती हैं. अपनी गाड़ी की हालत देखकर ही मालिक मुंह फेरना ही मुनासिब समझते हैं.
थाना भवन से ज्यादा जगह है कंडम गाड़ियों के लिये
थाना भवन के लिये जितनी जगह दी गयी है, उससे कहीं ज्यादा जगह कंडम गाड़ियां ले चुकी हैं. कंडम गाड़ियों को एक के ऊपर एक लाद कर रखा गया है. थाना में प्रवेश करने वाले लोग सिर्फ कंडम गाड़ियों की तरफ ही देखते हैं. इसमें से कुछ गाड़ियां नयी भी होती हैं, जिसपर नजर गड़ जाती है.
गाड़ियों के पार्ट-पूर्जे हो गये हैं खराब
थानों में जब्त गाड़ियों की बात करें तो इसमें से अधिकांश गाड़ियों के पार्ट-पूर्जे खराब हो गये हैं. वह काम के लायक नहीं है. कई गाड़ियों के तो टायर तक सड़ गये हैं. बाइक की तो रिम तक को जंग खा गयी है. अगर किसी को अपनी बाइक की पहचान करनी है तो वह भी मुश्किल ही होगी.
पार्किंग स्टैंड की तरह लगे हैं मानगो व सीतारामडेरा थाना में बाइक
शहर के मानगो और सीतारामडेरा थानों की बात करें तो इसे पार्किंग स्टैंड की तरह लगाया गया है. दोनों थाने में जगह का अभाव होने के कारण सड़क पर ही बाइक को खड़ी की गयी है. आम लोगों को तो पता ही नहीं चलेगा कि लाइन से खड़ी बाइक जब्त की गयी है या पार्किंग स्टैंड में खड़ी की गयी है.
सभी थानों में सड़ रही हैं गाड़ियां
जिले के सभी थानों में जब्त की गयी गाड़ियां सड़ रही हैं. इसके लिये जितनी जगह दी गयी है उससे कहीं ज्यादा जगह जब्त गाड़ियां ही ले चुकी हैं. अब जगह ही नहीं बची है. उलीडीह थाना की बात करें तो यहां पर एक के ऊपर एक करके गाड़ियों को रखने का काम किया गया है. पूछने पर जवाब मिलता है- जगह ही नहीं है कहां रखेंगे.
कचरा बनने की ओर जब्त गाड़ियां
थानों में जब्त गाड़ियों को देखकर ऐसा लगता है, जैसे वह कचरा बनने की ओर है. इससे थाने की सुंदरता भी खराब हो रही है. राष्ट्रीय संपत्ति का भी नुकसान हो रहा है. थानों में जब्त गाड़ियों के अधिकतर मामले में वाहन मालिक थाने में वाहन रिलीज करने के लिए दावा करने नहीं आते हैं. संगीन मामलों में जब्त वाहनों को तबतक नहीं छोड़ा जाता है, जबतक न्यायालय से आदेश नहीं मिलता है.
मालखाना का प्रभार देने में होती है परेशानी
अगर किसी थाना प्रभारी का तबादला किसी दूसरे थाना में हो गया है, तब वे मालखाना का प्रभार देने में आना-कानी करते हैं. मालखाना का प्रभार लेते समय नये थाना प्रभारी एक-एक चीज को देख और परख कर ही लेते हैं. जो सामान जैसा रहता है उसपर उसी हिसाब से हस्ताक्षर भी करवाया जाता है. इसके लिये पुराने थाना प्रभारी को कई बार थाना का चक्कर भी लगाना पड़ता है.
न्यायालय से अनुमति के बाद होती है नीलामी
थानों में जब्त कर रखी गयी कई गाड़ियां तो ऐसी हैं कि उनका कोई दावेदार भी नहीं है. वहीं पुलिस की ओर से जब्त किए गए वाहनों को छुड़ाने के लिए होने वाली लंबी-चौड़ी कानूनी प्रक्रिया से बचने के लिए लोग वाहनों को नहीं छुड़ाते हैं. पुलिस का कहना है कि न्यायालय से अनुमति लेकर ही नीलामी की प्रक्रिया की जाती है. इसमें वाहन मालिकों को न्यायालय की अनुमति से नोटिस जारी की जाती है. इसके बाद फोटो और वीडियो बनाते हुए कार्यपालक मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में गठित समिति इसकी नीलामी करती है. पुलिस विभाग की ओर से आरटीओ को वाहनों की जो भी सूचना उपलब्ध कराई जाएगी, उसपर 15 दिनों के भीतर मूल्यांकन कर आरटीओ को रिपोर्ट देनी होगी.
दो साल पहले आया था मुख्यालय से आदेश
सितंबर 2020 में जब तत्कालीन एसएसपी डॉ. एम तमिल वाणन थे, तब मुख्यालय से गाड़ियों की नीलामी का आदेश आया था. इसके बाद इसकी सभी विभागीय प्रक्रियाओं को पूरी करने का आदेश भी दिया गया था. किसी कारणवश ऐसा नहीं हो सका. इसके लिये सभी थानों के डीएसपी स्तर के अधिकारियों को खास निर्देश भी दिया गया था.
साक्ष्य के लिये भी रखी जाती हैं गाड़ियां
हत्या, चोरी, लूट, हादसा के अलावा संगीन मामलों में जब्त की गयी गाड़ियां साक्ष्य के लिये रखी जाती हैं. इन गाड़ियों को कोर्ट के आदेश के बगैर नष्ट नहीं किया जा सकता है. इस कारण से ऐसी गाड़ियों को संभालकर रखा जाता है.
नीलामी होने पर मिल सकता है 25 लाख का राजस्व
जिले में कुल 44 थाना हैं. अनुमानतः अगर थाने में सड़ रही गाड़ियों की नीलामी की जाती है तो इससे सरकार को कम से कम 25 लाख रुपये का राजस्व प्राप्त हो सकता है. साथ ही थाना परिसर भी साफ-सुथरी हो सकती है. अभी हाल ही में 70 बाइक कोतवाली पुलिस की ओर से जब्त की गयी थी. ग्रामीण क्षेत्र के थानों की बात करें, तो एक थाना में नीलामी से 50 हजार रुपये का राजस्व तो मिल ही सकता है. इधर शहरी थानों की बात करें तो एक थाना से कम से कम 2 से 3 लाख रुपये तक का राजस्व आसानी से प्राप्त हो सकता है.
गाड़ी सही सलामत नहीं होने पर कर सकते हैं केस- अधिवक्ता सुधीर कुमार पप्पू
जमशेदपुर सिविल कोर्ट के वरीय अधिवक्ता सुधीर कुमार पप्पू ने शुभम संदेश दैनिक अखबार के संवाददाता से बातचीत में कहा है कि अगर पुलिस किसी की गाड़ी को सीज करती है, तो उसका सीजर लिस्ट बनाकर उसके मालिक को भी देने का प्रावधान है. यह प्रावधान 100X6 सीआरपीसी के तहत है. गाड़ी सीज करते समय जिस हालत में गाड़ी थी, अगर उस हालात में नहीं मिलती है तब कोर्ट में अनुसंधानकर्ता के खिलाफ केस करने का भी प्रावधान है. इसके बाद कोर्ट से वादी को मुआवजा भी मिलेगा.