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Brijendra Dubey
देश में बेरोजगारी की समस्या बहुत गंभीर है. खासकर युवाओं के लिए अच्छे रोजगार के मौके कम हैं. हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में भी बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा रहा. लोगों को मुफ्त में सामान देने से कुछ वक्त के लिए तो फायदा होता है, लेकिन असल में लोगों को रोजगार चाहिए. वहीं देश में विकास तेजी से हो रहा है, लेकिन उतनी ही तेजी से रोजगार के मौके नहीं बढ़ पा रहे हैं. पिछले 50 सालों से जो आंकड़े इकट्ठे किए गए हैं, वे साफ बताते हैं कि जितनी तेजी से देश की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, उतनी ही तेजी से लोगों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है. अगर इस समस्या को नजरअंदाज किया गया तो आगे आने वाले समय में बहुत बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है.
आंकड़ों की बात करें तो भारत में बेरोजगारी फिर से बढ़ती जा रही है. इसी साल मई में जहां बेरोजगारी दर सात प्रतिशत थी, वहीं जून में ये बढ़कर 9.2% हो गई.
एक निजी संस्था (सीएमआईई) की ओर से जारी ताजा आंकड़ों ने चिंता बढ़ा दी है. सीएमआईई के अनुसार, जून 2024 में भारत की बेरोजगारी दर बढ़कर 9.2% हो गई है. मई 2024 में ये दर 7% थी. ये बढ़ोतरी शहरों और गांवों दोनों जगह देखने को मिली है. गांव में बेरोजगारी की दर मई में 6.3% से बढ़कर जून में 9.3% हो गई है. वहीं शहरों में यह दर 8.6% से बढ़कर 8.9% हो गई है. दिलचस्प बात यह है कि बेरोजगारी दर बढ़ने के साथ ही रोजगार ढूंढने वालों की संख्या भी बढ़ी है. जून में यह दर 41.4% हो गई, जो मई में 40.8% थी. हालांकि रोजगार पाने वालों का अनुपात कम हुआ है. जून 2024 में ये दर घटकर 37.6% हो गई, जो मई में 38% थी. सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि महिलाओं में बेरोजगारी बहुत ज्यादा बढ़ गई है. सीएमआईई के सर्वेक्षण से पता चलता है कि जून 2024 में 18.5% महिलाएं बेरोजगार थीं, जो कि पिछले साल के मुकाबले 3.4% ज्यादा है. वहीं पुरुषों में भी बेरोजगारी थोड़ी बढ़ी है. पिछले साल जून 2023 में 7.7% पुरुष बेरोजगार थे, जो इस साल बढ़कर 7.8% हो गए हैं.
साल 2023 में भारत में रहने वाले करीब एक तिहाई लोग शहरों में रहने लगे हैं. पिछले दस सालों में देखा जाए तो शहरों में रहने वाले लोगों की संख्या में करीब 4% का इजाफा हुआ है. यानी कि अब पहले से ज्यादा लोग गांव छोड़ कर शहरों में आकर बसने लगे हैं. पिछले दस सालों में भारत में शहरीकरण में करीब 4% की बढ़ोतरी हुई है. इसका मतलब है कि अब ज्यादा से ज्यादा लोग खेती छोड़ कर सेवा क्षेत्र में काम करने लगे हैं. खेती आज भी भारत की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा रोल अदा करती है और आज भी देश में काम करने वाले लगभग आधे लोग खेती से जुड़े हुए हैं. मगर अब खेती का योगदान भारत की जीडीपी में पहले से कम हो गया है, वहीं दूसरी तरफ सेवा क्षेत्र का महत्व बढ़ गया है. भारत में रोजगार का बड़ा हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में होता है, जिसमें कम वेतन, कम सुरक्षा और कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं होती है. आर्थिक विकास के बावजूद अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार का अनुपात कम नहीं हो रहा है. शहरों में बड़ी संख्या में लोग आते हैं, लेकिन सभी को रोजगार नहीं मिल पाता है.
कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में लगातार गिरावट हो रही है, जिस कारण ग्रामीण आबादी शहरों की ओर पलायन कर रही है. कई लोग बेहतर जीवन की तलाश में गांव से शहरों की ओर पलायन करते हैं. इस तरह शहरों में आबादी का बोझ बढ़ जाता है और रोजगार के अवसरों पर दबाव बढ़ जाता है. शहरीकरण और आर्थिक विकास भारत में रोजगार की कमी की समस्या का समाधान नहीं कर पा रहा है. इस समस्या का समाधान करने के लिए शिक्षा, कौशल विकास, बुनियादी ढांचे और औद्योगिकीकरण में निवेश करने की आवश्यकता है. देश में गांवों में रहने वाले गरीब लोगों के लिए मनरेगा योजना चलाई जा रही है.
इस योजना के तहत लोगों को काम दिया जाता है, इससे उन्हें रोजगार मिलता है. लेकिन इस योजना में भी कई कमियां हैं. जैसा कि कानून में लिखा है कि अगर किसी को 15 दिन के अंदर काम नहीं मिलता है, तो उसे बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा, लेकिन ऐसा बहुत कम ही होता है. इसके अलावा मजदूरी के पैसे भी देर से मिलते हैं. सबसे बड़ी बात यह कि ज्यादातर लोगों को साल में 100 दिन से भी कम दिन काम मिल पाता है, जबकि कानून में 100 दिन का प्रावधान है. गांव में तो मनरेगा योजना के तहत लोगों को रोजगार दिया जाता है, लेकिन शहरों में ऐसी कोई बड़ी योजना नहीं है. कुछ राज्यों में छोटे स्तर पर ऐसी योजनाएं चल रही हैं, जबकि देशभर में एक बड़ी योजना की जरूरत है. इस बारे में एक प्रस्ताव भी आया है जिसका नाम है विकेंद्रित शहरी रोजगार और प्रशिक्षण योजना. इस योजना के तहत शहरों में पानी की सप्लाई, सफाई और दूसरे काम कराए जा सकते हैं.
बेरोजगारी की समस्या असल में काफी हद तक इस बात से भी जुड़ी है कि क्या लोग मौजूदा रोजगार के लिए काबिल हैं या नहीं. भारत में स्किल डेवलपमेंट और ट्रेनिंग पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता, जिस कारण बहुत से लोगों के पास जरूरी हुनर नहीं है जो आज के कामों के लिए चाहिए. इसलिए अब युद्ध-स्तर पर एक बड़े पैमाने पर वोकेशनल यानी हुनर आधारित पढ़ाई शुरू करने की जरूरत है. साथ ही पढ़ाई के साथ-साथ छात्र-छात्राओं को कंपनियों में इंटर्न के तौर पर काम करने का भी मौका देना होगा. इस तरह के कॉन्सेप्ट पर जर्मनी में बहुत अच्छा काम हुआ है. वहां की कंपनियां स्कूल से पढ़ाई पूरी करने वाले बच्चों को ट्रेनिंग देती हैं और बाद में उन्हें नौकरी पर रख लेती हैं. इससे कंपनियों को भी फायदा होता है और युवाओं को भी रोजगार मिल जाता है. अमेरिका में भी इसी तरह काम होता है.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
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