- नए साल के आगमन पर मनाया जाता पर्व, नए पत्तों पर खाते है नया अन्न
Chandil (Dilip Kumar) : सरहुल पर प्रकृति के प्रति कृतज्ञता जताने के साथ नये साल का उल्लास मनाया जाता है, प्रकृति में आए नए फल-फूल और धरती से उपजे अन्न का उपयोग किया जाता है. वास्तव में सरहुल आदिवायों के प्रकृति प्रेम और जीवन-यापन के लिए उससे जुड़ाव को दर्शाता है. सरहुल आदिवासी समाज के प्रमुख और महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है.
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यह पर्व बसंत ऋतु से शुरू होकर चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि तक मनाया जाता है. संथाल परंपरा के अनुसार मुलु मोड़े माहा से सरहुल पर्व का आयोजन शुरू हो जाता है. दरअसल सरहुल मनाने के लिए कोई निश्चित तिथि नहीं है, इसे अलग-अलग गांवों में सुविधानुसार अलग-अलग तिथि को मनाया जाता है. इस पर्व में साल और महुआ के फूलों से प्रकृति की आराधना की जाती है. ग्रीष्म ऋतु में जब पेड़ों पर नए पत्ते और फल-फूल आते हैं, तब इस सुखद प्राकृतिक बदलाव का आदिवासी समाज के लोग सरहुल पर्व के रूप में नाचते-गाते स्वागत करते हैं.
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अनुमंडल क्षेत्र में छाने लगा उल्लास
चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में सरहुल पर्व मनाने का दौर शुरू हो चुका है. शुक्रवार को धातकीडीह, कांगलाडीह, गांगुडीह पुनर्वास, कटिया, रामगढ़, चाकुलिया, कादलाकोचा समेत विभिन्न गांवों में सरहुल पर्व मनाया जा रहा है. इस स्थानों में जाहेरथान में परंपरा के अनुसार प्रकृति की आराधना की गई. लाया यानि पुजारी देवताओं की साल व महुआ के फूल से पूजा किए.
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इस दौरान ग्राम देवता, जंगल, पहाड़ और प्रकृति की पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि और गांव के निरोग रखने की मन्नत किए. इस अवसर पर मुगा-मुर्गी की बलि भी दी गई. इसमें ऐसी मान्यता है कि जिस गांव में सरहुल की पूजा हुई है उस गांव में दूसरे गांव का लाया या पुजारी कुछ खा नहीं सकते हैं, जबतक उनके अपने गांव में सरहुल नहीं मनाया जाता है.
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रंग-बिरंगे फूलों से प्रकृति करती है शृंगार
सरहुल पर चारों ओर उमंग और उल्लास रहता है. कहते हैं सरहुल खुशियों का पैगाम लेकर आता है. ऐसे समय में घर फसल से भरा रहता है, पेड़-पौधों में फल-फूल रहता है. प्रकृति यौवन पर होती है, रंग-बिरंगे फूलों और पेड़ों में नए पत्तों से प्रकृति अपना शृंगार करती है. ऐसा माना जाता है कि प्रकृति किसी को भी भूखे नहीं रहने देगी. शायद इसीलिए सरहुल पर्व धरती माता को समर्पित महत्वपूर्ण पर्व है. सरहुल के आद आदिवासी समाज नई फसल का उपयोग करते हैं. इसके साथ ही पेड़ों में लगे फल-फूल और पत्तों का भी उपयोग शुरू किया जाता है. इस पर्व को संताल, मुंडा, उरांव, हो, खड़िया समेत विभिन्न आदिवासी समुदाय के लोग हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं.
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चांडिल : ग्रामीणों को दी गई उपभोक्ता संरक्षण कानून की जानकारी
Chandil (Dilip Kumar) : राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस पर शुक्रवार को झालसा के निर्देशानुसार जिला विधिक सेवा प्राधिकार सरायकेला व अनुमंडलीय विधिक सेवा समिति चांडिल की ओर से विधिक जागरुकता शिविर का आयोजन किया गया. इस दौरान लोगों को उपभोक्ता संरक्षण कानून की जानकारी दी गई. पीएलवी कार्तिक गोप की अगुवाई में ईचागढ़ प्रखंड के दालग्राम टोला राणीडीह में उपभोक्ता दिवस एवं जागरूकता शिविर का आयोन किया गया.
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शिविर में ग्रामीणों को उपभोक्ता संरक्षण कानून के साथ बाल विवाह, घरेलू हिंसा, डायन कुप्रथा, महिलाओं के अधिकार और सरकारी योजनाओं के लाभ लेने के तरीकों से अवगत कराया गया. मौके पर सुभद्रा गोप, लक्ष्मीकांत गोप, बिलम माझी, अनुरुद्ध गोप, अंगद गोप समेत कई ग्रामीण उपस्थित थे.
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खरीदारी के बाद रसीद अवश्य लें
वहीं नीमडीह प्रखड अंतर्गत कुशपुतुल में आयोजित शिविर में प्राधिकार के पीएलवी शुभंकर महतो ने उपभोक्ता संरक्षण कानून की जानकारी देते हुए कहा कि भारतीय संविधान के अंतर्गत उपभोक्ताओं को शोषण, मिलावटी वस्तु और सेवाओं की कमी से संरक्षण देने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम बनाया गया है.
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उन्होंने ग्रामीणों को जानकारी देते हुए कहा कि उपभोक्ता जब भी कोई वस्तु खरीदे, तो यह आवश्यक है कि उस वस्तु की रसीद अवश्य लें. कार्यक्रम में असंगठित निबंधन कार्ड, कानूनी पुस्तिका व पर्ची का वितरण किया गया. इस अवसर पर बायुल कालिंदी, दासु कालिंदी, राखाल कालिंदी, अष्ठमी कालिंदी, रामनाथ कालिंदी समेत कई लोग उपस्थित थे.
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