Jamtara : जामताड़ा नाला क्षेत्र के सिमलडूबी पंचायत अंतर्गत डांड़ गांव में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा सह प्रवचन आयोजन किया गया है. इस आयोजन से संपूर्ण क्षेत्र में श्रद्धा और भक्ति का वातावरण बन गया है. शाम ढलने के साथ ही गांव के बजरंगबली मंदिर परिसर में भक्त वैष्णवों की भीड़ उमड़ने लगती है. वहां कथा के साथ-साथ भजन संगीत भी प्रस्तुत किया गया. जिससे उपस्थित श्रोता भावविभोर हो कर कथा स्थल पर भक्ति से झुम उठे. श्रीमद्भगवत कथा का श्रवण करने के लिये के श्रोताओं की भीड़ उमड़ पड़ी.
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श्रीमद्भागवत महिमा का किया गया वर्णन
प्रस्तुत कथा के प्रथम दिन में ब्रज भाषा में श्रीमद्भागवत कथा के अंतर्गत “श्रीमद्भागवत महिमा” का मधुर वर्णन किया गया. कथा को वृन्दावन धाम के कथावाचक श्री सौनेन्द्र कृष्ण शास्त्री वत्सल जी महाराज एवं उनके सहयोगी सतीश चन्द्र आचार्य, विश्वजीत आचार्य, पुष्पेद्र कुमार, अनिल शर्मा, रिकेश भारद्वाज, प्रफुल्ल दादा द्वारा कथा का वर्णन किया गया.
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भगवान नाम से सारे विपत्ति होते हैं नाश
मार्मिक प्रसंग में कहा गया की भगवान नाम से सारे विपत्ति नाश हो जाते हैं. श्रीमद्भागवत कृपा के बिना कुछ भी संभव नहीं होता है. हरि नाम से ही सारे पाप दूर होते हैं. हर मनुष्य को समाज में अच्छा काम करना चाहिए. भगवान श्रीकृष्ण ने कहा की कर्म ही प्रधान है, बिना कर्म कुछ संभव नहीं है. जो मनुष्य अच्छा कर्म करता है, उसे अच्छा फल मिलता है. और बुरे कर्म करने वाले को बुरा फल मिलता है. इसलिए सभी को अच्छा कर्म ही करना चाहिए.
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इंसान के लिए दमन और उदारीकरण दो मार्ग
इस मौके पर श्री सौनेन्द्र महाराज जी ने श्रीमद्भागवत महिमा के बारे में व्याख्यान किया. उन्होंने कहा कि एक मार्ग दमन का है, तो दूसरा उदारीकरण का, दोनों ही मार्गों में अधोगामी वृतियां निषेध है. भक्ति के दो संतान हैं. पहला ज्ञान और दूसरा वैराग्य. उसके दोनों पुत्र वृद्धावस्था में आकर भी सोये पड़े हैं. भक्ति बड़ी दुखी थे कि यदि वे नहीं जागे तो यह संसार गर्त में चला जायेगा. भागवतकार के समक्ष यह चुनौती रही होगी कि वेद पाठ करने पर भी आत्मज्ञान नहीं और वेदांत के पाठ करने पर भी वैराग्य नहीं जगा. इसे ही गीता में भगवान कृष्ण ने मिथ्याचार कहा है.
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कथा सुनते ही जाग जाता है ज्ञान और वैराग्य
भागवत कथा सुनते ही ज्ञान और वैराग्य जाग जाये. अतः जो कथा ज्ञान और वैराग्य जगाये, वह पाप में कैसे ढकेल सकती है. भागवत कथा पौराणिक होती है. नारद जी ने भक्ति सूत्र की व्याख्या करते हुए भी भक्ति को प्रेमरूपा बताया है. वह अमृत रूपिणी है, जिसे पाकर मनुष्य कृतकृत्य हो जाता है. फिर वह कुछ और नहीं चाहता है, न राग, न रंग. वह मस्त होकर स्तब्ध हो जाता है. अतः भक्ति की व्याख्या अद्भुत् है. इस सबका शोध श्रीभगवत कथा का महिमा है.
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