Kiiburu (Shailesh Singh) : नक्सल प्रभावित सारंडा के सुदूरवर्ती गांव बिनुआ के ग्राम प्रधान सह किसान अमर सिंह सिद्धू जैविक खाद तैयार कर ड्रैगन फ्रूट और लेमन ग्रास की खेती बडे़ पैमाने पर कर रहे हैं. अन्य किसानों के लिये भी ये प्रेरणास्रोत बन गये हैं. उनसे प्रेरणा लेकर सारंडा के चार गांवों के लगभग 20 किसान अब अपने खेतों में लेमन ग्रास की खेती कर रहे हैं, लेकिन ड्रैगन फ्रूट का पौधा सिर्फ अमर सिंह सिद्धू ने ही लगाया है.
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रसायनों और उर्वरकों के इस्तेमाल से बंजर हो रहे खेत
पौधों के अच्छे स्वास्थ्य और अधिक पैदावार, मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए जैविक खाद खेती के लिए वरदान साबित हो रहे हैं. मौजूदा समय में खेती में भारी मात्रा में रसायनों और उर्वरकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे मानव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर, मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो रही है और खेत बंजर होते जा रहे हैं. दिनों दिन खेती महंगी होती जा रही है. इस स्थिति से निपटने के लिए जैविक खाद तैयार कर रहे हैं. जैविक खाद पारंपरिक भारतीय जैव कीटनाशक और जैविक खाद है जो गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़, मिट्टी, छांछ, पीपल-नीम-सहजन का पत्ता, माड़ और पानी को एक साथ मिलाकर अनोखी तकनीक से तैयार की जाती है. इसे प्राकृतिक कार्बन, बायोमास, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम और फसलों के लिए आवश्यक अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों का एक उत्कृष्ट स्रोत माना जाता है. जीवामृत का उर्वरक शक्ति सात पीएच होता है जो न केवल सस्सा, बल्कि पेड़-पौधों, फसलों और मिट्टी दोनों के लिए फायदेमंद है. एक लीटर जीवामृत में पांच लीटर पानी मिलाकर इसका इस्तेमाल जैविक खाद के रूप में खेतों में किया जाता है. जैविक खाद को वह अपने समूह के लोगों को 15 रुपये, जबकि अन्य को 30 रुपये लीटर बेचते हैं. जीवामृत की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने में लगभग एक लाख रुपये खर्च आया है.
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प्रति एकड़ लगभग चार से पांच लाख रुपया खर्च आता है
अमर सिंह सिद्धू बताते हैं कि ड्रैगन फ्रूट की खेती में केवल एक बार पूंजी व मेहनत की आवश्यकता होती है. पारंपरिक खेती के मुकाबले इससे लगातार 20-25 वर्षों तक आमदनी ले सकते हैं. इसके पौधे कैक्टस की तरह होते है. इसके फलने के लिए पौधों को सहारे की जरुरत पड़ती है. स्टैंड खेती के लिए प्रति एकड़ 500 कंक्रिट स्ट्रेक्चर को खड़ा करने में प्रति एकड़ लगभग 4-5 लाख रुपये खर्च होते हैं. इन 500 स्ट्रक्चर में दो हजार पौधे लगेंगे. ड्रैगन फ्रूट्स को लगाने के बाद पहला फल देने में डेढ़ वर्ष तक का समय लगता है. एक एकड़ खेत में हर साल लगभग पांच टन फल का उत्पादन किया जा सकता है. बाजार में ड्रैगन फ्रूट की कीमत 300 रुपये प्रति किलो से अधिक है. अर्थात एक बार की पूंजी व थोड़ी मेहनत से 25 वर्षों तक प्रति एकड़ कम से कम पांच लाख रुपये से अधिक वार्षिक शुद्ध आय प्राप्त किया जा सकता है.
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प्रति एकड़ 25 टन लेमन ग्रास काटा जाता है
लेमन ग्रास की खेती पहले दो एकड़ में की गई थी, लेकिन अब अन्य गांवों के किसानों के साथ लगभग 20 एकड़ में इसकी खेती की जा रही है. लेमन ग्रास का पौधा एक बार खेत में लगाने के बाद इसे लगातार 10 वर्षों तक काट सकते हैं. पानी का पटावन ठीक रहे तो प्रति वर्ष चार बार लेमन ग्रास को काट सकते हैं. प्रति एकड़ 25 टन लेमन ग्रास काटा जाता है. एक टन लेमन ग्रास से छह लीटर से अधिक तेल निकाला जा सकता है. एक लीटर लेमन ग्रास का तेल 1000 रुपये लीटर बेचा जाता है. प्रति माह एक हजार लीटर तेल की मांग की जा रही है. लेमन ग्रास का तेल निकालने के लिए अमर सिंह सिद्धू ने अपनी जमीन पर प्रोसेसिंग प्लांट लगाया हैं. सरकार की ओर से किसी प्रकार का लोन या कोई सुविधा किसानों को नहीं मिली है.
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सारंडा के लोग अधिक मेहनत करना नहीं चाहते : सिद्धू
अमर सिंह सिद्धू ने कहा कि जब से सरकार ने मुफ्त राशन की सुविधा गरीबों के लिये प्रदान की है तब से सारंडा के लोगों में श्रम शक्ति घटी है. सारंडा के लोग अधिक मेहनत करना नहीं चाहते है. इस वजह से सारंडा की हजारों एकड़ कृषि भूमि बिना खेती के बंजर हो रही है. हमने कम मेहनत में अधिक लाभ देने वाली खेती शुरू की इसलिए लेमन ग्रास, ड्रैगन फ्रूट्स, आम आदि फलों की बागवानी अपने बंजर अथवा खाली खेतों में कर रहे है. इससे लाभ मिलना शुरू हो गया है.