- भारतीय श्रम कल्याण एवं रोजगार मंत्रालय के महानिदेशक कमल किशोर सोन का दौरा आज
- अस्पताल को स्थानान्तरित करने का हो रहा है प्रयास
Kiriburu (Shailesh Singh) : भारतीय श्रम कल्याण एवं रोजगार मंत्रालय के महानिदेशक कमल किशोर सोन 23 मई की दोपहर लगभग 1 बजे दिल्ली से राँची होते बड़ाजामदा पहुंचेंगे. वह बड़ाजामदा में आखिरी सांसे गिन रही 52 बेड क्षमता का एक मात्र केन्द्रीय अस्पताल, जिसे शेष अस्पताल के नाम से भी जाना जाता है का निरीक्षण करेंगे. अधिक संभावना है कि निरीक्षण के उपरान्त वह इस अस्पताल को पूरी तरह से बंद कर अन्यत्र शिफ्ट करने का अनुशंसा मंत्रालय को कर दें. ऐसी चर्चा है कि इस अस्पताल को यहां से हटाकर झाल्दा ले जाने की तैयारी है.
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पांच साल तक तो सारे जनप्रतिनिधि सोये रहते हैं. लेकिन अगर आज वह नहीं जागें, बडा़जामदा में महानिदेशक से मुलाकात कर इस अस्पताल को यहाँ से अन्यत्र जाने से रोकवाने का प्रयास तथा यहीं पर सारी सुविधाएं उपलब्ध कराने आदि की मांग नहीं किये तो यह इस क्षेत्र के लिये सबसे बडा़ दुर्भाग्य होगी. गरीब जनता व मरीज ऐसे जनप्रतिनिधियों को कभी माफ नहीं करेगी.
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उल्लेखनीय है कि भारत के तमाम सरकारी व निजी अस्पताल मरीजों से भरे पडे़ हैं. अस्पतालों में इलाज हेतु आने वाले मरीजों की लंबी कतार कभी खत्म नहीं हो रही है. लेकिन, इससे बिल्कुल अलग भारत सरकार का एक ऐसा केन्द्रीय अस्पताल जो झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिला अन्तर्गत बड़ाजामदा में स्थित है, वहां पिछले एक वर्ष के दौरान इलाज हेतु कुछ दिन पूर्व तक मात्र एक मरीज आये, वह भी दो बार. बाकी कोई मरीज इलाज के लिए नहीं आया.
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सबसे आश्चर्य की बात यह है कि जिन मरीजों का इलाज हेतु इस अस्पताल में केन्द्र सरकार ने एक सरकारी चिकित्सक, एक नर्स को नियुक्त किया है. चिकित्सक व नर्स मरीज के अभाव में ड्यूटी के नाम पर 8 घंटे अस्पताल की चौकीदारी कर घर लौट जाते हैं. मरीजों के नहीं आने से चिकित्सक व नर्स का चिकित्सीय अनुभव भी प्रभावित हो रहा है.
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उल्लेखनीय है कि लगभग 30 एकड़ जमीन में निर्मित 52 बेड क्षमता वाला बड़ाजामदा का यह केन्द्रीय अस्पताल, जिसे शेष अस्पताल के नाम से भी जाना जाता है. इस अस्पताल का उद्घाटन 17 सितंबर 1978 को पूर्व केंद्रीय राज्य श्रम मंत्री लारंग साई ने किया था. इस अस्पताल के निर्माण का मुख्य उद्देश्य झारखण्ड-ओडिशा स्थित लौह, मैगनीज, क्रोम, डोलोमाइट आदि अयस्कों की विभिन्न खादानों में कार्य करने वाले असंगठित मजदूरों एवं उनके परिजनों का यहां बेहतर और निःशुल्क इलाज किया जा सके. शेष फंड के रुप में इस चिकित्सा व्यवस्था को संचालित करने हेतु तमाम खादान प्रबंधने प्रति टन अयस्क की प्रेषण पर केन्द्र सरकार के कल्याण विभाग को एक निर्धारित रकम देती थी.
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इसी पैसे से यहां सभी रोगों के दर्जनों विशेषज्ञ चिकित्सक, 50 से अधिक पारा मेडिकल स्टाफ, बेहतर एक्स-रे मशीन, पैथोलॉजी, एम्बुलेंस, ऑपरेशन थियेटर, दवा आदि की तमाम सुविधाएं थीं. एक समय यह अस्पताल मरीजों से पटा रहता था. चिकित्सकों व स्टाफ को खाने की फुर्सत नहीं मिलती थी. बदलते समय अनुसार यहां सारी सुविधाएं धीरे-धीरे खत्म होती गईं. आज आलम यह है कि इस अस्पताल में वर्तमान समय में एक चिकित्सक डॉ बिनोद कुमार एवं एक नर्स अनीता किशोरिया एवं वेलफेयर अधिकारी उदय शंकर एवं कुछ निगरानी कर्मी ही हैं. अस्पताल का सारा इन्फ्रास्ट्रक्चर, बेड, एम्बुलेंस, एक्स-रे मशीन आदि लगभग पूरी तरह से जर्जर व खराब हो चुका है. यही कारण है कि कोई मरीज अपना इलाज कराने नहीं आता है.
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अस्पताल की स्थिति दयनीय क्यों हुई! इस संबंध में वर्ष 2021 में इस अस्पताल का निरीक्षण करने आये श्रम एवं रोजगार मंत्रालय (भारत सरकार, रांची) के कल्याण एवं शेष आयुक्त एमए खान ने कहा था कि वर्ष 2016 अर्थात् जीएसटी आने से पहले तक तमाम खदानों से होने वाली लौह अयस्क की ढुलाई पर प्रति टन शेष का कलेक्शन होता था. जीएसटी आने के बाद खदानों से राजस्व मिलना बंद हो गया, जिससे स्थिति खराब हुई. उन्होंने कहा था कि भारत सरकार के श्रम मंत्रालय की तरफ से इसे बंद करने संबंधी कोई आदेश भी नहीं है. इस अस्पताल में जो भी कमियां हैं, उसे सुधारने पर ध्यान देंगे. इसकी खराब स्थिति की रिपोर्ट केन्द्र सरकार को भेजेंगे. अस्पताल की खराब स्थिति की जानकारी आयुक्त द्वारा केन्द्र सरकार को वर्ष 2021 में ही भेज दी गई है.
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इस केन्द्रीय अस्पताल को पिछले दो वर्षों से कर्मचारी राज्य बीमा आयोग (ईएसआईसी) अधिग्रहण करने की तैयारी में थी. ईएसआईसी के अधिकारी अस्पताल का भौतिक निरीक्षण भी कर चुके थे. जानकारी के अनुसार अस्पताल का जमीन से संबंधित कागजात के स्थानान्तरण की प्रक्रिया भी लगभग हो पूरी चुकी थी. लेकिन अब इसे अन्यत्र स्थानान्तरित करने की क्यों बात चल रही है. अगर ईएसआईसी इस अस्पताल का संचालन करेगी तो लौहांचल के सेल, टाटा स्टील समेत तमाम खदानों व कंपनियों में काम करने वाले हजारों असंगठित मजदूरों व उनके आश्रितों को सीधा लाभ होगा.
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असंगठित मजदूरों का मेडिकल के एवज में 6 फीसदी पैसा काटती है, लेकिन जमशेदपुर को छोड़ झारखंड-ओडिशा के इस लौहांचल क्षेत्र में ईएसआईसी का अस्पताल नहीं होने, ईएसआईसी से जुड़ा मेडिकल कार्ड नहीं बनने से असंगठित क्षेत्र के मजदूर एवं उनके आश्रित को चिकित्सा सुविधा का लाभ नहीं मिल पाता है. मेडिकल के एवज में काटे गये मजदूरों का पैसा उन्हें वापस कर दिया जाता है. सारंडा में एक भी बेहतर सरकारी अस्पताल नहीं है. कोई नया अस्पताल खुल नहीं रहा है, उल्टे पुराने को बंद करने का प्रयास तेज है. इस अस्पताल का जाना लौहांचल के लिये काला दिन साबित होगा. जरुरी है कि यहां सारी सुविधाएं व संसाधन उपलब्ध करा बेहतर तरीके से संचालित कर गरीब मरीजों को सेवा प्रदान किया जाये.