Ranchi : टीपीसी संगठन के 27 बड़े उग्रवादी हाल के महीनों में गिरफ्तार हुए है. और तीन बड़े उग्रवादियों ने सरेंडर कर दिया है. इसका असर टीपीसी संगठन पर पड़ा है. बड़े उग्रवादियों के गिरफ्तार और सरेंडर करने से टीपीसी संगठन कमजोर हुआ है. वर्तमान में हालात ये है कि टीपीसी संगठन अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहा है. इसके लिए वाहनों में आगजनी जैसी घटनाओं को अंजाम देकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में जुटे है. गौरतलब है कि चतरा जिला की पुलिस ने सबसे अधिक टीपीसी संगठन के ऊपर कार्रवाई की है.
27 बड़े टीपीसी उग्रवादी हुए गिरफ्तार,तीन ने किया सरेंडर
हाल के महीनों में पुलिस ने कार्रवाई करते हुए पांच लाख के तीन इनामी टीपीसी उग्रवादी समेत 27 टीपीसी बड़े उग्रवादी को गिरफ्तार किया है. इसके अलावा तीन बड़े उग्रवादियों ने सरेंडर कर दिया है. जो उग्रवादी गिरफ्तार हुए है उसमें पांच लाख इनामी सौरव गंझू, अनिश्चय गंझू और कृष्णा गंझू शामिल है. इसके अलावा ललन राणा, मुन्ना कुमार यादव, प्रवीण कुमार, उमेश भुइयां, रंजीत राणा, विकास गंझू, ननकु गंझू, आशिक गंझू, विनोद गंझू, बीरेंद्र यादव, मेघलाल यादव, राजकुमार गंझू, अशोक गंझू, रामेश्वर गंझू, जितेंद्र यादव, दीक्षित, आदेश गंझू, नरेश गंझू और अरविंद गंझू शामिल है. इसके अलावा पुलिस की दबिश से परेशान होकर टीपीसी के सेकेंड सुप्रीमों 15 लाख ईनामी मुकेश गंझू और पांच लाख ईनामी उदेश गंझू और नागेश्वर गंझू ने सरेंडर कर दिया है. पुलिस ने इन उग्रवादियों के पास से एक एके- 47, 10 से अधिक राइफल, कई पिस्टल और करीब 3000 कारतूस बरामद किए है.
TPC के ये 3 बड़े उग्रवादी पुलिस और एनआईए के रडार पर
टीपीसी के तीन बड़े उग्रवादी झारखंड पुलिस और एनआईए रडार पर हैं. इन तीन बड़े उग्रवादियों में टीपीसी सुप्रीमो ब्रजेश गंझू, आक्रमण गंझू और भीखन गंझू शामिल हैं. तीनों बड़े उग्रवादी झारखंड पुलिस के अलावा एनआईए के रडार पर भी हैं. झारखंड पुलिस ब्रजेश गंझू, आक्रमण गंझू और भीखन गंझू की गिरफ्तारी के जाल बिछा रही है. गिरफ्तारी के लिए लगातार अभियान चला रही है.
साल 2005 में बना था टीपीसी संगठन
उग्रवादी संगठन टीपीसी का गठन वर्ष 2005 में हुआ था, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि साल 2004 से ही तैयार होने लगी थी. चतरा, लातेहार, हजारीबाग और पलामू में साल 2004-05 में भाकपा माओवादी (21 सितंबर 2004 से पहले एमसीसीआइ) के एक खास जाति के नक्सलियों की लगातार गिरफ्तारी हुई थी. इस कारण संगठन में दो फाड़ होने लगी थी. एक जाति के नक्सलियों को लग रहा था कि दूसरी जाति के नक्सली अपना दबदबा बढ़ाने के लिए उन्हें गिरफ्तार करवा रहे हैं. टीपीसी के गठन के वक्त दो बड़े नक्सली नेता अमूल्य सेन और कन्हैया चटर्जी की तसवीर लगाने को लेकर विवाद हुआ था. अमूल्य सेन की तसवीर पहले लगाने की मांग करने वाले माओवादियों ने अलग होकर टीपीसी बनायी थी. लेकिन इससे बड़ा एक सच यह भी था कि उस वक्त ब्रजेश, मुकेश और पुरुषोत्तम पर संगठन के पैसे का गबन करने का आरोप था. टीपीसी के गठन के वक्त ये तीनों उग्रवादी संगठन के बड़े पद पर थे. पुरुषोत्तम मारा जा चुका है और ब्रजेश और मुकेश (सरेंडर) अब भी जिंदा है और चतरा-हजारीबाग में सक्रिय है. इन उग्रवादियों के बारे में कहा जाता है कि टीपीसी के गठन के बाद इनकी संपत्ति में इजाफा हुआ है.
चार जिलों में बढ़ता गया टीपीसी का वर्चस्व
हजारीबाग, चतरा, लातेहार और पलामू में धीरे-धीरे माओवादियों की पकड़ कमजोर पड़ती गयी. माओवादियों के कमजोर पड़ने के साथ ही टीपीसी का वर्चस्व बढ़ता गया. हजारीबाग के बड़कागांव से होने वाले अवैध कोयला कारोबार, टंडवा, पिपरवार से कोयले की ट्रांसपोर्टिंग, लोहरदगा की बॉक्साइट ढुलाई समेत अन्य धंधों से मिलने वाले लेवी की राशि माओवादियों के बजाये टीपीसी के उग्रवादियों को मिलने लगी. 27 मार्च 2013 को कुंदा थाना क्षेत्र के लकड़बंधा गांव में भाकपा माओवादी के दस उग्रवादियों को मौत के घाट उतार टीपीसी ने अपनी मजबूती का अहसास कराया था.