Shyam Kishore Choubey
लगभग 26 महीने पुरानी अर्जुन मुंडा सरकार से जब 8 जनवरी 2013 को झामुमो ने समर्थन वापस ले लिया, तो किसी को हैरानी न हुई. हैरानी इस बात से हुई कि अर्जुन मुंडा जैसा खिलाड़ी राजनेता काल-चक्र की चाल समझने में चूक गया. इस विषय पर विस्तार से चर्चा के पूर्व यह जान लेना चाहिए कि मई 2010 में भाजपा ने झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने और उसके बाद राष्ट्रपति शासन के दौरान अगस्त-सितंबर में सरकार गठन के लिए जैसा नाच नचाया था, ठीक वैसे ही झामुमो ने जनवरी में मुंडा सरकार को अपदस्थ करने के पूर्व भाजपा को नचाया. यह मानकर चलना चाहिए कि मुंडा की यह तीसरी सरकार कमोबेश ठीक ही चल रही थी लेकिन खेल-खेल में चली गयी. यह राज बाद में खुला. उस समय तो हर कोई यही जान-समझ पाया था कि मुंडा के तत्कालीन डिप्टी और झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने स्थानीय नीति आदि मसलों पर सात सवालों वाला एक पत्र मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को पार्टी के दूत महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य और विनोद पांडेय के हाथों भिजवाया था. इस पत्र में सितंबर-2010 के समझौते के तहत शेष 28-28 महीने भाजपा और झामुमो द्वारा शासन चलाने की याद भर दिलायी गयी थी. भाजपा ने ऐसे किसी भी समझौते को झुठलाया था, जबकि अर्जुन मुंडा ने उन सात सवालों पर अपने लंबे लिखित जवाब से हेमंत को ही घेरा था और कहा था कि 28-28 महीने तक बारी-बारी से दोनों दलों द्वारा शासन चलाने की बात पर समन्वय समिति में चर्चा की जायेगी. भाजपा नेतृत्व में शासन के तबतक 28 महीने पूरे होने जा रहे थे. भाजपा-झामुमो सरकार के संचालन के लिए बनायी गई समन्वय समिति के अध्यक्ष झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन ही थे.
वर्ष 2010 में भाजपा ने झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने और उसके बाद राष्ट्रपति शासन के दौरान अगस्त-सितंबर में सरकार गठन के लिए जैसा नाच नचाया था, ठीक वैसे ही झामुमो ने जनवरी में मुंडा सरकार को अपदस्थ करने के पूर्व भाजपा को नचाया. यह मानकर चलना चाहिए कि मुंडा की यह तीसरी सरकार कमोबेश ठीक ही चल रही थी लेकिन खेल-खेल में चली गयी.
बाद में जो राजफाश हुआ और जिसे अभी तक बहुत सारे लोग जानते भी नहीं, उसके अनुसार चूंकि भाजपा ने सरकार गठन के पूर्व झामुमो को हद से ज्यादा झुकने के लिए मजबूर कर दिया था और बतौर मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा कुछ अधिक ही बॉसगिरी दिखलाने लगे थे, इसलिए उनको साइज में रखने की नीयत से यह पत्र दिया गया था. जैसा कि सूत्रों ने बताया था, अर्जुन मुंडा के प्रति शिबू सोरेन काफी हमदर्दी रखते थे. मुंडा ने जब झामुमो की राजनीति शुरू की थी और पहली बार विधायक चुने गये थे, तब गुरुजी के प्रति बहुत श्रद्धा रखते थे. वे अनुशासन प्रिय व्यक्ति हैं. इसलिए शिबू सरकार गिराना नहीं चाहते थे. चूंकि उस समय कांग्रेस भाव नहीं दे रही थी, इसलिए भी भाजपा का साथ पकड़े रहना ही राजनीतिक होशियारी थी. वे बस इतना ही चाहते थे कि मुंडा उनके पास आकर विमर्श कर लें. इसके विपरीत भाजपा ने एक तो 28-28 महीने सरकार चलाने की शर्त को झुठला दिया, दूसरे मुंडा ने समन्वय समिति में विमर्श करने की बात कह दी, जो शिबू और हेमंत को दिल पर लग गयी. उनके मन में बैठ गया कि अर्जुन मुंडा सामान्य लोकाचार के विपरीत जा रहे हैं. इसलिए झामुमो नेता ‘जो होगा, सो देखा जायेगा’ की आन पर आ गये. दूसरी बात यह भी कि हेमंत रांची से लेकर दिल्ली तक देख चुके थे, अब उनके पास अपनी महत्वाकांक्षा को परवान चढ़ाने का अवसर भी था.
उक्त 28-28 महीने राज करने का राज यह है कि जब मई 2010 में शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने देने को विवश होना पड़ा था, उस समय भाजपा-झामुमो में यह समझौता हुआ था लेकिन अमल में नहीं लाया जा सका था. सरकार बिना किसी फ्लोर टेस्ट के गिर चुकी थी और राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था. इसलिए इसके बाद बनी सरकार के लिए यह समझौता न तो बाध्यकारी था, न ही नैतिक. मुंडा के नेतृत्व में भाजपा-झामुमो की सरकार बेशर्त बनी थी. जैसा कि उसी समय अंतरंग सूत्रों ने इन पंक्तियों के लेखक को बताया था, हेमंत के पत्र के बाद जब हर पल स्थितियां विकट होती चली जा रही थीं, तब भाजपा शिबू-हेमंत से निकटता चाहने लगी थी. तत्कालीन भाजपा प्रमुख नितिन गडकरी ने छह जनवरी 2013 को फोन से संपर्क कर बात सुलटाने का प्रयास किया था और बीच का रास्ता निकालने की गुजारिश की थी. इधर से नेतृत्व परिवर्तन यानी अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री पद से हटाने की शर्त रखी गयी थी. उन्होंने जवाब में केंद्रीय पर्यवेक्षक के बतौर धर्मेंद्र प्रधान को भेजने की बात कही थी और यह भी अनुरोध किया था कि सरकार के भविष्य पर निर्णय लेने के लिए झामुमो ने सात जनवरी को दिन के तीन बजे जो आंतरिक बैठक बुलायी है, उसे पांच बजे तक टाल दे. धर्मेंद्र प्रधान सात जनवरी को सेवा विमान से दिन के दो बजे रांची पहुंचे तो हवाई अड्डे पर पत्रकारों के सवाल के जवाब में नेतृत्व परिवर्तन की बात से साफ इनकार कर दिया. यह खबर झामुमो खेमे तक पहुंची, तो बिना कोई देर किये तीन बजे ही बैठक बुला ली गयी. इस बैठक में झामुमो के दो सीनियर लीडर, जो उन दिनों मंत्री भी थे, हेमलाल मुर्मू और मथुरा प्रसाद महतो सरकार से समर्थन वापसी के पक्ष में नहीं थे. बाकी सभी एक स्वर से समर्थन वापस लेने की वकालत कर रहे थे. ऐसे भी, झामुमो में शिबू-हेमंत के विचारों से अलग फैसला होने की संभावना केवल सोची जा सकती है.
उधर क्राइसिस मैनेजर के रूप में दिल्ली से भेजे गये धर्मेंद्र प्रधान सीधे रांची के विधायक और वरिष्ठ नेता सीपी सिंह के आवास पर गये. वहां मंत्रणा की और अपराह्न 4.45 बजे शिबू सोरेन के आवास पहुंचे. तबतक हेमंत सोरेन का मीडिया ऐलान आ गया कि पार्टी विधायकों के निर्णय के अनुसार झामुमो मुंडा सरकार से समर्थन वापस ले रही है. यह सुनते ही शिबू सोरेन के आवास के गेट से धर्मेंद्र प्रधान उल्टे पांव लौट जाने को विवश हो गये. इसके बाद का राजनीतिक घटनाक्रम कुछ अधिक ही दिलचस्प है. सात जनवरी को संध्या समय शिबू सोरेन ने राज्यपाल से मुलाकात का समय मांगा, तो उनको अगले दिन 11 बजे आने को कहा गया. उधर अर्जुन मुंडा इस्तीफा कर विधानसभा भंग कराने की कूटनीति पर काम करने लगे. दोनों पक्षों के बीच चूहा-बिल्ली का खेल शुरू हो गया. झामुमो खेमा समर्थन वापसी की बाजी जीतना चाहता था, जबकि भाजपा खेमा सरकार और विधानसभा दोनों को भंग कराने की रणनीति में जुट गया. ऐसे समय में शिबू के पारिवारिक वकील संजीव कुमार की भूमिका महत्वपूर्ण रही. उनकी सलाह पर पार्टी विधायक दल की मीटिंग का हवाला देते हुए शिबू ने रात में ही राजभवन को सरकार से समर्थन वापसी की इत्तला फैक्स संदेश से कर दी. दूसरी ओर तय रणनीति के अनुसार अर्जुन मुंडा ने आठ जनवरी की सुबह मुख्यमंत्री आवास में कैबिनेट बैठक बुलायी, जिसमें झामुमो से कोई मंत्री शरीक तो न हुआ लेकिन प्रायः उसी समय स्वास्थ्य मंत्री हेमलाल मुर्मू 3, कांके रोड में देखे गये. उसी समय से झामुमो ने उनको इग्नोर करना शुरू कर दिया. बैठक में सिंगल प्वाइंट एजेंडे पर आनन-फानन में सहमति बनायी गयी. इसी आधार पर कैबिनेट भंग कर मुख्यमंत्री के इस्तीफा पत्र और विधानसभा भंग करने के सिफारिशी पत्र के साथ अर्जुन मुंडा और डिप्टी सीएम सुदेश महतो दिन के दस बजे राजभवन पहुंचे तो राज्यपाल डॉ सैय्यद अहमद ने उनका इस्तीफा तो स्वीकार कर लिया लेकिन विधानसभा भंग करने की सिफारिश को मानने से तकनीकी आधार पर मना कर दिया. वह तकनीकी आधार था, बीती रात ही शिबू का मिला वह फैक्स संदेश, जिसमें सरकार से समर्थन वापसी की अग्रिम सूचना दी गयी थी. राज्यपाल ने अर्जुन मुंडा को वैकल्पिक व्यवस्था होने तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का निर्देश दिया. कुछ ही देर बाद तय समय 11 बजे शिबू सोरेन सदलबल राजभवन पहुंचे और रात में भेजे गये फैक्स संदेश की मूल कॉपी सौंप दी.
इस प्रकार झारखंड की तीसरी विधानसभा में तीन साल में ही दो सरकारें अपदस्थ हो गयीं और राज्य को एक राष्ट्रपति शासन के दौर से भी गुजरना पड़ा. लेकिन अभी भी बहुत कुछ बाकी था. राज्यपाल की रिपोर्ट और केंद्र सरकार की सिफारिश के आधार पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राज्य में 18 जनवरी की शाम से राष्ट्रपति शासन लागू करने का आदेश जारी कर दिया. राज्यपाल ने विधानसभा निलंबित कर दी. (जारी)
(नोटः यह श्रृंखला लेखक के संस्मरणों पर आधारित है. इसमें छपी बातों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है.)
पहले की कड़ियां लिंक पर क्लिक करके पढ़ें
https://lagatar.in/pleasure-of-a-restless-state-11-unimaginable-accident/104827/
https://lagatar.in/the-pleasures-of-a-restless-state-10-sand-walls/104828/
https://lagatar.in/pleasure-of-a-restless-state-9-again-shibu-soren/104224/
https://lagatar.in/pleasures-of-a-restless-kingdom-8-juggling/103371/
https://lagatar.in/happiness-of-a-restless-state-7-babas-insolence/102916/
https://lagatar.in/pleasures-of-a-restless-state-6-babas-mind-fluttered/102202/
https://lagatar.in/pleasure-of-a-restless-kingdom-5-dhool-ka-phool/101392/
https://lagatar.in/happiness-of-a-restless-state-4-tension-and-tashan/100372/
https://lagatar.in/the-happiness-of-a-restless-state-rebellion/99790/
https://lagatar.in/pleasures-of-a-restless-state-2-treason-period/99243/
https://lagatar.in/pleasures-of-a-restless-state-midnight-labor/98644/