10 जुलाई 2013 को शीर्ष न्यायालय ने जो व्यवस्था दी, उसके अनुसार विधान मंडल के किसी भी सदस्य को अदालत द्वारा दो वर्ष या इससे अधिक की कारावास सजा सुनाये जाने के साथ ही संबंधित सदन से उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जायेगी और वह छह साल तक चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जायेगा. (इसी कड़ी में पढ़ें)
Shyam Kishore Choubey
लोकसभा चुनाव में झारखंड में हुई उथल-पुथल के बाद विधानसभा चुनाव में ‘आया राम-गया राम’ का जो सिलसिला चला, उस कहानी के पहले रुककर अपने उन माननीयों पर एक नजर डालना जरूरी हो गया है, जिनके अपने किस्से न केवल बहुचर्चित हुए, बल्कि उनसे राज्य को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी. ऐसे माननीयों की तादाद हालांकि कम ही है, लेकिन उनके विषय में जान लेना चाहिए ताकि सनद रहे और वक्त-जरूरत काम आये. यह जानना वोटरों के लिए ज्यादा आवश्यक है ताकि वे बहुत सोच-समझकर वोट दें. ऐसा न हो कि उनके वोट की तौहीन हो. ऐसा भी नहीं है कि इस किस्म के माननीय केवल झारखंड में ही होते रहे हैं, अपितु पूरे देश का यही हाल है, फिर भी सुधार यहां से शुरू हो तो एक नजीर बने. देश को यदि झारखंड से दिशा मिले तो इससे बेहतर क्या हो सकता है?
राजनीतिक कारणों से मंत्रिपरिषद से माननीयों की बर्खास्तगी भले ही राजनीतिक या व्यक्तिगत मसला हो, लेकिन सार्वजनिक जीवन में आया व्यक्ति यदि गर्हित अपराध में संलिप्त पाया जाये या ऐसा आर्थिक अपराध करे, जिससे उसे सजा हो जाय तो यह चिंता का विषय होना चाहिए. ऐसी बातें या घटनाएं वोटरों को निश्चय ही मालूम रहती हैं. इसके बावजूद वे यदि उनको ही अपना प्रतिनिधि चुनते हैं तो इस पर मंथन आवश्यक हो जाता है. मोटे तौर पर यह समझ लेना चाहिए कि संसद से पारित लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 के विभिन्न प्रावधानों में यह व्यवस्था थी कि आपराधिक मामलों में अदालत से कारावास की सजा सुनाई जाने के तीन महीने बाद संबंधित विधानमंडल उक्त सदस्य की सदस्यता समाप्त करने का निर्णय लेंगे. यह तीन महीने का समय उक्त सदस्य के द्वारा उच्चतर न्यायालय में अपील दाखिल करने और जमानत प्राप्त कर लेने के निमित्त दिया जाता था. इन प्रावधानों को लिली थॉमस एवं लोक प्रहरी के महासचिव एसएन शुक्ल ने सर्वोच्च न्यायालय में क्रमशः याचिका संख्या 490/2005 और 231/2005 के माध्यम से चुनौती दी थी. इन याचिकाओं पर लंबी सुनवाई के बाद 10 जुलाई 2013 को शीर्ष न्यायालय ने जो व्यवस्था दी, उसके अनुसार विधान मंडल के किसी भी सदस्य को अदालत द्वारा दो वर्ष या इससे अधिक की कारावास सजा सुनाये जाने के साथ ही संबंधित सदन से उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जायेगी और वह छह साल तक चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जायेगा.
26 दिसंबर 2014 को निर्णय हुआ कि निजामुद्दीन की सदस्यता यानी विधायकी सजा की तारीख 30 नवंबर 2013 के प्रभाव से रद कर दी जाये और बीच की अवधि में उनके द्वारा लिये गये वेतन-भत्तों और अन्य सुविधाओं की वसूली कर ली जाये. काफी फजीहत के बाद पूर्व माननीय ने उक्त रकम विधानसभा सचिवालय को लौटा दी. लेकिन लगभग 13 महीने तक न केवल उनका उपभोग करते रहे, अपितु इस अवधि में उनकी धौंस-पट्टी भी चलती रही, उसको रिटर्न कराने का कोई उपाय न मिला.
शीर्ष अदालत के उक्त न्याय निर्णय के छह महीने के अंदर झारखंड में पहली गाज गिरी राजधनवार विधानसभा क्षेत्र से जेवीएम के विधायक निजामुद्दीन अंसारी पर. गिरिडीह की अदालत ने 2003 में दर्ज एक आपराधिक मामले में निजामुद्दीन को 30 नवंबर 2013 को दो वर्ष के कारावास के साथ एक हजार रुपये आर्थिक दंड की सजा सुनाई थी. वे अपील में चले गये और जमानत प्राप्त कर ली. राजनीतिक हलके और मीडिया में यह बात सबको जरूर पता थी लेकिन सजा सुनानेवाली अदालत ने विधानसभा सचिवालय को अपने निर्णय से अवगत नहीं कराया. इससे उनकी विधायकी चलती रही. 2014 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपना नामांकन पत्र दाखिल किया तो निर्वाची पदाधिकारी को सजा संबंधी तथ्यों का पता चला और उन्होंने निजामुद्दीन की नामजदगी का पर्चा रद कर दिया. इसके बाद विधानसभा सचिवालय ने संबंधित अदालत से पत्राचार किया तो गिरिडीह के डीसी के माध्यम से संबंधित दस्तावेज प्राप्त हुए. इस हैरतअंगेज और दिलचस्प वाक्ये पर सवाल यह भी उठा कि संविधान की शपथ लेनेवाले निजामुद्दीन ने अपने तथ्यों को जिस तरीके से छिपाये रखा, उस पर कौन सी कार्रवाई की जाये? 26 दिसंबर 2014 को निर्णय हुआ कि निजामुद्दीन की सदस्यता यानी विधायकी सजा की तारीख 30 नवंबर 2013 के प्रभाव से रद कर दी जाये और बीच की अवधि में उनके द्वारा लिये गये वेतन-भत्तों और अन्य सुविधाओं की वसूली कर ली जाये. काफी फजीहत के बाद पूर्व माननीय ने उक्त रकम विधानसभा सचिवालय को लौटा दी. लेकिन लगभग 13 महीने तक न केवल उनका उपभोग करते रहे, अपितु इस अवधि में उनकी धौंस-पट्टी भी चलती रही, उसको रिटर्न कराने का कोई उपाय न मिला.
चौथी विधानसभा यानी 2009 के अंतिम दिनों से 2014 के बीच सदन के तीन सदस्यों की भी यही गति हुई. लोहरदगा से आजसू विधायक कमल किशोर भगत रांची के एक नामचीन डॉक्टर केके सिन्हा से 1994 में मारपीट और उनके परिसर में तोड़फोड़ करने के पुराने मामले में रांची के न्यायायुक्त-3 की अदालत द्वारा दोषी ठहराये गये थे. उनको 29 जून 2015 को उक्त अदालत ने ढाई वर्ष की कारावास की सजा सुनाई थी. विधानसभा सचिवालय ने इसी दिवस के प्रभाव से उनकी सदस्यता निरस्त करते हुए सुविधाएं वापस ले ली.
ऐसे ही गोमिया सीट से झामुमो विधायक योगेंद्र प्रसाद को 2010 के कोयला मामले में रामगढ़ के सबडिवीजनल कोर्ट ने तीन वर्ष की कारावास की सजा और पांच हजार रुपये अर्थ दंड की सजा सुनाई. अदालत के इस आदेश के आलोक में 31 जनवरी 2018 के प्रभाव से योगेंद्र महोदय की सदन से सदस्यता समाप्त कर दी गयी. हालांकि विधानसभा सचिवालय ने अपना यह आदेश 10 फरवरी 2018 को जारी किया था.
उसी काल में सिल्ली सीट से निर्वाचित झामुमो विधायक अमित कुमार को भी सदन से अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी. उन पर सोनाहातू के बीडीओ से 2006 में मारपीट करने का आरोप साबित हुआ था. इस मामले में अपर न्यायायुक्त, व्यवहार न्यायालय रांची ने 23 मार्च 2018 को फैसला सुनाते हुए अमित को दो वर्ष के कारावास की सजा बख्शी थी. विधानसभा सचिवालय ने अपना आदेश दो अप्रैल को जारी किया था, जिसमें उक्त विधायक की सदन से सदस्यता 23 मार्च 2018 के प्रभाव से निरस्त करने की तसदीक की गयी थी. (जारी)
नोटः यह श्रृंखला लेखक के संस्मरणों पर आधारित है. इसमें छपी बातों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है.)
पहले की कड़ियां लिंक पर क्लिक करके पढ़ें –
https://lagatar.in/pleasure-of-a-restless-state-23-flare-of-double-engine/112797/
https://lagatar.in/pleasure-of-a-restless-state-22-saryus-stream/112134/
https://lagatar.in/pleasures-of-a-restless-state-21-beginning-of-tug-of-war/111590/
https://lagatar.in/the-happiness-of-a-restless-state-20-the-land-ate-the-ground/111400/
https://lagatar.in/happiness-of-a-restless-state-19-the-beginning-of-the-cold-war/110531/
https://lagatar.in/the-pleasures-of-a-restless-state-18-teen-tikdam/109288/
https://lagatar.in/happiness-of-a-restless-state-17-non-tribal-cm/109235/
https://lagatar.in/happiness-of-a-restless-state-16-wave-of-change/108571/
https://lagatar.in/happiness-of-a-restless-state-15-some-of-him-some-of-them/107572/
https://lagatar.in/the-happiness-of-a-restless-state-hemant-the-king/107044/
https://lagatar.in/pleasures-of-a-restless-state-13-in-play/106227/
https://lagatar.in/the-happiness-of-a-restless-state-12-the-wilfulness-of-the-honorable/105745/
https://lagatar.in/pleasure-of-a-restless-state-11-unimaginable-accident/104827/
https://lagatar.in/the-pleasures-of-a-restless-state-10-sand-walls/104828/
https://lagatar.in/pleasure-of-a-restless-state-9-again-shibu-soren/104224/
https://lagatar.in/pleasures-of-a-restless-kingdom-8-juggling/103371/
https://lagatar.in/happiness-of-a-restless-state-7-babas-insolence/102916/
https://lagatar.in/pleasures-of-a-restless-state-6-babas-mind-fluttered/102202/
https://lagatar.in/pleasure-of-a-restless-kingdom-5-dhool-ka-phool/101392/
https://lagatar.in/happiness-of-a-restless-state-4-tension-and-tashan/100372/
https://lagatar.in/the-happiness-of-a-restless-state-rebellion/99790/
https://lagatar.in/pleasures-of-a-restless-state-2-treason-period/99243/
https://lagatar.in/pleasures-of-a-restless-state-midnight-labor/98644/