Ranchi: झारखंड के किसान कोरोना काल में दोहरी मार झेल रहे हैं. कोरोना संक्रमण बढ़ने की वजह से लगाये गये लॉकडाउन से किसानों की परेशानी और बढ़ गयी है. सबसे ज्यादा नुकसान तरबूज की खेती करने वाले किसानों को हुई है. अच्छी फसल और आमदनी होने की उम्मीद में किसानों ने बैंक से कर्ज लेकर तरबूज की खेती की. खूब मेहनत की, लेकिन अब उन्हें खरीदार नहीं मिल रहे हैं. छोटे किसान किसी तरह अपने तरबूज और दूसरी सब्जियों को हाट-बाजार में बेचकर लागत निकाल ले रहे हैं. लेकिन बड़े और मंझोले किसानों के खेतों में लगे तरबूज और सब्जियां बर्बाद हो रहे हैं. अच्छा मुनाफा मिलने की उम्मीद में किसानों ने 20-25 लाख रुपये तक खर्च कर दिया, लेकिन मुनाफा तो छोड़िये लागत भी नहीं निकल पा रहा है. महामारी के साथ-साथ मौसम भी किसानों की अग्निपरीक्षा ले रहा है. पिछले कुछ दिन से लगातार हुए बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के कारण किसानों का नुकसान और बढ़ गया है. सबसे ज्यादा नुकसान तरबूज और टमाटर की खेती करने वाले किसानों को हुई है.
बैजनाथ ने उगाये 300 टन तरबूज, लेकिन खरीदने वाला कोई नहीं
ओरमांझी के किसान बैजनाथ महतो ने अपने 30 एकड़ जमीन पर तरबूज और 5 एकड़ जमीन पर खरबूज की खेती की थी. 2 एकड़ में फूलगोभी, 2 एकड़ में टमाटर, 5 एकड़ में करेला, मिर्च, धनिया, भिंडी और फ्रैंचबीन लगाया था. खेती के लिए उन्होंने करीब 25 लाख रुपये खर्च कर दिया, लेकिन जैसे ही फसल तैयार हुआ कोरोना पीक पर पहुंच गया. बैजनाथ कहते हैं अपने खेतों में उगाये गये फलों और सब्जियों को बेचने के लिए कभी बाजार जाने की जरूरत नहीं पड़ी. कहते हैं तरबूज की खेती में पहली बार इतना बड़ा नुकसान हुआ है. जब कोरोना महामारी नहीं थी, तब हर रोज 40 से 50 टन तरबूज व्यापारी घर से खरीद ले जाते थे. झारखंड के अलावा बंगाल और बिहार के व्यापारियों की करीब 20 गाड़ियों में तरबूज और सब्जियां लोड होती थी. लेकिन पिछले एक महीने में 1 टन भी फसल नहीं निकल सका है. व्यापारी 2 रुपये किलो के भाव से भी तरबूज खरीदने को तैयार नहीं हैं. तरबूज की डिमांड भी घट गयी है. अगर एक हफ्ते के अंदर तरबूज और दूसरी सब्जियां नहीं बिकी तो काफी नुकसान होगा. बैजनाथ महतो ने कहा कि यह किसानों के लिए एक सबक भी है कि किसी एक ही सब्जी या फल की खेती पर ही निर्भर न हो जाएं. हजारों किसानों ने सिर्फ तरबूज की खेती कर ली और अब सबको नुकसान झेलना पड़ रहा है.
जनवरी में तरबूज की बुआई करने वालों को कम नुकसान
पिस्का नगड़ी के किसान विनोद केसरी ने 6 एकड़ में तरबूज की खेती की थी. करीब 50 टन तरबूज का उत्पादन हुआ था. खेती करने में 3.5 लाख रुपये लागत लगा था. लेकिन किस्मत अच्छी थी कि लागत का दोगुना मुनाफा हो गया. करीब 7 लाख रुपये तरबूज बेचकर प्राप्त हुए. विनोद कहते हैं कि उन्होंने जनवरी में ही तरबूज की खेती कर दी थी. मार्च-अप्रैल तक तरबूज तैयार हो गया और समय रहते उन्होंने बाजार में बेच दिया. झारखंड के अलावा पटना और बंगाल भी उनका तरबूज गया. 1 महीने पहले उन्होंने 10 से 12 रुपये किलो के भाव से तरबूज बेचा, लेकिन अब डिमांड घटने की वजह से 2 से 3 रुपये किलो बेचना पड़ रहा है. विनोद ने 2 एकड़ में टमाटर भी लगाया था. करीब 20 टन टमाटर की पैदावार हुई है. लेकिन टमाटर की खेती में उन्हें नुकसान उठाना पड़ा. 3 रुपये किलो भी लोग नहीं खरीद रहे हैं. विनोद के ही खेतों में उपजे टमाटर, भिंडी, सहजन और लौकी पिछले साल दुबई और ऑस्ट्रेलिया भेजे गये थे. लेकिन इस बार लॉकडाउन की सख्ती की वजह से राज्य के बाहर भी सब्जियां नहीं जा पा रही हैं.
बंगाल और बिहार के व्यापारी नहीं आये इस बार
रांची के डहू के किसान बहाली महतो ने 4 एकड़ में तरबूज की खेती की थी. 30 टन तरबूज का उत्पादन हुआ. करीब 5 लाख रुपये उन्होंने खर्च कर खेती की थी. उम्मीद थी कि कम से कम 10 लाख रुपये आयेंगे, लेकिन बड़ी मुश्किल से लागत लौट सका. बहाली कहते हैं 15 दिन पहले तक उन्होंने 10 रुपये प्रति किलो तरबूज बेचा था, लेकिन उसके बाद 2 रुपये प्रति किलो खरीदने के लिए भी व्यापारी तैयार नहीं हो रहे हैं. बहाली के तरबूज बंगाल और बिहार भी जाते हैं. लेकिन इस बार बंगाल चुनाव होने की वजह से वहां से गाड़ियां नहीं आई. बिहार से भी इस बार व्यापारी नहीं आये. इस साल सिर्फ बोकारो, हजारीबाग और कोडरमा के व्यापारियों ने ही उनसे तरबूज खरीदा है. उन्होंने कहा कि गनीमत है कि सरकार ने लोन माफ कर दिया है नहीं तो इस बार किसानों को आत्महत्या करने की नौबत आती.