उद्योग विभाग ने हटाने के लिए नवंबर 2021 में दिया था आदेश, 5 महीने बाद भी नहीं हुई कार्रवाई
आउटसोर्सिंग एजेंसी से सांठगांठ कर रिटायरमेंट के बाद से खादी बोर्ड में ही हैं जमे
Satya Sharan Mishra
Ranchi: झारखंड राज्य खादी ग्रामोद्योग बोर्ड भ्रष्टाचार, नेपोटिज्म और घोटाले का अड्डा बन चुका है. यहां सबसे ज्यादा मजे में और मलाईदार पदों पर आउटसोर्स से आये कर्मचारी हैं. 6 लोग ऐसे भी हैं, जो खादी बोर्ड से सालों पहले रिटायर होने के बाद भी बोर्ड में आउटसोर्स के जरिये काम कर रहे हैं. अशोक नगर की कंपनी बालाजी से यहां आउटसोर्स से कर्मचारी और पदाधिकारी रखे गये हैं. सबसे दिलचस्प बात ये है कि आउटसोर्स किये गये अधिकांश लोग खादी बोर्ड में काम कर रहे कर्मचारियों के ही रिश्तेदार हैं. उससे भी ज्यादा दिलचस्प बात ये है कि खादी बोर्ड उद्योग विभाग के आदेश को भी नहीं मानता है.
16 नवंबर 2021 को उद्योग विभाग के संयुक्त सचिव रोबिन टोप्पो ने खादी बोर्ड के सीईओ राखाल चंद्र बेसरा को एक पत्र भेजा था और निर्देश दिया था कि 2003 से 2016 के बीच बोर्ड में कार्यरत सभी रिटायर्ड कर्मचारियों की सेवा एजेंसी को वापस कर दी जाए. साथ ही आउटसोर्स पर रिटायर्ड कर्मचारी और रिश्तेदारों की सेवा आउटसोर्सिंग एजेंसी के माध्यम से लेने पर प्रतिबंध लगाया जाए, लेकिन 5 महीने बाद भी खादी बोर्ड ने कोई कार्रवाई नहीं की और रिटायर्ड कर्मी अभी भी कुर्सियों से चिपके हुए हैं.
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जुगाड़बाज कर्मचारी पेंशन के साथ सैलरी भी ले रहे
खादी बोर्ड से रिटायर हुए कर्मचारियों के दोनों हाथ घी में हैं. वे एक तरफ पेंशन उठा रहे हैं और दूसरी तरफ दफ्तर में सिर्फ बैठकर सैलरी भी बना रहे हैं. जो रिटायर कर्मी फिर से कॉन्ट्रैक्ट पर खादी बोर्ड में काम कर रहे हैं, उनकी उम्र 70 से 75 साल हो चुकी है. जाहिर है इस उम्र में वे काम तो नहीं ही कर पायेंगे. खादी बोर्ड में काम कर रहे दूसरे कर्मचारियों में इससे काफी नाराजगी है. उनका कहना है कि ये लोग सिर्फ कुर्सियां तोड़ने के पैसे ले रहे हैं. काम कुछ भी नहीं करते. आउटसोर्स कंपनी के साथ सांठ-गांठ कर जुगाड़बाज कर्मचारी फिर से खादी बोर्ड में इंट्री लेकर सरकार को चूना लगा रहे हैं, साथ ही बोर्ड को भी खोखला करते जा रहे हैं.
अभी फाइल ढूंढवा रहा विभाग
खादी बोर्ड के रिटायर कर्मी जो फिर से कॉन्ट्रैक्ट पर आये हैं. उनमें बदलेव भारती, सूबेदार पंडित, उपेंद्र ठाकुर, रईस आजम अंसारी, दुर्गानंद झा और सुजाता सहाय शामिल हैं. बलदेव भारती 2006 में रिटायर कर चुके हैं, लेकिन रिटायरमेंट के बाद से लगातार अबतक वे वहीं जमे हुए हैं. सूबेदार पंडित 2013 में रिटायर ही हुए थे. दुर्गानंद झा और उपेंद्र ठाकुर 2014 में रिटायर हुए थे. वहीं रईस आजम अंसारी 2016 में रिटायर हुए थे. नवंबर 2021 में इन्हें हटाने का आदेश उद्योग विभाग ने जारी किया था, लेकिन इन लोगों ने खादी बोर्ड में अपनी जड़ें इतनी गहरी कर ली हैं या यूं कहें कि खादी बोर्ड इस तरह अपनी मुट्ठी में कर रखा है कि इन्हें हटाया नहीं जा पा रहा है.
आरोप है कि खादी बोर्ड के सीईओ राखाल चंद्र बेसरा का भी इन्हें संरक्षण प्राप्त है. इस संबंध में राखाल चंद्र बेसरा से बात करने की कोशिश की गई. लेकिन वे दफ्तर में नहीं मिले और न ही उनका फोन लगा. वहीं रिटायर्ड कर्मियों को हटाने का आदेश जारी करने वाले उद्योग विभाग के संयुक्त सचिव रॉबिन टोप्पो ने कहा कि मामले से संबंधित फाइल ढुंढवा रहे हैं. उसके बाद ही बताया जा सकेगा कि मामला कहां तक पहुंचा है.
जयनंदू के समय शुरू हुई थी आउटसोर्सिंग की परंपरा
खादी बोर्ड शुरू से ही विवाद में रहा है. सबसे ज्यादा विवादास्पद पूर्व अध्यक्ष जयनंदू का कार्यकाल रहा है. बताया जाता है कि रिटायर्ड कर्मियों को आउटसोर्स पर लाने का काम भी उनके ही कार्यकाल में हुआ था. बोर्ड में अनुभवी कर्मियों की कमी बातकर रिटायर्ड कर्मियों को वापस लाया गया. लेकिन इसके पीछे वजह कुछ और ही अनुभव का था. पूर्व अध्यक्ष संजय सेठ के समय भी रिटायर्ड कर्मी आराम से काम करते रहे. उन्होंने इसपर कोई कार्रवाई नहीं की.
पदेन अध्यक्ष पूजा सिंघल भी बोर्ड में नहीं लेतीं रुचि
संजय सेठ के इस्तीफा देने के बाद 3 साल से खादी बोर्ड अध्यक्ष विहीन है. जिसके कारण बोर्ड अधिकारियों के नियंत्रण में है. अफसरशाही यहां पूरी तरह हावी हो चुकी है. आरसी बेसरा उप मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी से सीईओ बना दिये गये. अब पूरा बोर्ड उनके ही जिम्मे चल रहा है. उद्योग विभाग की सचिव पूजा सिंघल बोर्ड की पदेन अध्यक्ष हैं, लेकिन वे भी बोर्ड में रुचि नहीं लेतीं और यहां के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करती हैं. यही वजह है कि नवंबर में उद्योग विभाग के निकाले गये आदेश का अबतक खादी बोर्ड ने पालन नहीं किया.
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