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पतन का दौर था 90 का दशक, अंग्रेजी मीडिया ने बिहार की पीड़ा कभी नहीं बताई- हरिवंश

Ranchi: वर्ष 1990 से 2005 तक बिहार के पतन का दौर था. यह वो दौर था जब बिहार में राजनीतिक पतन, जातिवाद, हिंसा, नरसंहार चरम पर था. उस वक्त रात छोड़िये दिन के उजाले में भी कोई अपने घर में महफूज नहीं था, लेकिन किसी भी मुद्दे पर नैरेटिव तय करने वाली अंग्रेजी मीडिया ने बिहार की हालत को, बिहार के लोगों की पीड़ा को अंग्रेजी में बयां नहीं किया. यह बातें राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने कहा. वे रांची के ऑड्रे हाउस में भाजपा नेता मृत्युंजय शर्मा की लिखी किताब ब्रोकन प्रॉमिसेस का विमोचन करने के बाद कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने किताब में बिहार की हालात को अंग्रेजी में बयां करने के लिए मृत्युंजय को बधाई दी. हरिवंश ने कहा कि 90 के दशक के नरसंहारों को उन्होंने देखा है. उस वक्त दिन के उजाले में गांवों के घर बंद होते थे. औरतों की पीड़ा आप बयां नहीं कर सकते. हालत इतनी बुरी हो चुकी थी कि लोग अपना घर छोड़कर पलायन कर रहे थे. इसे भी पढ़ें -आरएसएस">https://lagatar.in/rss-chief-mohan-bhagwat-supports-reservation-says-some-people-are-circulating-false-videos/">आरएसएस

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उदारीकरण में कई राज्यों ने बदली अपनी तकदीर, लेकिन बदल न सका बिहार

हरिवंश ने कहा कि बिहार की बीमारी की शुरुआत आजादी के बाद से शुरू हो चुकी थी. 70-80 के दशक में वहां जाति के आधार पर सांसद, विधायक और सरकारें बनने लगी. 80 के दशक में देश-दुनिया के अर्थशास्त्रियों ने बिहार को बीमारू राज्य कहना शुरू कर दिया. 1957 में बेगूसराय से बूथ कैप्चरिंग की शुरूआत हो गई. कहा कि उदारीकरण के बाद देश के कई राज्यों ने अपनी तकदीर बदली, लेकिन बिहार न बदल सका. अब धीरे-धीरे हालात बदल रहे हैं. उन्होंने कहा कि सत्ता में विजनलेस लोगों को लाने पर यही हाल होगा. इसलिए जनता उन्हें ही चुने जिसके पास विजन हो.

90 के दशक के जंगलराज के कारण हजारों लोगों ने किया पलायन- बाबूलाल

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी ने कहा कि झारखंड से बिहार अलग होने के पीछे राजनीतिक कारण है. संयुक्त बिहार में झारखंड खनिज और उद्योगों से भरा हुआ था, लेकिन राजनीति में दक्षिण बिहार (झारखंड) के लोगों का प्रतिनिधित्व कम था. बिहार की राजनीति उत्तर बिहार में ही घूमती रहती थी. दक्षिण बिहार की खनिजों का दोहन होता था, लेकिन विकास नहीं हो रहा था. ऐसे में अलग झारखंड राज्य की मांग तेज हुई. आंदोलन शुरू हुए और अलग राज्य बना. बाबूलाल ने कहा किसी भी राज्य के विकास के लिए जरूरी है कि वहां कानून-व्यवस्था मजबूत हो. अमन-चैन होगा तभी निवेश होगा और प्रदेश संपन्न होगा, लेकिन बिहार में 90 के दशक में बिगड़ी कानून-व्यवस्था के कारण संपन्न लोग अपना घर-बार छोड़कर पलायन कर गये. इस कारण गरीबी और बढ़ी.

बिहार के शोषण और पीड़ा की डायरी है ब्रोकन प्रॉमिसेस- अशोक भगत

पद्मश्री अशोक भगत ने कहा कि वे भी जेपी मूवमेंट के सिपाही रहे हैं. 90 के दशक में बिहार की हालात के गवाह रहे हैं. ब्रोकन प्रॉमिसेस को उन्होंने बिहार के शोषण और पीड़ा की डायरी बताया. कहा कि बिहार राजनीति, अपराध, वामपंथ समेत कई चीजों के प्रयोग की धरती रही है. उस दौर में जनता जागरूक नहीं हुआ करती थी. उन्हें राजनीति, राजनेताओं और देश-दुनिया से सरोकार नहीं रहता था. लेकिन अब धीरे-धीरे परिवर्तन आया है. लोग जागरूक हो रहे हैं. अब तो स्थिती ये है कि किशोर और युवा पांच-पांच हजार रुपये में बूथ मैनेज करने के लिए तैयार हैं.

90 के दशक में बिहार ट्रेजडी का दौर था- मृत्युंजय शर्मा

ब्रोकन प्रॉमिसेस के लेखक मृत्युंजय शर्मा ने कहा कि 90 के दशक में कश्मीर की हालत को लेकर उन्होंने कई किताबें पढ़ी, लेकिन बिहार की हालत पर एक भी किताब उन्हें नहीं मिली, तब जाकर उन्होंने यह किताब लिखी. 90 के दशक में बिहार में ट्रेजडी थी. बिहार में 60 से अधिक नरसंहार हुए और 600 से अधिक लोग मारे गये. उन्होंने कहा कि बिहार का पतन लालू यादव के राज में हुआ. 70-80 के दशक में जो बाहुबली और क्रिमिनल बूथ लूटकर नेताओं को चुनाव जीताते थे, वे लोग 90 के दशक में राजनीति में आ गये और चुनाव जीतने लगे. लालू यादव ने ऐसे बाहुबलियों को उनका इलाका बांट दिया. वहां के जंगलराज पर आंखें मूंद ली. जाति के आधार पर राजनीति होने लगी.

बिहार के जंगल राज और लालू के शासन पर केंद्रित है किताब- मीनाक्षी ठाकुर

वेस्टलैंड बुक्स ने ब्रोकन प्रॉमिसेस का प्रकाशन और संपादन किया है. इसकी प्रकाशक मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि यह किताब बिहार के जंगल राज और लालू प्रसाद यादव के विनाशकारी शासन पर केंद्रित है. उन्होंने कहा कि बिहारी शब्द आज भी अपशब्द की तरह बिहार के लोगों के लिए इस्तेमाल होता है. इसे भी पढ़ें -बीजेपी">https://lagatar.in/bjp-and-congress-will-have-to-penetrate-the-chakravyuh/">बीजेपी

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