
सुकमा में नक्सली हमले में जवानों के शहीद होने की घटना पर मार्मिक लेख - हम बाइस

Piyush Joshi कौन थे हम बाइस (22)? इस देश के साधारण परिवार के बेटे. कई हम जैसे सुबह-शाम गांव के मैदान में लगाते हैं दौड़, सेना में भर्ती होने के लिए. हम कोई सांसद या विधायक नहीं, जो देश मातम मनाए हमारे जाने का. हम कोई धनाढ्य कॉर्पोरेट नहीं, जिसके घर के बाहर एक गाड़ी मिलने पर सरकारें हिल जाएं. हम इस देश की माटी के लाल थे. जिसकी माटी आज हमारे रक्त से लाल है. आप थकते नहीं हमारी शहादत लेते-लेते ? आप सकते में क्यों नहीं हैं, जैसे एक अभिनेत्री के बयान से आ जाते हैं. हमारी क्या बिसात और क्या औकात, सिवा एक या दो दिन की खबरों के. जो देशभक्ति उबालने के काम आती है. और देशभक्ति उबल कर जल्द ही ठंड़ी हो जाती है. बासी चाय की तरह. अगली शहादत पर फिर उबलने, उकलने के लिए बैठी तैयार. क्यों हमारे ही देश के लोग हमें मारने को यूं उतारु हैं ? खैर, हम बाईस, शनै शनै चौबीस हजार भी बन जाएं, तो भी किसके पेट में दुखेगा. हमारे परिवार यदि पेंशन के लिए भटके भी तो भी इस देश की भ्रष्ट व्यवस्था को कोई फर्क नहीं पड़ता. किसी धर्म को आहत करने वाली कोई बात नहीं हैं ये शहादत, जो देश सोचे, विचारे. हम बाईस, कुछ जलेंगे, कुछ गड़ेंगे. छोडेंगे एक बूढ़ा किसान बाप, जिसे गर्वित होने का पूरा समाज बोलेगा, जवान बेटे की शहादत पर. ऐसी लाश, जिसके बोझ का अंदाज उस बाप के अलावा किसी को भी क्या होगा? हम बाईस, जो मरे हैं, देश के लिए, हमेशा की तरह. हम बाईस, शायद बेवजूद से, जिनपर आप कुछ घंटों का गर्व करेंगे. हम बाईस, जिनकी मृत्यु पर दर्द है भारत मां को, जो शायद अंतहीन पीड़ा को भोगने के लिए अभिशप्त हैं. क्योंकि जो संभाले हैं थाती, मां की देखभाल की, उनकी नज़र मां की बचत के संदूक पर है. लालची भेड़ियों से लार टपकाते वह और वीर सपूत से खून बहाते हम. डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.
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