alt="" width="600" height="400" /> विशेष रूप से शोक्ताइन महिलाएं दिन भर में सात बार मंदिर में जल अर्पित करती रहीं. खुले बदन और हाथों में ‘बेथ’ (एक प्रकार की धार्मिक डंडी) लिए श्रद्धालु, ढोल-नगाड़ों की गूंज के साथ दोपहर 3:30 बजे अरगोड़ा तालाब में स्नान करने पहुंचे. वहां से एक पंक्ति में सभी मंदिर लौटे और शिव-पार्वती के समक्ष एक पैर पर परिक्रमा की. यह दृश्य आस्था और आत्मसमर्पण का जीवंत प्रतीक बना. फूलखोंसी आज, झूलन कल : मंडा पूजा का मुख्य आकर्षण दहकते अंगारों पर चलने की ‘फूलखोसी’ नामक विशेष पूजा होती है, जिसमें श्रद्धालु 18 फीट लंबे जलते अंगारों पर नंगे पांव चलकर भक्ति का परिचय देते हैं. इस अनुष्ठान की शुरुआत पटभोक्ता मनसन यादव द्वारा की जाएगी. बेथ की विशेष पूजा (पहलवंशा) पंडित सीताराम द्वारा की जाएगी, जबकि फूलखोसी की अर्पण क्रिया शंकर लोहरा और डारबिन लोहरा द्वारा निभाई जाएगी. संपूर्ण पूजा-पाठ का संचालन नामकुम आरा बड़ाम से आमंत्रित गोसाई परक्षित गोस्वामी द्वारा किया जा रहा है. तीन वर्ष पुराना है मां पार्वती का पाठ : दहकते अंगारों पर चलने वाले श्रद्धालुओं में शामिल अर्जुन लोहरा ने बताया कि मां पार्वती का स्वरूप बड़े नीम के पेड़ की लकड़ी से निर्मित किया गया है. यह विशेष पाठ तीन वर्ष पुराना है और पूरे आयोजन की आत्मा माना जाता है. इसकी पूजा अरगोड़ा पाहन टोली से प्रारंभ हुई थी. आज जितने भोक्ता शामिल हैं, उतनी ही संख्या में शोक्ताइन भी मौजूद रहीं. अब तक इस पाठ को 9-10 बार बदला जा चुका है. चार मई से हुई थी मंडा पूजा की शुरुआत : मंडा पूजा की शुरुआत 4 मई को अरगोड़ा पाहन टोली से हुई थी. मां पार्वती के स्वरूप (पाठ) को लेकर बाजरा, मधुकम, हेहल, कडरू, डिबडीह, दीपाटोली, चापु टोली सहित 15 से अधिक मोहल्लों में भव्य शोभायात्रा निकाली गई थी. इस दौरान पाठ को प्रत्येक भोक्ता के घर ले जाकर पूजन किया गया.

मंडा पूजा में शिव-पार्वती के प्रति आस्था, परंपरा व संस्कृति का दिखा अद्भुत संगम

Ranchi : श्री मंडा पूजा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम समिति, अरगोड़ा द्वारा आयोजित 11 दिवसीय मंडा पूजा के दसवें दिन शिव-पार्वती के प्रति आस्था, परंपरा और संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिला.पूरे आयोजन के दौरान श्रद्धालुओं ने धार्मिक अनुशासन का पालन करते हुए अरगोड़ा तालाब में सुबह-शाम पवित्र स्नान किया. पूजा काल में साबुन, कंघी, तेल और दर्पण के प्रयोग से परहेज़ किया गया. दिनचर्या की शुरुआत सामूहिक रूप से बुढ़ा मंदिर, अरगोड़ा में विधिवत पूजा-अर्चना से हुई, जिसमें 300 से अधिक भोक्ता (पुरुष श्रद्धालु) और शोक्ताइन (महिला श्रद्धालु) शामिल हुए.
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alt="" width="600" height="400" /> विशेष रूप से शोक्ताइन महिलाएं दिन भर में सात बार मंदिर में जल अर्पित करती रहीं. खुले बदन और हाथों में ‘बेथ’ (एक प्रकार की धार्मिक डंडी) लिए श्रद्धालु, ढोल-नगाड़ों की गूंज के साथ दोपहर 3:30 बजे अरगोड़ा तालाब में स्नान करने पहुंचे. वहां से एक पंक्ति में सभी मंदिर लौटे और शिव-पार्वती के समक्ष एक पैर पर परिक्रमा की. यह दृश्य आस्था और आत्मसमर्पण का जीवंत प्रतीक बना. फूलखोंसी आज, झूलन कल : मंडा पूजा का मुख्य आकर्षण दहकते अंगारों पर चलने की ‘फूलखोसी’ नामक विशेष पूजा होती है, जिसमें श्रद्धालु 18 फीट लंबे जलते अंगारों पर नंगे पांव चलकर भक्ति का परिचय देते हैं. इस अनुष्ठान की शुरुआत पटभोक्ता मनसन यादव द्वारा की जाएगी. बेथ की विशेष पूजा (पहलवंशा) पंडित सीताराम द्वारा की जाएगी, जबकि फूलखोसी की अर्पण क्रिया शंकर लोहरा और डारबिन लोहरा द्वारा निभाई जाएगी. संपूर्ण पूजा-पाठ का संचालन नामकुम आरा बड़ाम से आमंत्रित गोसाई परक्षित गोस्वामी द्वारा किया जा रहा है. तीन वर्ष पुराना है मां पार्वती का पाठ : दहकते अंगारों पर चलने वाले श्रद्धालुओं में शामिल अर्जुन लोहरा ने बताया कि मां पार्वती का स्वरूप बड़े नीम के पेड़ की लकड़ी से निर्मित किया गया है. यह विशेष पाठ तीन वर्ष पुराना है और पूरे आयोजन की आत्मा माना जाता है. इसकी पूजा अरगोड़ा पाहन टोली से प्रारंभ हुई थी. आज जितने भोक्ता शामिल हैं, उतनी ही संख्या में शोक्ताइन भी मौजूद रहीं. अब तक इस पाठ को 9-10 बार बदला जा चुका है. चार मई से हुई थी मंडा पूजा की शुरुआत : मंडा पूजा की शुरुआत 4 मई को अरगोड़ा पाहन टोली से हुई थी. मां पार्वती के स्वरूप (पाठ) को लेकर बाजरा, मधुकम, हेहल, कडरू, डिबडीह, दीपाटोली, चापु टोली सहित 15 से अधिक मोहल्लों में भव्य शोभायात्रा निकाली गई थी. इस दौरान पाठ को प्रत्येक भोक्ता के घर ले जाकर पूजन किया गया.
alt="" width="600" height="400" /> विशेष रूप से शोक्ताइन महिलाएं दिन भर में सात बार मंदिर में जल अर्पित करती रहीं. खुले बदन और हाथों में ‘बेथ’ (एक प्रकार की धार्मिक डंडी) लिए श्रद्धालु, ढोल-नगाड़ों की गूंज के साथ दोपहर 3:30 बजे अरगोड़ा तालाब में स्नान करने पहुंचे. वहां से एक पंक्ति में सभी मंदिर लौटे और शिव-पार्वती के समक्ष एक पैर पर परिक्रमा की. यह दृश्य आस्था और आत्मसमर्पण का जीवंत प्रतीक बना. फूलखोंसी आज, झूलन कल : मंडा पूजा का मुख्य आकर्षण दहकते अंगारों पर चलने की ‘फूलखोसी’ नामक विशेष पूजा होती है, जिसमें श्रद्धालु 18 फीट लंबे जलते अंगारों पर नंगे पांव चलकर भक्ति का परिचय देते हैं. इस अनुष्ठान की शुरुआत पटभोक्ता मनसन यादव द्वारा की जाएगी. बेथ की विशेष पूजा (पहलवंशा) पंडित सीताराम द्वारा की जाएगी, जबकि फूलखोसी की अर्पण क्रिया शंकर लोहरा और डारबिन लोहरा द्वारा निभाई जाएगी. संपूर्ण पूजा-पाठ का संचालन नामकुम आरा बड़ाम से आमंत्रित गोसाई परक्षित गोस्वामी द्वारा किया जा रहा है. तीन वर्ष पुराना है मां पार्वती का पाठ : दहकते अंगारों पर चलने वाले श्रद्धालुओं में शामिल अर्जुन लोहरा ने बताया कि मां पार्वती का स्वरूप बड़े नीम के पेड़ की लकड़ी से निर्मित किया गया है. यह विशेष पाठ तीन वर्ष पुराना है और पूरे आयोजन की आत्मा माना जाता है. इसकी पूजा अरगोड़ा पाहन टोली से प्रारंभ हुई थी. आज जितने भोक्ता शामिल हैं, उतनी ही संख्या में शोक्ताइन भी मौजूद रहीं. अब तक इस पाठ को 9-10 बार बदला जा चुका है. चार मई से हुई थी मंडा पूजा की शुरुआत : मंडा पूजा की शुरुआत 4 मई को अरगोड़ा पाहन टोली से हुई थी. मां पार्वती के स्वरूप (पाठ) को लेकर बाजरा, मधुकम, हेहल, कडरू, डिबडीह, दीपाटोली, चापु टोली सहित 15 से अधिक मोहल्लों में भव्य शोभायात्रा निकाली गई थी. इस दौरान पाठ को प्रत्येक भोक्ता के घर ले जाकर पूजन किया गया.