- पूर्व प्राचार्य ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री राज्यपाल समेत शीर्षस्थ अधिकारियों को लिखा पत्र
- कहा- प्रेझा फाउंडेशन को अक्षम और संसाधनहीन, डायरेक्टर पर हैं गंभीर आरोप
Adityapur (Sanjeev Mehta) : झारखंड राज्य के आठ पॉलीटेक्निक संस्थानों को निजी हाथों में सौंपने के कैबिनेट के निर्णय पर सवाल उठाते हुए आदित्यपुर के एक वरिष्ठ नागरिक और पॉलीटेक्निक संस्थान के पूर्व प्राचार्य रहे प्रो. सुरेंद्र कुमार महतो ने देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और झारखंड के राज्यपाल समेत सभी शीर्षस्थ अधिकारियों को पत्र लिखकर उन्हें मेल के माध्यम से भेजा है. उन्होंने जिस प्रेझा फाउंडेशन को आठों पॉलीटेक्निक को संचालित करने को सौंपने का निर्णय लिया गया है उसे अक्षम और संसाधनहीन बताया है. प्रो. महतो ने पत्र में लिखा है कि मैं एक राज्य का प्रबुद्ध नागरिक की हैसियत से इस विषय में कहना चाहता हूं कि विगत 3-4 वर्षों तक उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग झारखण्ड में सेवा दे चुका हूं.
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मैं झारखंड सरकार के उच्च एवम तकनीकी शिक्षा मंत्री-सह मुख्यमंत्री के समक्ष इस बात का विरोध कर रहा हूं कि राज्य एवम राज्य के गरीब एवम आर्थिक रूप से पिछड़े एवम अल्प संख्यक वर्ग के छात्र छात्राओं के हित में नवसृजित इन 8 राजकीय पॉलीटेक्निक राजकीय पॉलीटेक्निक खूंटी , राजकीय पॉलीटेक्निक चतरा , राजकीय पॉलीटेक्निक लोहरदग्गा, राजकीय पॉलीटेक्निक हजारीबाग, राजकीय पॉलीटेक्निक जामताड़ा, राजकीय पॉलीटेक्निक गोड्डा, राजकीय पॉलीटेक्निक बगोदर एवम राजकीय पॉलीटेक्निक पलामू को किसी भी निजी संस्था के हाथों में संचालन के लिए न दिया जाए.
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उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा है कि पैसे और पद के लालच में उच्च एवम तकनीकी शिक्षा विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव के के खंडेलवाल एवम तत्कालीन तकनीकी शिक्षा निदेशक डॉ अरूण कुमार ने राज्य सरकार को गलत रिपोर्ट प्रस्तुत कर यह निर्णय लेने पर मज़बूर किया है. राज्य एवम केंद्र सरकार (शिक्षा विभाग) द्वारा दी गई राशि से उसपर निर्मित संस्थान के भवनो को “नॉमिनेशन “के आधार पर सरकार के समक्ष गलत एवम भ्रामक प्रस्ताव भेजा गया है. इससे एक निजी संस्था प्रेझा फाउंडेशन को इन 8 राजकीय पॉलीटेक्निक संस्थानों के संचालन के लिए झारखण्ड सरकार के कैबिनेट से अनुमोदित करवाया है.
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सरकार उनके इस चाल को समझ न सकी और सरकार ने उनकी इस मंशा को नजर अंदाज कर बिना समीक्षा किए ही विभाग के इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है. बता दें कि दिनांक 12.3.24 को आयोजित कैबिनेट की बैठक में इन 8 संस्थानों को संचालित करने के लिए 77.60 करोड़ रूपए की स्वीकृति भी दी है. प्रेझा फाउंडेशन भी सरकार के इसी निर्णय की आस में विगत कई वर्षों से बैठा था कि कब सरकार से पैसा मिले और उसका बारा न्यारा कर बंदरबांट कर सकूं. उन्होंने जानकारी देते हुए कहा है कि इन संस्थानों को निजी हाथों में सौंपने का विरोध कोडरमा सांसदीय क्षेत्र की सांसद – सह – केन्द्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नापूर्णा देवी भी पूर्व में ही कर चुकी है. फिर भी सरकार ने इसपर अमल नहीं किया.
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उन्होंने कहा है कि सरकार को गलत प्रस्ताव देने वाले खंडेलवाल और अरूण कुमार ने उच्च एवम तकनीकी शिक्षा मंत्री और सरकार के समक्ष इसलिए भेजा कि वे अपनी सेवानिवृति के पश्चात उक्त संस्था के साथ जुड़कर अपना रोटी सेक सकें. वे दोनों वर्ष 2022 से सेवानिवृत हैं. जब दिनांक 04.12.2020 को तत्कालीन विभागीय मंत्री – सह – मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में संपन्न बैठक में विभागीय ज्ञापांक 27 दिनांक 12.01.2021 द्वारा यह निर्णय हुआ था कि राज्य के इन 8 नव निर्मित एवम नवसृजित राजकीय पॉलीटेक्निक संस्थानों को राज्य सरकार अपने स्तर से सत्र 2021- 22 से संचालित करेंगी. फिर निर्णय में यह बदलाव अचानक क्यों और किसके निर्देश पर किया गया?
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सरकार ने विभाग के इस ” गेम ” प्रस्ताव को न समझकर और इसको बिना रिव्यू किए ही अनुमोदित कर दिया है. ये शायद सरकार की बहुत बड़ी भूल हो सकती है. अनुरोध है कि राज्य एवम छात्र छात्राओं के हित में सरकार कृपया इसमें सुधार करें और इस प्रस्ताव को शीघ्र निरस्त करते हुए तत्काल प्रभाव से वापस लें. उन्होंने कहा है कि प्रेझा फाउंडेशन को कोई भी अपना अस्तित्व भी नहीं है और न कोई अपना भवन है. इतना ही नहीं इसका कोई भी तकनीकी संस्थान संचालन करने का पूर्व से इसे कोई अनुभव ही है.
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यह कभी कभार कुछ बाह्य छात्रों से प्रशिक्षण शुल्क लेकर कुछ संक्षिप्त प्रक्षिक्षण का कार्यक्रम संचालित करता रहता है. इसके पास 3 वर्षीय डिप्लोमा पाठयक्रम चलाने का भी बिल्कुल कोई अनुभव नहीं है. इस संस्था से कुछ आईआईटियन जुड़े हुए अवश्य हैं और उन्हीं के प्रभाव में आकर उच्च एवम तकनीकी शिक्षा विभाग झारखण्ड सरकार के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव के के खंडेलवाल ने अपनी सेवा के कुछ दिन पूर्व ही इन 8 नव राजकीय पॉलीटेक्निक संस्थानों को संचालित करने के लिए प्रेझा फाउंडेशन को मुफ्त में हस्तांतरित करने का प्रस्ताव राज्य सरकार को देकर अनुमोदित करवा लिया है. उन्होंने कहा है कि झारखंड राज्य के इन 8 राजकीय पोलिटेकनिक संस्थानो के भवन निर्माण एवम राज्य सरकार द्वारा संचालित करने के लिए केंद्र सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा करोड़ों में राशि दी गई है, फिर क्यों राज्य सरकार के उच्च एवम तकनीकी शिक्षा विभाग स्वयं अपने स्तर से इन्हे संचालित न कर किसी निजी संस्था एवं उसमें शामिल कतिपय सदस्यों को इन भवनों को उनके स्वयं के संस्था द्वारा संचालित करवाने ने के लिए उतावला है. क्या इस विभाग के पास स्किल्ड एवम अनुभवी मैनपावर की कमी है?
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कृपया बताएं की जब विभाग संसाधन एवं सभी तरह से मजबूत स्थिति में हैं तो फिर निजी संस्था को किसके प्रभाव में आकर इन सरकारी पॉलिटेक्निक संस्थानों को भूमि, भवन और पैसे देकर सरकार द्वारा सबल किया जा रहा है ? प्रेझा फाउंडेशन के माध्यम से इन 8 पोलिटेकनिक संस्थानों का संचालन करवाने से प्रतिवर्ष राज्य के 2500- 3000 निर्धन, पिछड़े, अ०जा०, अ०ज०जा० एवम सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के बीच शिक्षा दीक्षा में ह्रास आ सकता है और उनका पलायन कहीं अन्यत्र शिक्षा ग्रहण के लिए हो सकता है. चूंकि इस संस्थां द्वारा शिक्षण शुल्क सहित अन्य शुल्क का निर्धारण अपने ट्रस्ट के माध्यम से होगा जो राज्य के राजकीय पॉलीटेक्निक/राजकीय महिला पॉलिटेक्निक संस्थानों की अपेक्षाकृत निश्चित तौर पर बहुत अधिक होगा. यह बोझ यहां के छात्रों के लिए असहनीय होगा.
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उन्होंने देश के प्रधानमंत्री एवम केन्द्रीय जांच एजेंसियों से अनुरोध किया है कि इस बिंदु की गहनता से जांच कराएं. आखिर सरकार ने किसके प्रभाव एवम दबाव में आकर प्रेझा फाउंडेशन नामक इस संस्था को सरकारी ज़मीन, उपर से केन्द्र और राज्य सरकार की करोड़ो रुपये की राशि से निर्मित भवनों और अब 77.60 करोड़ रुपए की राशि मुफ्त में इन 8 पॉलीटेक्निक संस्थान को संचालन के लिए दिया है. उन्होंने प्रधानमंत्री से सादर अनुरोध किया है कि वे तत्कालीन उच्च एवम तकनीकी शिक्षा विभाग झारखंड सरकार के अपर मुख्य सचिव के के खंडेलवाल और तत्कालीन तकनीकी शिक्षा निदेशक डॉ अरुण कुमार के इस मामले में संदिग्घ भूमिका की जांच केन्द्रीय जॉच एजेंसी से कराने की कृपा करेंगे. उन्होंने कहा कि बता दें प्रेझा फाउंडेशन के चेयरमैन मेसर्स टाटा स्टील लिमिटेड जमशेदपुर के पूर्व प्रबंध निदेशक बी मुथुरमण हैं. उनपर अपने कार्यकाल में वर्ष 2005-09 के बीच सर्वाधिक 71 “टाटा स्टील सबलीज” भूखंड आवंटन में अनियमितता का आरोप है.