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आखिर यह सरकार इतनी अकड़ में क्यों है ! सही सलाह तुरंत मानती क्यों नहीं !

Surjit Singh
18 अप्रैल 2021- पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा. जिसमें कोरोना से निपटने के लिए कई सलाह दिये. एक सलाह यह भी था कि वैक्सीन उत्पादन के लिए दूसरी कंपनियों को भी लाइसेंस दी जाये.
इसके जवाब में मोदी चुप रहे. 19 अप्रैल को हेल्थ मिनिस्टर डॉ हर्ष वर्धन ने जवाब दिया. जो जवाब से ज्यादा पूर्व प्रधानमंत्री का अपमान था. तरीके से जवाब मोदी को ही देना चाहिए था. खैर मोदी सरकार ने उनकी बात नहीं मानी. अब 12 मई को मोदी सरकार ने कहा कि वैक्सीन का फॉर्मूला दूसरी कंपनियों को भी दिया जायेगा.

17 फरवरी 2021- 17 फरवरी को संसद की स्थाई समिति की बैठक हुई थी. बैठक में वैक्सीन को लेकर चर्चा हुई थी. तब समिति ने मोदी सरकार से कहा था कि वैक्सीन की उत्पादन क्षमता को बढ़ायी जाये. तब 45 साल से ऊपर के लोगों का टीकाकरण भी शुरु नहीं हुआ था.
इस समिति की सलाह पर मोदी सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. यह काम अब कर रही है, जब सुप्रीम कोर्ट फटकार लगा रहा है और देश भर में लोग मर रहे हैं. राज्यों में वैक्सीन केंद्रों को बंद किया जा रहा है. अगर सरकार ने समिति की सलाह पर तत्काल यह काम की होती, तो आज पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन का उत्पादन हो रहा होता.

मार्च 2021- वैज्ञानिकों की एक समिति ने मार्च महीने में भारत सरकार के कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को कोरोना की दूसरी लहर के खतरे से आगाह किया था. पिछले साल दिसंबर में मोदी सरकार ने इस समिति की गठन किया था. रिसर्च और चेतावनी स्वास्थ्य मंत्रालय को भी दी गयी थी.
समिति की रिपोर्ट पर मोदी सरकार ने क्या काम किया, यह सार्वजनिक नहीं है. पर खतरे को देखते हुए एहतियाती कदम नहीं उठाये गये. यह जरुरी सार्वजनिक है. खतरे की जानकारी होने के बाद भी देश में कुंभ स्नान हुआ और पांच राज्यों में चुनाव हुए. कुंभ में जहां करोड़ से अधिक लोगों ने गंगा स्नान किया, वहीं चुनाव में राजनीतिक रैलियों में लाखों लोग एक जगह एकत्र होते रहे. गुजरात में बने नरेंद्र मोदी स्टेडियम में क्रिकेट मैच हुए. इन लापरवाहियों का नतीजा आज देश भुगत रहा है.

12 फरवरी 2020 - राहुल गांधी ने एक ट्वीट किया. कोरोना वायरस को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह हमारे लोगों और हमारी अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरा है. मोदी सरकार इस खतरे को गंभीरता से नहीं ले रही है. इससे पहले संसद में भी राहुल गांधी ने यह बात उठायी थी.

राहुल गांधी के ट्वीट के बाद मोदी सरकार के मंत्री रविशंकर प्रसाद, हेल्थ मिनिस्टर हर्षवर्धन, स्मृति ईरानी समेत कई नेताओं ने प्रेस कांफ्रेंस कर डाले. कहा कि राहुल गांधी देश को डरा रहे हैं. भला वायरस का अर्थव्यवस्था से क्या संबंध ? इसके बाद ट्वीटर पर राहुल गांधी को जबरदस्त गालियां पड़ी. बात को समझिए, अगर तब मोदी सरकार ने कोरोना वायरस को रोकने के लिए कदम उठाये होते, तो शायद 23 मार्च को कठोर लॉकडाउन नहीं करने पड़ते. आपको ताली-थाली भी नहीं बजाने पड़ते.

09 अप्रैल 2021 - राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर कहा कि तेजी से सबको वैक्सीन देने की जरुरत है. इसलिए विदेशों से भी वैक्सीन आयात किया जाना चाहिए.

इसके जवाब में भाजपा के नेता व केंद्र के मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राहुल गांधी का मजाक उड़ाते हुए कहा कि देश में वैक्सीन की कोई कमी नहीं है. मोदी सरकार के एक अन्य मंत्री ने कहा कि राहुल गांधी पहले छुट्टी मनाने विदेश जाते थे. अब विदेशी फार्मा कंपनियों के एजेंट बन गये हैं. जबकि दूसरे मंत्री ने विदेश से वैक्सीन आयात को राष्ट्रवाद से जोड़ दिया. करीब 15 दिन बाद मोदी सरकार ने स्पूतनिक वैक्सीन समेत अन्य वैक्सीन के आयात को मंजूरी दी.

सवाल यह उठना जरुरी है कि आखिर केंद्र की मोदी सरकार इतनी अकड़ में क्यों हैं? विशेषज्ञों की राय को तरजीह क्यों नहीं देती ? विपक्षी नेताओं की सही, तथ्यों वाली व तार्किक सलाहों को मानने के बजाय उनका मजाक क्यों उड़ाती है. यह अलग बात है कि कुछ दिन बाद वही काम जोर-शोर से करने लगती है.
मोदी सरकार, उनके मंत्री, देश की बहुसंख्यक आबादी (कुछ तो मोदी को भगवान भी समझने लगे हैं) भले ही विशेषज्ञों और विपक्ष के नेताओं को मूर्ख समझ लें. पर एक बात अब समझ लेनी चाहिए कि मोदी सरकार में संकट को दूर से देख लेने और खतरा सामने आने से पहले जरुरी इंतजाम कर लेने की काबिलियत नहीं है. यह बात लगभग साबित हो चुका है.

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