Ranchi. बिरसा मुंडा की जयंती और आदिवासी गौरव दिवस पर डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण सोध संस्थान ने मंगलवार को एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया. कार्यक्रम का आयोजन सरदारी आंदोलन एवं बिरसाइत आंदोलन विषय पर टीआरआई के सभागार में किया गया. कार्यक्रम में आदिवासियों के इतिहास के बारे में शहर के कई इतिहासकारों ने अपने विचार सामने रखे. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जेएनयू के प्रोफेसर जोसेफ बाड़ा थे. इसके अवाला विशिष्ठ अतिथि के रूप में रांची यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डॉ सुजाता सिंह थीं. इसके साथ ही कार्यक्रम में संत जेवियर कॉलेज की प्रोफेसर अंजू टोप्पो और डॉ संजय सिंह, माड़वाड़ी कॉलेज के प्रोफेसर कनजीव लोचन सहित अन्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे.
आदिवासियों के लिए सबसे बड़ा धन और धर्म, जमीन – जोसेफ बाड़ा
मुख्य अतिथि जेएनयू के प्रोफेसर जोसेफ बाड़ा ने अपने संबोधन में कहा कि बिरसा मुंडा ने आदिवासियों के अस्तित्व की लड़ाई लड़ी थी. आदिवासियों के लिए सबसे बड़ा धन और धर्म जमीन थी. और अधिकांश लड़ाइयां भी उन्होंने इसी के लिए लड़ी. फिर चाहे वह जमींदारों से हो या अंग्रेजों से. उनका कोई दोस्त भी नहीं था. जब जमींदारों और अंग्रेजों ने उनसे जमीन छिनी तो ईसाईयों ने उन्हें जमीन दिलाने के लालच में उन्हें अपने समुदाय में शामिल करने का प्रयास किया था. आज भी आदिवासी समाज अपने हक-अधिकारों से पहले जमीन और जंगल के लिए लड़ते हैं.
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आने वाले 10 वर्षों में आदिवासी इतिहास कॉलेज-यूनिवर्सिटी के हर पाठ्यक्रम में पढ़ाया जायेगा
कार्यक्रम में आदिवासियों के इतिहास और समाज में उसके महत्व पर चर्चा करते हुए ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट टीआरआई के निदेशक रणेन्द्र ने कहा कि आदिवासी इतिहास कुछ पन्नों में सिमट कर रह गया है. प्रधानमंत्री द्वारा आदिवासी वीरों और समाज में उनके योगदान के लिए गौरव दिवस की घोषणा आदिवासियों के इतिहास के लिए काफी महत्व रखता है. हमारे देश में 80 से ज्यादा आदिवासी क्रांति की घटनाएं है . वहीं 200 से अधिक आदिवासी शहीदों की सूची है. जिस तरह देश आदिवासियों के लिए संवंदनशील बन रहा है आने वाले 10 वर्षों में आदिवासी इतिहास भी दूसरे इतिहास की तरह ही हर पाठ्यक्रम में होगा और हर कॉलेज-यूनिवर्सिटी में पढ़ाया जायेगा.
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जितना हक मनुष्यों का धरती पर है उतना ही दूसरे वनस्पति का भी – टीआरआई निदेशक
आगे टीआरआई निदेशन ने संबोधित करते हुए कहा कि आदिवासियों की सबसे खास और अलग पहचान है उनकी संस्कृति. जब भी सरहुल-करमा की बात होती है तो वे केवल मनुष्य जाति के लिए नहीं बल्कि धरती के हर एक प्राणी – एक छोटी चींटी से लेकर हर वनस्पति के लिए चिंतन करते हैं. सभी चीजों को अपने बराबर ही महत्व देते हैं. ट्राइबल फिलॉसफी के अनुसार जितना हक मनुष्यों का धरती पर है, उतना ही हक हर दूसरे वनस्पति का भी है. वैज्ञानिकों के अनुसार भी जब तक हम दूसरे वनस्पतियों के साथ मिलकर नहीं रहते, तब तक कोविड महामाकू जैसे दूसरे आपदा आते रहेंगे.
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