Apoorv Bhardwaj
क्या आपको पता है भारत मे कितने लोग आज पीडीएस (सरकारी कंट्रोल) से राशन लेते हैं ?? क्या आपको पता है यह आंदोलन केवल किसानो का नही है ?? अगर नही पता है तो आगे पढ़िए…
पीडीएस के द्वारा सरकार आवश्यक अनाज और वस्तुओं की उपलब्धता और मूल्यो को नियंत्रण करती है. हमारी आबादी का 67% हिस्सा मतलब 90 करोड़ से अधिक लोग सरकारी वितरण प्रणाली से अनाज लेते हैं. पीडीएस के अलावा, सरकार एक सिस्टम के जरिये अन्य वस्तुओं के मूल्य पर नियंत्रण करती है. यही कारण है कि प्याज की कीमत कंट्रोल में न रहने पर सरकार तक पलट जाती थी.
पर क्या आपको पता है कि सरकार पीडीएस और मूल्य नियंत्रण का प्रबंधन कैसे करती है. सरकार सबसे पहले अनाज को एमएसपी पर खरीद कर प्रोक्योरमेंट करती है. मूल रूप से यह केवल चावल और गेहूं को कवर करता है. लेकिन अब अन्य खाद्य फसलों की किस्मों को भी शामिल करता है, जिसमें दाल और तेल शामिल हैं. सरकार प्रत्येक सीजन की शुरुआत में घोषित “न्यूनतम समर्थन मूल्य” पर उपज की खरीद करती है.
किसान हमेशा अपनी उपज को कही भी और कभी भी बेचने के लिए स्वतंत्र है. उसके लिए एमएसपी बाजार में एक बेस प्राइज की तरह काम करता है. सरकार दो चीजों को करने के लिए खरीदे गए उत्पाद का उपयोग करती है. पहली पीडीएस / अन्य कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से स्टॉक के एक हिस्से को वितरित करती है. दूसरा अनाज का “बफर स्टॉक” करके आपातकालीन परिस्थितियों के लिए सुरक्षित रखती है.
यह बफर स्टॉक बहुत महत्वपूर्ण है क्यों कि यह एक बीमा के रूप में कार्य करता है, लेकिन यह मूल्य नियंत्रण टूल के रूप में भी कार्य करता है. जब बाजार में कीमतों में वृद्धि होती है, तो सरकार आपूर्ति बढ़ाने और मूल्य नीचे लाने के लिए इस बफर स्टॉक का उपयोग करती है. यही बफर स्टॉक हमें जमाखोरी से बचाता है. जमाखोर जानते हैं कि वो चाहकर भी कुछ नही कर सकते हैं. क्योंकि सरकार हमेशा बाजार में बफर स्टॉक डालकर और जमाखोरी और मूल्य को नियंत्रित कर सकती है.
दूसरी महत्वपूर्ण चीज सरकार आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत स्टॉक सीमाएं लगाती रही. यदि कीमतें बढ़ रही है, तो वे सभी को खुले बाजार में एक निर्धारित सीमा से अधिक स्टॉक बेचने का आदेश दे सकते हैं. आपूर्ति में वृद्धि से कीमतों में कमी हो जाती है.
इसे भी पढ़ें- शर्मनाक: 3 साल की मासूम से चाचा ने की हैवानियत
अब जानते है की यह नए किसान बिल क्या कर सकते है.
सबसे पहले, वे आपातकालीन स्थितियों में ईसीए के तहत स्टॉक सीमा लगाने की सरकार की क्षमता को खत्म करते हैं और वे इस चेन के सबसे महत्वपूर्ण स्टेक होल्डर को गायब करती है. ये स्टेक होल्डर कौन हैं? यह वो ही तथाकथित बिचौलिया, अड़ातिया हैं, जिसे किसानो का एटीएम भी कहा जाता है . कुल मिलाकर अब खाद्य पदार्थों की कीमत को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए बनाए गए आवश्यक वस्तु अधिनियम का कोई मतलब नही रह जायेगा. लेकिन हमारे पास अभी भी कीमत को नियंत्रित करने के लिए बफर स्टॉक हैं? और सरकार ने कहा है कि वह खरीद और एमएसपी को बरकरार रखना चाहती है. लेकिन इसको बरकरार रखना बहुत ही चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
सबसे पहले, APMCs का भविष्य- राज्य किसानों से खरीद करने के लिए मंडियों नामक भौतिक बाजारों पर निर्भर करता है. लेकिन किसी भी अन्य बाज़ार की तरह मंडी को जीवित रहने के लिए एक निश्चित स्तर के लेनदेन की आवश्यकता होती है. बिहार में, वर्ष 2006 के कानूनों के बाद, मंडी धीरे-धीरे बंद हो गई. वर्ष 2016 में 9000 मंडियां थीं. 2020 तक सिर्फ 1619 बची. पर्याप्त मंडियों के बिना, अधिकांश किसान अपनी उपज मंडी तक नहीं पहुंचा सकते और जो भी निजी खरीदार उसे देगा, उसे स्वीकार करना होगा. एमएसपी बेस प्राइज से, प्रीमियम प्राइज हो गया.
बिहार में मंडियों के बिना, राज्य खरीद में नाटकीय रूप से गिरावट आयी. आज बिहार में पीडीएस के तहत 80% खाद्यान्न की खरीद अन्य राज्यों से की जाती है. मूल्य नियंत्रण के बिना, सरकार प्राइज साइकल के पिक पर अधिग्रहण करने में सक्षम नहीं होगी. मतलब जब किसानों को सबसे अच्छा भाव नही मिलेगा और जब निजी कंपनी नहीं खरीदेगी और किसानों को एमएसपी की आवश्यकता होगी ही .
सबसे पहले सभी खरीदार उपज को अंतिम उत्पाद के रूप में नहीं देख सकते हैं. जिसका मतलब है कि बिस्किट निर्माता के लिए, कम गेहूं की कीमतें एक वरदान हैं. स्टॉक पर सीमा हटने के बाद वे खरीदना और स्टॉक करना पसंद कर सकते हैं.
दूसरा, निर्यातकों के लिए मान लीजिए कि आप खरीद, पैकेज और निर्यात प्राप्त कर रहे हैं, तो कम कीमतों को एक लाभ के रूप में देखा जाएगा. और मंडी के बुनियादी ढांचे के बिना, सरकार कम कीमत होने पर भी अधिग्रहण करने के लिए संघर्ष कर सकती है. पर्याप्त खरीद के बिना बफर स्टॉक को पीडीएस के लिए उपयोग करना होगा. पीडीसीएस में उपयोग होने से बफर स्टॉक में कमी हो जाएगी और इससे बाजार मूल्य को नियंत्रित करने की सरकारों की क्षमता कम हो जाएगी. और अगर कम खरीद जारी रहती है, तो सरकार के पास पीडीएस चलाने के लिए पर्याप्त अनाज नहीं होगा.
तो क्या यह उन 90 करोड़ लोगो के साथ भी खिलवाड़ नही होगा, जो पीडीएस पर विश्वास करते है. तो क्या इन काले कानून का विरोध केवल किसानो को ही करना चाहिए. दरअसल, किसान एक ऐसे नए सिस्टम का विरोध कर रहे हैं जो लाखों लोगों को भूख और भोजन प्रदान करने वाले पीडीएस सिस्टम को भी जोखिम में डालता है. तो याद रखिए यह सिर्फ किसानो का मुद्दा नहीं है, यह एक ऐसा मुद्दा है जो हम सभी को प्रभावित करता है.
अगर इस पोस्ट को पढ़ने के बाद भी आप इसे किसानों का मुद्दा ही मान रहे है, तो माफ कीजियेगा की आपका कुछ नहीं हो सकता.
डिस्कलेमर– ये लेखक के निजी विचार हैं.
इसे भी पढ़ें- Positive Story: हरियाली से किस्मत बदलने के जुनून ने बनाया सफल किसान, कमाई जानकर चौंक जाएंगे आप भी