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नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा, भारत सरकार के भ्रम के कारण कोविड-19 संकट पैदा हुआ

info@lagatar.in by info@lagatar.in
June 6, 2021
in कोरोना, देश-विदेश
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 MumbaI :  नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन का कहना है कि भारत सरकार ने भ्रम में रहते हुए कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए काम करने के बजाय अपने कामों का श्रेय लेने पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे स्कित्जोफ्रेनिया की स्थिति बन गयी और काफी परेशानी पैदा हो गयी. बता दें कि स्कित्जोफ्रेनिया एक गंभीर मनोरोग है, जिसमें रोगी वास्तविक और काल्पनिक संसार में भेद नहीं कर पाता. अमर्त्य सेन ने दो दिन पूर्व राष्ट्र सेवा दल द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि भारत अपने दवा निर्माण के कौशल और   उच्च रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण महामारी से लड़ने के लिए बेहतर स्थिति में था.

इसे भी पढ़ें : अमेरिका : भारत की वैक्सीन पर प्रश्नचिह्न, कोवैक्सीन, स्पूतिक-वी ले चुके छात्रों को दोबारा टीका लेने का आदेश

भारत अपनी क्षमताओं के साथ काम नहीं कर सका

हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर सेन ने कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर की पृष्ठभूमि में यह बात कही.  अमर्त्य सेन का कहना था कि सरकार में भ्रम के कारण संकट से खराब तरीके के निपटने की वजह से भारत अपनी क्षमताओं के साथ काम नहीं कर सका.   कहा कि सरकार ने जो किया उसका श्रेय लेने की इच्छुक नजर आयी, हालांकि उसे यह सुनिश्चित करना था कि भारत में यह महामारी न फैले. इसका नतीजा काफी हद तक स्कित्जोफ्रेनिया जैसा था.

इसे भी पढ़ें : वैक्सीन पासपोर्ट पर डॉ हर्षवर्धन ने कहा, विकासशील देशों में वैक्सीनेशन काफी कम, ऐसी पहल भेदभावपूर्ण

श्रेय पाने की कोशिश करना बौद्धिक नादानी का स्तर दिखाता है

 अर्थशास्त्री सेन ने 1769 में एडम स्मिथ के लिखे एक लेख के हवाले से कहा कि अगर कोई अच्छा काम करता है तो उसे उसका श्रेय मिलता है और श्रेय कई बार एक संकेत होता है कि कोई व्यक्ति कितना अच्छा काम कर रहा है. सेन ने कहा, लेकिन श्रेय पाने की कोशिश करना और श्रेय पाने वाला अच्छा काम न करना बौद्धिक नादानी का एक स्तर दिखाता है जिससे बचना चाहिए. भारत ने यही करने की कोशिश की.

भारत पहले से ही बेरोजगारी से जूझ रहा है

उन्होंने कहा कि भारत पहले से ही सामाजिक असमानताओं, धीमे विकास और बेरोजगारी से जूझ रहा है, जो इस महामारी के दौरान बढ़ गया है. साथ ही कहा कि अर्थव्यवस्था की विफलता और सामाजिक एकजुटता की विफलता, महामारी से निपटने में नाकामी की भी वजह है. उनका मानना था कि  शिक्षा संबंधी सीमाओं के चलते शुरुआती स्तर पर लक्षणों और इलाज के प्रोटोकॉल पता लगाने में मुश्किलें हुईं. इत क्रम में सेन ने स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा के क्षेत्र के साथ ही अर्थव्यवस्था और सामाजिक नीतियों में भी बड़े सार्थक बदलाव की पैरवी की.

अमर्त्य सेन  के अनुसार पिछले साल कोविड-19 महामारी से लड़ने की देश की कोशिशों के तहत भारत सामाजिक मेलजोल से दूरी रखने की जरूरत के मामले में सही था, लेकिन बगैर किसी नोटिस के लॉकडाउन थोपा जाना गलत था.

सेन ने यह बात बीते साल मार्च के अंत में लॉकडाउन लागू किये जाने के बाद करोड़ों लोगों के बेरोजगार हो जाने और प्रवासी श्रमिकों के बड़ी संख्या में घर लौटने का जिक्र करते हुए कही. सेन का कहना था कि देश के विभाजन के बाद शायद पहली बार इतनी संख्या में लोगों ने पलायन किया था.

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