Soumitra Roy
मोदी राज में भारत का कथित लोकतंत्र किस तरह से चल रहा है- इसका एक नमूना देखिये. इस साल की शुरुआत में भारत के महालेखाकार नियंत्रक (कैग) ने संसद को सौंपी रिपोर्ट में कहा था कि हमारी सेना के जवानों के पास 15 हजार फीट की ऊंचाई पर तैनाती के लिए पर्याप्त चश्मे, कपड़े, उपकरण नहीं हैं.
कैग का कहना है कि इन सामानों के आयात में देरी के चलते जवानों की मुश्किलें बढ़ी हैं.
संसद की लोकलेखा समिति ने इस रिपोर्ट की जमीनी सच्चाई परखने के लिए 28-29 अक्टूबर को लेह जाने की अनुमति मांगी.
लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने अनुमति भी दे दी. लेकिन रक्षा मंत्रालय ने यह कहकर रोक दिया कि अभी जाना ठीक नहीं.
क्यों? मोदी कभी भी कैमरामैन को लेकर फ़ोटो ऑप के लिए वहां जा सकते हैं.
गाहे-बगाहे रक्षा मंत्री भी धोती पहनकर वहां पहुंच जाते हैं. ठंड और चीन की परवाह किये बिना.
हमारे ही इलाके में जब कोई घुसा ही नहीं, तो खतरा किस बात का?
खतरा यह है कि संसदीय समिति के अध्यक्ष कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी हैं.
पोल खुल जायेगी.
समिति ने 8-10 नवंबर के बीच दौरे की अनुमति मांगी. वह भी नहीं मिली.
मोदी सरकार को भारतीय सेना के जवानों की चिंता सिर्फ चुनाव के समय होती है. उससे पहले मोदी के ही शब्दों में-“वे मारते-मारते मरे”
पुलवामा से लेकर बालाकोट तक और इस साल गलवान घाटी की भिड़ंत तक- बीजेपी के लिए वोट बटोरने से ज़्यादा कुछ नहीं.
मीडिया के कुछ बड़े नाम लद्दाख के चप्पे-चप्पे से वाकिफ होने का दावा करते हैं. पर, इस मुद्दे पर वे लोग कुछ बोलेंगे नहीं.
रिपोर्टिंग के नाम पर शानदार नज़ारों के बीच आंखों में काला शीशा डालकर फ़ोटो खिंचवाना अलग बात है.
ये काम मोदी पत्रकारों से ज़्यादा बेहतर करते हैं.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.