Mukesh Aseem
अभी एक जबर्दस्त प्रचार का झोंका हम लोगों के सामने आने वाला है. मोदी से लेकर दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्यवादी अमरीकी बाइडेन की प्रशंसा के पुल बांधे जायेंगे. वजह है भारत और दक्षिण अफ्रीका द्वारा WTO से वैक्सीन पर TRIPS (पेटेंट) से छूट की मांग पर बाइडेन द्वारा समर्थन.
इससे एक साथ तीन मकसद पूरे होंगे – एक, मोदी द्वारा दुनिया भर के गरीब देशों की जनता को वैक्सीन दिलवाने में महान व कामयाब योगदान. दूसरे, भारत में टीकाकरण में मोदी हुकूमत की लुटेरी नीति पर पर्दा डालना. तीसरा, दुनिया भर के सबसे बड़े साम्राज्यवादी लुटेरे अमरीका को गरीबों का हितैषी सिद्ध करना. जबकि कोरोना पर कुछ ‘भली’ घोषणाओं की आड़ में बाइडेन अमरीकी सैन्यवाद को एक नए स्तर पर ले जाने में जुटा है. ठीक इसी समय अमरीकी समर्थन से कोलंबिया जैसे लैटिन अमरीकी देशों में जनता पर भयंकर दमन चलाया जा रहा है. पर असल बात है कि इससे गरीब देशों की जनता को फिलहाल खास कुछ हासिल भी नहीं होने वाला है. पहले भारत को लेते हैं.
यहां भारत बायोटेक जो कोवैक्सिन बना रही है, उसका विकास सरकारी संस्था NIV/ICMR ने किया है और परीक्षण भी सरकारी अस्पतालों ने किए हैं. उस पर ‘बौद्धिक संपत्ति’ में भी ICMR का साझा है. मोदी WTO से अमरीका तक ‘बौद्धिक संपत्ति’ में छूट दिलाने में इतनी ‘मेहनत’ कर रहे हैं, पर खुद भारत की सार्वजनिक अर्थात जनता की ‘बौद्धिक संपत्ति’ को एक निजी कंपनी को क्यों सौंप दिया है?
इसे ही टीका बनाने में सक्षम हर सार्वजनिक-निजी कंपनी को दे दिया होता तो अभी दसियों कंपनियां इसे बना रही होतीं. टीकों की कमी ही न होती. एकाधिकार न होने से कीमत भी कम होती. तब देश पूनावाला के रहमो-करम पर न होता. कोवैक्सिन की ‘बौद्धिक संपत्ति’ दुनिया भर में मुक्त कर देने पर तो WTO/अमीर देशों के सामने सबसे बड़े कामयाब भिखारी के रूप में मोदी जी की वीरता और बाइडेन की दानवीरता का गुणगान भी न करना पड़ता!
फिर TRIPS पर छूट का अर्थ यह नहीं कि जो चाहे किसी कंपनी के टीके को बनाना शुरू कर सकेगा. उसके लिए संबंधित तकनीकी जानकारी और टीके के बीज रसायन के लिए तो उसी कंपनी के पास जाना होगा, उसकी मुंह मांगी रकम देनी होगी. डबल्यूटीओ और बाइडेन की छूट यह नहीं दिलवायेगी. हालांकि कोविशील्ड से लेकर दुनिया की लगभग सभी वैक्सीन का विकास सरकारी संस्थानों या सरकारी फंडिंग से ही हुआ है. पर सबका मालिकाना निजी कंपनियों को दे दिया गया है और इस ‘छूट’ के बाद भी उत्पादन करने के लिए इन कंपनियों को बड़ी रकम चुकानी ही होगी. कुल मिलाकर लाशों तक को भी लूटने वाले फार्मा लुटेरों को रहमदिल सुलताना डाकू जैसा सिद्ध करने का मामला है यह.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.