Bermo: बेरमो अनुमंडल के तेनुघाट शिविर संख्या दो में 7 वर्ष पूर्व बनकर तैयार आईटीआई के शानदार भवन सफेद हाथी बनकर रह गया. इस तकनीकी शिक्षण संस्थान के निर्माण के बाद से ही यह भवन वीरान व सुनसान पड़ा है. इसे चालू कराने की दिशा में विभागीय स्तर से अब तक कोई पहल नहीं की गई. जिसके कारण गोमिया विधानसभा के छात्र एवं छात्राएं हैरान व परेशान हैं. इस तकनीकी शिक्षण केंद्र के निर्माण में सरकार की ओर से लगभग 4 करोड रुपए खर्च किए गए. जबकि लगभग 4 एकड़ भूमि में निर्मित इस शिक्षण संस्थान के निर्माण के लिए वर्ष 2009 में तब इसकी आधारशिला रखी गई थी. जब झारखंड राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू था.
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राज्यपाल के सलाहकार जी कृष्णन ने पूर्व विधायक माधव लाल सिंह के अनुरोध पर आईटीआई केंद्र की स्थापना की स्वीकृति दी. सारी प्रक्रिया के बाद वर्ष 2013 में भवन का निर्माण कार्य शुरू हुआ जो एक साल के अंदर बनकर तैयार हो गया. मगर सरकार के उदासीन रवैया के कारण तब से लेकर आज तक यह केंद्र संचालित न हो सका. पिछले लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव में राजनीतिक दलों के नेताओं ने उसे चालू कराने का आश्वासन दिया. लेकिन चुनाव के बाद इस ओर नेताओं ने कोई सकारात्मक पहल नही की न सरकार ही ध्यान दे रही है. लिहाजा यह भवन उपेक्षित होकर अपना वजूद बचाने के लिए जदोजहद कर रही है.
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बेरमो अनुमंडल एक औद्योगिक बहुल क्षेत्र है. यहां सीसीएल के दर्जनों कोलियरी है. साथ ही एक दो कोल वाशरी भी है. डीवीसी का दो वाष्प प्रतिष्ठान के अलावा एक राज्य सरकार का विद्युत केंद्र ललपनिया स्थापित है. देश का पहला बारूद का कारखाना है. लिहाजा इस आईटीआई का शिक्षण संस्थान के बनने से क्षेत्र के छात्र-छात्राओं में काफी खुशी की लहर थी. लेकिन सरकार के लालफीताशाही एवं उदासीनता के कारण करोडों रुपये का यह तकनीकी संस्थान महज एक भवन बनकर रह गया. गोमिया, कसमार व पेटरवार के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा उग्रवाद प्रभावित इलाके के छात्र छात्राओं ने इस संस्थान में आईटीआई का प्रशिक्षण एवं रोजगार पाने का जो सपना देखा था वह अब कोरा साबित हो रहा है.
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राज्य सरकार के प्रतिष्ठान तेनुघाट विद्युत निगम ललपनिया में शिक्षित बेरोजगारों को तकनीकी शिक्षा देकर रोजगार देने की मांग परियोजना के स्थापना काल से हो रही है. यदि तेनुघाट का यह आईटीआई प्रशिक्षण केंद्र चालू हो जाता तो ललपनिया के विस्थापित बेरोजगारों को भी अवसर प्राप्त होता, लेकिन पिछले सात वर्षों से जो सरकार की नीति रही है उसका खामियाजा यहां के लोगों भुगतना पड़ रहा है.
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