Bokaro : मकर संक्रांति के दिन झारखंड में मनाया जाने वाला टुसू पर्व की तैयारियां जोरों पर है. यह पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. टुसू का शाब्दिक अर्थ है कुंवारी कन्या. समृद्धि की भावनाओं से ओतप्रोत टुसू पर्व झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में भी मनाया जाता है. यह पर्व जाड़े में धान की फसल तैयार होने के बाद हर आदिवासी समुदाय के घरों में मनाया जाता है.
पर्व के दिन कन्या घर में टुसू का पूजन करती है
वैसे झारखंड के सभी पर्व त्योहार प्रकृति से जुड़े हैं. टुसू पर्व का महत्व इस राज्य में बहुत ज्यादा है. पर्व के दिन हर घरों में कन्या शाम के समय टुसू का पूजन करती है. इसके पीछे मान्यता है कि टुसू एक गरीब किसान की सुंदर कन्या थी. धीरे-धीरे पूरे राज्य में उसकी सुंदरता की चर्चा होने लगी. यह चर्चा तानाशाह राजा के कानों तक पहुंची. राजा की नियत डोल गई और उसे प्राप्त करने के लिए उसने षड्यंत्र रचा. संयोग से इस साल राज्य में भीषण अकाल पड़ गया. किसान लगान देने की स्थिति में नहीं थे. टीसू के पिता की फटेहाली का फायदा उठाने के लिए उस राजा ने ब्रिटिश काल के कृषि कर को खत्म कर अपना कृषि कर कानून बनाया. उस राजा ने अपने सिपाहियों से जबरन किसानों से कर वसूलने का आदेश जारी किया.
टुसू बनाने वाले कलाकार कई तरह की खिलौने, मूर्तियां, शादी समारोह में इस्तेमाल होने वाले सामान बनाते हैं. सरकारी सहायता नहीं मिलने के कारण इन कलाकारों की हालत दयनीय है. सरकारी सहयोग मिलने पर इन कलाकारों का पलायन रुक जाता तथा स्वरोजगार को बढ़ावा मिलता. हालांकि कोरोना को देखते हुए इस बार टुसू मेले पर रोक लगाई गई है. बावजूद इसके क़स्बाई इलाकों में टुसू पर्व मनाया जाएगा.
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