Shruti Singh
Ranchi : नए शैक्षिक सत्र शुरू होते ही अभिभावकों को महंगी किताब-कॉपी खरीदने की चिंता सताने लगी है. स्कूलों में नए सेशन के लिए प्रवेश प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही किताबों की दुकानों पर नर्सरी से लेकर बारहवीं कक्षा तक पाठ्यपुस्तकों के नए संस्करणों का स्टॉक आ गया है. लेकिन पिछले वर्ष के मुकाबले किताब-कॉपी की कीमत में 20 से 30 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई है, जिससे अभिभावकों पर अतिरिक्त दबाव बढ़ गया है. कम आय में घर खर्च चलाने के साथ अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का सपना देखने वाले अभिभावक लगातार बढ़ती महंगाई से परेशान हैं. एनसीईआरटी की किताबों में जहां 20 फीसदी तक की तेजी आई है, वहीं निजी प्रकाशकों के कोर्स की किताबों के दाम तो 30 फीसदी तक बढ़ गए हैं.
मुनाफे के चक्कर में बदल देते हैं किताबें
अभिभावकों का कहना है कि निजी स्कूल ज्यादा मुनाफा के चक्कर में हर साल कोर्स बदल देते हैं. साथ ही निश्चित दुकानों से ही किताबें खरीदने के लिए मजबूर करते हैं. जिस वजह से अभिभावकों को मजबूरन हर साल नई किताबें खरीदनी पड़ती हैं. निजी स्कूलों के हर साल कोर्स बदलने की नीति पर रोक लगनी चाहिए और सरकार को सभी बोर्ड के स्कूलों में समान रूप से एनसीईआरटी की किताबों को लागू करना चाहिए, ताकि गरीब अभिभावक भी अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिला सकें.
किताबों के कंटेट में बदलाव, एनइपी टैग से दाम बढ़े
दूसरी ओर पुस्तक वितरकों का कहना है कि न्यू एजुकेशन पॉलिसी (एनइपी) के तहत किताबों के कंटेट और कागज का दाम बढ़ने से पुस्तकों के रेट में बढोतरी हुई है. इस बार एनइपी टैग लगी पुस्तक बाजार में आया है. जूनियर वर्ग के किताबों में एक्टिविटी बेस्ड पैटर्न जोड़ा गया है. कक्षा एक से नौवीं तक की किताबों के कंटेट में बदलाव किया गया है. इसलिए एनइपी की टैग लगी पुस्तक के दाम में 10 से 25 फीसदी तक दाम बढ़ाये गये हैं.
किताबों के दाम में तीन साल बाद वृद्धि
दुकानदारों का यह भी कहना है कि किताबों के दाम में तीन साल बाद वृद्धि हुई है. कोरोना की वजह से दो साल पुस्तकों के दाम नहीं बढ़ाए जा सके. दूसरी तरफ, कागज की कीमतें भी लगातार बढ़ रही हैं. इसी वजह से पुस्तकों के दामों में 25 फीसदी तक इजाफा करना पड़ा है. उनका यह भी कहना है कि इस बार किताबों का कंटेंट भी बदल गया है. हर विषय में कुछ न कुछ बदलाव हुआ है.
छह महीने में कागज के दाम 28 फीसदी तक बढ़े
उनका यह भी कहना है कि पिछले छह महीने में कागज के दाम 28 फीसदी तक बढ़े हैं. इस कारण सभी कक्षाओं का कोर्स पिछले वर्ष की तुलना में 25 से 30 प्रतिशत तक महंगा हो गया है. किताब-कॉपी के अलावा बैग, यूनिफॉर्म के दाम भी बढ़े हैं. वहीं तीन रुपये का बॉल पैन अब चार रुपये और पांच रुपये में मिल रहा है. 100 रुपये से कम में ज्योमेट्री बॉक्स मिलना मुश्किल हो रहा है.
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स्कूल के कहने पर हर साल नयी पुस्तक खरीदनी पड़ती है- रिद्धिमा शाह
कांके रोड निवासी रिद्धिमा शाह ने कहा कि हर साल किताबों की कीमत में वृद्धि होती है. इस साल किताबों की कीमत में काफी वृद्धि हुई है. आने वाले हफ्तों में यह और बढ़ सकती है. प्रकाशक और पुस्तक की मांग के आधार पर कई किताबों के दाम 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं. उन्होंने कहा कि हर साल स्कूल के कहने पर नयी पुस्तक खरीदनी पड़ती है. महंगाई बढ़ने के चलते मिडिल क्लास फैमिली बहुत संघर्ष कर रही है.

मजबूरी में नई किताब खरीदनी पड़ती है- अनिता सिंह
धुर्वा सेक्टर टू की रहने वाली अनिता सिंह ने कहा कि स्कूल की डिमांड होती है कि बच्चों को नई बुक के साथ ही भेजें. अभिभावक सक्षम नहीं है, तब भी उसे नई किताब खरीदनी पड़ती है. बताया कि किताबों की कीमतें पिछले हफ्ते बढ़ी हैं. आने वाले हफ्तों में और बढ़ने की संभावना है. जैसे आरएस अग्रवाल की दसवीं कक्षा की गणित की किताब, जिसकी कीमत एक सप्ताह पहले 725 रुपये थी, अब बाजार में 885 रुपये में उपलब्ध है. उन्होंने कहा कि किसी भी स्कूल को यह बात समझनी चाहिए कि पुस्तक पुरानी होने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता.

स्कूल ने पढ़ाई को सिर्फ बिजनेस बना दिया है- प्रेम कुमार
मोरहाबादी निवासी प्रेम कुमार ने कहा कि किताबों की बढ़ती कीमत से हर साल नए सेशन के दौरान मासिक बजट गड़बड़ हो जाती है. मेरे दो बच्चे हैं. नई किताब के लिए स्कूल बहुत प्रेशर डालता है. पहले किताब, फिर प्रैक्टिकल फिर प्रोजेक्ट. स्कूल ने पढ़ाई को सिर्फ बिजनेस बना दिया है. उन्होंने कहा कि किसी भी मिडिल क्लास परिवार के लिए हर साल नई पुस्तक खरीदना कठिन है. हर साल बुक्स के दाम में वृद्धि हो रही है, जिससे और संकट बढ़ा है.
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