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BREAKING : खतियानी भूमि वापसी के सभी केस का हस्तांतरण मंत्री न्यायालय में, सरकार ने लिया बड़ा फैसला

  • हेमंत सरकार ने गजट अधिसूचना जारी कर पीठासीन पदाधिकारी के तौर पर मंत्री चंपई सोरेन को किया था नियुक्त
  • हजारीबाग के बड़कागांव अंचल के पसेरिया मौजा में अधिग्रहित 56.88 एकड़ भूमि वापसी का न्यायालय ने आदेश किया था पारित

Pravin kumar 

Ranchi: राज्य में सीएनटी-एसपीटी जैसे मजबूत कानून होने के बावजूद गैर-आदिवासियों के बीच आदिवासी भूमि के अवैध हस्तांतरण के हजारों मामले लंबित हैं. दूसरी ओर आदिवासी रैयत सीएनटी एक्ट धारा 49 (5) के तहत अपनी खतियानी भूमि वापसी के दशकों से कोर्ट कचहरी का चक्कर लगा रहे हैं. अब उनके लिए राहत भरी खबर है. इस संबंध में हेमंत सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. उपायुक्त और प्रमंडलीय आयुक्त के समक्ष चल रहे सीएनटी एक्ट धारा 49 (5) के सभी वादों का हस्तांतरण अब  पीठासीन पदाधिकारी मंत्री चंपई सोरेन के न्यायालय में किया जा रहा है. इस संबंध में सरकार की ओर से सभी उपायुक्तों और प्रमंडलीय आयुक्तों को सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर वादों को हस्तांतरण करने को कहा गया है.

तेजी से सभी मामले निपटारे का निर्देश

हेमंत सरकार के इस फैसले से सीएनटी एक्ट धारा 49 (5) के तहत भूमि वापसी के वर्षों से लटके मामलों का निपटारा तेजी से करने का फैसला लिया है. 30 दिसंबर को होने वाली सुनवाई में 13 मामलों को रखा गया है. इसमें 7 मामलों का निबटरा किया जा चुका है. सरकार के फैसले से वैसे भूस्वामियों में उम्मीद जगी है, जिनकी जमीन छलपूर्वक या किसी अन्य माध्यम से आदिवासी रैयतों से ले ली गयी थी.

क्या कहा गया है उपायुक्तों और प्रमंडलीय आयुक्तों से

इस संबंध में सरकार की ओर से सभी जिलों के उपायुक्त एवं सभी प्रमंडलीय आयुक्त को कहा गया है कि छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 की धारा 5 के तहत चल रहे सभी विवादों को मंत्री हस्तांतरण  किया जाए . छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 की धारा 49 के तहत अनुसूचित जनजाति की भूमि वापसी की सुनवाई की जिम्मेवारी  मंत्री चंपई सोरेन को दिया गया है.

मंत्री चंपई सोरेन बनाया गया था पीठासीन पदाधिकारी

हेमंत सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए भूमि वापसी के ऐसे मामलों पर सुनवाई करने का निर्णय लिया था. इसके लिए सरकार ने 7 दिसंबर को गजट प्रकाशित कर पीठासीन पदाधिकारी के तौर पर मंत्री चंपई सोरेन को अधिकृत कर दिया है.इसके बाद सीएनटी एक्ट धारा 49 (5) के तहत 30 दिसंबर को भूमि वापसी के मामले की सुनवाई चंपई सोरेन के न्यायालय ने शुरू किया था.

न्यायालय ने हजारीबाग  जिला के 7 मामलों का निबटरा कर चुका है. जिसमें झारखंड में विभिन्न कंपनियों ने कोयला खनन और ऊर्जा तथा इस्पात संयंत्र स्थापित करने के नाम पर सैकड़ों एकड़ भूमि अधिग्रहित की है, लेकिन कई कंपनियों ने वर्षों तक जमीन को अपने कब्जे में रखा और शर्तों के मुताबिक कंपनी स्थापित नहीं की. ऐसी कंपनियों से भूमि अधिग्रहण कानून के तहत अब जमीन वापस लेने की प्रक्रिया भी शुरू किया गया है. इसी क्रम में हजारीबाग के बड़कागांव अंचल के पसेरिया मौजा में अधिग्रहित 56.88 एकड़ को वापस लेने का आदेश पारित किया गया है.

4745 मामले हैं विभिन्न न्यायालयों में

राज्य में सीएनटी-एसपीटी जैसे मजबूत कानून होने के बावजूद गैर-आदिवासियों के बीच भूमि के अवैध हस्तांतरण का सिलसिला अब भी जारी है. विभिन्न जिलों में आदिवासियों की 36492 एकड़ जमीन गैर आदिवासियों ने हथिया ली है. वहीं 4745 आदिवासियों ने अपनी जमीन वापसी के लिए विभिन्न न्यायालयों में मुकदमे भी दायर किये हैं. ये मुकदमे वैसे हैं जिसमें आदिवासी रैयत के पक्ष में दखल दिहानी के आदेश भी परित होने के बाद भी आदिवासी रैयतों को अपनी खतियानी भूमि वापस नहीं कराया जा सका है. रांची जिले में ही लंबित करीब 3541 दखल दिहानी के मामले हैं, जहां सीएनटी एक्ट का उल्लंघन कर आदिवासी जमीन ली गई है.

पिछले दिनों विधायक चमरा लिंडा ने सदन में उठाया था मामला

आदिवासी जमीन के अवैध हस्तांतरण के मामले को लेकर झारखंड विधानसभा में सवाल भी उठाया गया. 19 मार्च को विधायक चमरा लिंडा ने सदन में सवाल उठाया था. जिसमें चमरा लिंडा ने सरकार से पूछा कि 8 फरवरी 1999 के बाद से अब तक आदिवासी भूमि विनिमय मामलों से संबंधित जमीन की अनुसूचित जनजाति सदस्यों को वापस कराने का सरकार क्या विचार रखती है.

इसके जवाब में सरकार की ओर से कहा गया था छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए समुचित प्रावधान है. सीएनटी एक्ट 1908 की धारा 46 की उप धारा 1 के उल्लंघन के विरुद्ध धारा 71 ए के तहत भूमि वापसी की कार्रवाई एसएआर कोर्ट में किया जाता है. एसएआर कोर्ट द्वारा पारित आदेश का अनुपालन अंचल अधिकारी द्वारा भौतिक दखल दिखानी कराई जाती है. इस संबंध में सरकार ने सभी प्रमंडलीय आयुक्त को दखल दिहानी कराने के आदेश 27 दिसंबर 2018 को ही दे दिया गया था.

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