alt="" width="600" height="400" /> सिक्किम और दार्जिलिंग से पहुंचे विशेष बौद्ध अनुयायी : बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर सुबह प्रभात फेरी निकाली गई, जो जैप वन कैंप से शुरू होकर हाईकोर्ट, गोरखा चौक होते हुए मंदिर परिसर स्थित गुम्बा तक पहुंची. इस शोभायात्रा में सिक्किम और दार्जिलिंग से आए विशेष बौद्ध अनुयायियों—मानसिंह तामन, अरुण लामा, संजोक लामा, डुपतेन लामा, सांगे लामा, और उरगेन लामा ने भाग लियाकार्यक्रम के मुख्य अतिथि कमांडेंट राकेश रंजन थे, जिनकी उपस्थिति ने आयोजन को गरिमा प्रदान की 1992 में हुई थी परंपरा की शुरुआत : डुपलिंग बौद्ध मंदिर समिति के सदस्य मनी लामा ने बताया कि राजधानी रांची में बुद्ध पूर्णिमा मनाने की परंपरा वर्ष 1992 में शुरू हुई थी.कमांडेंट डी.के. पांडे से अनुमति लेकर सुबेदार देवताना लामा और अजय लामा ने इसकी शुरुआत की थी. उस समय केवल 20-25 बौद्ध परिवारों की सहभागिता होती थी.आज यह आयोजन एक विशाल स्वरूप ले चुका है, जिसमें हर वर्ष हजारों की संख्या में बौद्ध अनुयायी भाग लेते हैं. 2002 में बनकर तैयार हुआ मंदिर : बताया गया कि जब यह मंदिर नहीं बना था, तब बौद्ध अनुयायी फोटो पूजन के माध्यम से भगवान बुद्ध की आराधना करते थे. वर्ष 2002 में जब यह मंदिर पूर्ण रूप से बनकर तैयार हुआ, तब से यह न केवल रांची, बल्कि पूरे झारखंड में बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है.

डोरंडा के बौद्ध मंदिर में भव्य रूप से मना बुद्ध पूर्णिमा

Ranchi : सोमवार को डोरंडा स्थित जैप-1 परिसर के डुपलिंग बौद्ध मंदिर में बुद्ध पूर्णिमा का पावन पर्व श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया गया.इस अवसर पर मंदिर को आकर्षक रूप से सजाया गया और भगवान बुद्ध की जयंती पर विशेष पूजा-अर्चना की गई. कार्यक्रम का आयोजन डुपलिंग बौद्ध मंदिर समिति द्वारा किया गया.इस अवसर पर दो पवित्र ध्वजों का ध्वजारोहण भी संपन्न हुआ और विश्व शांति के लिए सैकड़ों दीप प्रज्वलित किए गए, जिससे वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा और शांति का भाव व्याप्त हो गया. इस शुभ अवसर पर समिति के अध्यक्ष बादल तामन, उपाध्यक्ष मानिका तामा, सचिव मदन तामन, कोषाध्यक्ष उरगेन लामा, पेमन जिम्बा, विनय कुमार तामन सहित अन्य सदस्य उपस्थित रहे.
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alt="" width="600" height="400" /> सिक्किम और दार्जिलिंग से पहुंचे विशेष बौद्ध अनुयायी : बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर सुबह प्रभात फेरी निकाली गई, जो जैप वन कैंप से शुरू होकर हाईकोर्ट, गोरखा चौक होते हुए मंदिर परिसर स्थित गुम्बा तक पहुंची. इस शोभायात्रा में सिक्किम और दार्जिलिंग से आए विशेष बौद्ध अनुयायियों—मानसिंह तामन, अरुण लामा, संजोक लामा, डुपतेन लामा, सांगे लामा, और उरगेन लामा ने भाग लियाकार्यक्रम के मुख्य अतिथि कमांडेंट राकेश रंजन थे, जिनकी उपस्थिति ने आयोजन को गरिमा प्रदान की 1992 में हुई थी परंपरा की शुरुआत : डुपलिंग बौद्ध मंदिर समिति के सदस्य मनी लामा ने बताया कि राजधानी रांची में बुद्ध पूर्णिमा मनाने की परंपरा वर्ष 1992 में शुरू हुई थी.कमांडेंट डी.के. पांडे से अनुमति लेकर सुबेदार देवताना लामा और अजय लामा ने इसकी शुरुआत की थी. उस समय केवल 20-25 बौद्ध परिवारों की सहभागिता होती थी.आज यह आयोजन एक विशाल स्वरूप ले चुका है, जिसमें हर वर्ष हजारों की संख्या में बौद्ध अनुयायी भाग लेते हैं. 2002 में बनकर तैयार हुआ मंदिर : बताया गया कि जब यह मंदिर नहीं बना था, तब बौद्ध अनुयायी फोटो पूजन के माध्यम से भगवान बुद्ध की आराधना करते थे. वर्ष 2002 में जब यह मंदिर पूर्ण रूप से बनकर तैयार हुआ, तब से यह न केवल रांची, बल्कि पूरे झारखंड में बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है.
alt="" width="600" height="400" /> सिक्किम और दार्जिलिंग से पहुंचे विशेष बौद्ध अनुयायी : बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर सुबह प्रभात फेरी निकाली गई, जो जैप वन कैंप से शुरू होकर हाईकोर्ट, गोरखा चौक होते हुए मंदिर परिसर स्थित गुम्बा तक पहुंची. इस शोभायात्रा में सिक्किम और दार्जिलिंग से आए विशेष बौद्ध अनुयायियों—मानसिंह तामन, अरुण लामा, संजोक लामा, डुपतेन लामा, सांगे लामा, और उरगेन लामा ने भाग लियाकार्यक्रम के मुख्य अतिथि कमांडेंट राकेश रंजन थे, जिनकी उपस्थिति ने आयोजन को गरिमा प्रदान की 1992 में हुई थी परंपरा की शुरुआत : डुपलिंग बौद्ध मंदिर समिति के सदस्य मनी लामा ने बताया कि राजधानी रांची में बुद्ध पूर्णिमा मनाने की परंपरा वर्ष 1992 में शुरू हुई थी.कमांडेंट डी.के. पांडे से अनुमति लेकर सुबेदार देवताना लामा और अजय लामा ने इसकी शुरुआत की थी. उस समय केवल 20-25 बौद्ध परिवारों की सहभागिता होती थी.आज यह आयोजन एक विशाल स्वरूप ले चुका है, जिसमें हर वर्ष हजारों की संख्या में बौद्ध अनुयायी भाग लेते हैं. 2002 में बनकर तैयार हुआ मंदिर : बताया गया कि जब यह मंदिर नहीं बना था, तब बौद्ध अनुयायी फोटो पूजन के माध्यम से भगवान बुद्ध की आराधना करते थे. वर्ष 2002 में जब यह मंदिर पूर्ण रूप से बनकर तैयार हुआ, तब से यह न केवल रांची, बल्कि पूरे झारखंड में बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है.