Ranchi : राज्य के ब्यूरोक्रेसी में “मामा जी” की चर्चा है. मामा सरकार में किसी पद पर नियुक्त नहीं है. फिर भी सरकारी ठेका पट्टा में टांग अड़ाते हैं. अफसरों को अशोक नगर रोड नंबर- 2 के पास बुलाते हैं. कमान किसी और के पास है, लेकिन तीर तो मामा ही चलाते हैं. ब्यूरोक्रेसी की चर्चा में आने वाले यह दूसरे “मामा” है. एक “मामा “ छत्तीसगढ़ के शराब कारोबारियों के साथ यहां टपके थे. दूसरे मामा एक पब्लिक सर्वेंट के साथ पहुंचे हैं.
छत्तीसगढ़ के “मामा” के पास शराब का कोई ठेका पट्टा नहीं था. वह सिंडिकेट के एक सदस्य के मामा थे. इसलिए यहां शराब कारोबारियों के बीच "मामा" के नाम से चर्चित थे. छत्तीसगढ़ के "मामा" का काम सिंडिकेट के पक्ष में शराब कंपनियों को पटाना था. मामा ने कुछ कंपनियों को पटाया भी. जो पट गया उसकी चांदी थी. जो नहीं पटे उसका सितारा गर्दिश में चला गया. फिलहाल "मामा" के बदले सिंडिकेट का सितारा गर्दिश में नजर आ रहा है. कोई जांच एजेंसी के चक्कर में फंसा है तो कोई कोर्ट कचहरी के.
2020 में टपके दूसरे “मामा” का सितारा अब जाकर बुलंद हुआ है. इस मामा के पास भी कोई सरकारी कागज नहीं है. उन्हें “सरकार के प्रसाद पर्यंत तक बने रहने वाले" पद पर भी बहाल नहीं किया गया है. फिर भी वह सरकार के प्रसाद का सुख भोग रहे हैं. सरकारी ठेका पट्टा में दखल दे रहे हैं. यह ठेका इसे दे दो. यह ठेका उसे दे दो. यह ठेका उसे क्यों नहीं मिला. “मामा जी” की ओर से दागे गये इस तरह के निर्देश और सवालों के दायरे में फंसे अफसर तड़प कर रह जाते हैं. पर कोई बोल नहीं पाता है. क्योंकि वह मैडम जी के “मामा जी” हैं.
उनसे मिलने के लिए अफसरों को उनके नखरे उठाने पड़ते हैं. “मामा” को पहले फोन करना पड़ता है. इसके बाद मिलने का समय मिलता है. “मामा जी” अशोक नगर रोड नंबर -2 के पास के अपने एक अड्डे पर बुलाते हैं. पर इस बात का ख्याल रखते हैं कि एक साथ वक्त पर एक ही पुजारी पहुंचे, ताकि किसी को कोई दिक्कत-मशक्कत नहीं हो.
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