Shakeel Akhter
इस डरी हुई मीडिया को खुद नहीं मालूम था कि उसकी यह खबर इतना बड़ा तूफान मचा देगी. अगर मालूम होता तो जज के यहां मिले पैसों की बात वह कभी नहीं छापता.
एक हफ्ते तक बात दबी रही. खबर छपने के बाद जब तक सरकार चेतती तब तक राज्यसभा में यह मामला उठाया जा चुका था.
फिर भी खबर को दबाने का काम शुरू हुआ और फायर ब्रिगेड से कहलवाया गया की कोई पैसा नहीं मिला। सुप्रीम कोर्ट ने बयान जारी करके कहा की अफवाहें हैं.
मगर इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के कड़ा रुख अख्तियार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट को जांच के लिए तीन जजों की नियुक्ति करना पड़ी.
मीडिया की ताकत !
लेकिन गलत इस्तेमाल हो रही है.
अभी सीबीआई ने एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के मामले में एक्ट्रेस रिया चक्रवर्ती को क्लीन चिट दे दी. लेकिन 5 साल उस लड़की के लिए मीडिया ने जहर बना दिए थे.
उस सारे मीडिया के ऊपर मुकदमा चलाया जाना चाहिए.
मगर नहीं चलेगा. कोई मीडिया ऑर्गेनाइजेशन एडिटर्स गिल्ड शायद कुछ करने कहने की कोशिश करे. मगर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कोई संस्था शायद बोलने की हिम्मत करे.
यह तो सीबीआई ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट में कहा है. मगर तब्लीगी जमात के मामले में तो कोर्ट ने कहा की थूकने से कोरोना फैलाने की सारी बातें गलत थीं और जिन पर आरोप लगा था गिरफ्तार किया गया था उन सब को बाइज्जत बरी कर दिया.
उसमें भी मीडिया ने बहुत गंदा रोल अदा किया था.
उस मामले में तो केस झूठा था इसकी कोई खबर तक नहीं छपी.
जबकि रिया वाले मामले की तो कहीं-कहीं छोटी सी खबर दिख भी रही है.
बहुत सारी घटनाएं हैं.
मीडिया टूल बना हुआ है.
शर्मनाक.
सोचिए अगर यह मीडिया सिर्फ एक हफ्ते के लिए निष्पक्ष निर्भय और जन समर्थक हो जाए तो क्या होगा?
या चलो सिर्फ इतना ही करने लगे कि @grok के जवाब जो अपने आप सब खबरें हैं छापने लगे. टीवी पर बताने लगे तो क्या हो जाए?
जनता के सोच की प्रक्रिया ही रोक दी गई है. जनता सोचे!
तो भी बहुत कुछ हो सकता है!
दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के यहां पैसों का पहाड़ मिलने के मामले में जनता की प्रतिक्रिया से ही सरकार और न्यायपालिका के द्वारा मामला दबाने की कोशिशें कामयाब नहीं हो सकीं.
डिस्क्लेमरः लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. नव भारत टाइम्स में संपादक के पद पर काम कर चुके हैं. यह लेख उनके सोशल मीडिया पोस्ट से साभार लिया गया है.