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हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति में लेटलतीफी को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट आमने-सामने!

NewDelhi : हाई कोर्ट  के जजों की नियुक्ति में कथित टालमटोल रवैये को लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार आमने-सामने है.  खबर है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट सहित विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों  द्वारा मेमोरेंडम ऑफ प्रसीजर (MoP) का उल्लंघन किये जाने की बात कही है. बता दें कि एमओपी के तहत किसी जज का कार्यकाल समाप्त होने से छह महीने पहले ही नये जज की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की जाती है. यह संवैधानिक अदालतों में जजों की नियुक्ति को लेकर न्यायपालिका (अदालतों) और कार्यपालिका (सरकारों) के बीच एक लिखित सहमति होती है. टाइम्स ऑफ इंडिया ने केंद्रीय कानून मंत्रालय में न्याय विभाग के सूत्रों के हवाले से कहा कि 26 मार्च तक जजों के 410 पद खाली थे. उच्च अदालतों ने इनमें से 214 यानी 52फीसदी पदों के लिए कोई सिफारिश ही नहीं भेजी. इसे भी पढ़ें : फोर्ब्स">https://english.lagatar.in/forbes-released-the-rich-list-mukesh-ambani-surpassed-asias-richest-man-jack-ma/46496/">फोर्ब्स

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भारत सरकार  ने  45 नामों को सुप्रीम कोर्ट को क्यों नहीं भेजा 

देश के सीजेआई जस्टिस एसए बोबडे समेत जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सूर्यकांत ने 27 मार्च को अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से यह बताने को कहा था कि भारत सरकार विभिन्न उच्च न्यायालयों के कॉलेजियम से पास किये गये 45 नामों को सुप्रीम कोर्ट को क्यों नहीं भेज रही है, जिन्हें हाई कोर्ट जज के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की गयी है?  सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को इस पर 8 अप्रैल को जवाब देने को कहा है. जस्टिस कौल ने कहा कि सरकारउन 10 नामों पर भी फैसला नहीं कर सकी है जिन्हें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाई कोर्टों में बतौर जज नियुक्त करने की सिफारिश कर दी है. इसे भी पढ़ें :  लेखिका">https://english.lagatar.in/writer-wrote-on-facebook-post-soldier-killed-in-maoist-attack-not-martyr-arrested/46382/">लेखिका

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हाई कोर्ट कॉलेजियम की लेटलतीफी

खबर है कि कानून मंत्रालय ने विभिन्न हाई कोर्ट कॉलेजियम द्वारा सुझाये गेय 45 नामों को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के सामने पेश कर दिया है. मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा,वकीलों के कोटे से भर्ती का सबसे पुराना मामला 14 अक्टूबर, 2014 का ही है. लेकिन ओडिशा हाई कोर्ट कॉलेजियम ने छह साल बाद भी अब तक किसी नाम की सिफारिश नहीं की है. कम-से-कम नौ हाई कोर्ट की हालत ऐसी ही है जहां बार कोटे से खाली हुए पदों पर भर्ती के लिए पांच सालों बाद भी कोई सिफारिश नहीं आयी है.

 हाईकोर्टों में सर्विस कोटा के खाली पद भरने  की सिफारिश  नहीं आयी

मंत्रालय के अन्य अधिकारियों का कहना है कि कुछ ऐसा ही हाल सीनियर जूडिशियल ऑफिसरों के कोटे से हाई कोर्ट के जजों के खाली पद भरने को लेकर भी है.  सूत्रों ने कहा, तीन हाई कोर्टों में सर्विस कोटा के खाली पदों को भरने के लिए नामों की सिफारिश पांच-पांच सालों से नहीं आयी है. मंत्रालय ने जजों की नियुक्ति में लेटलतीफी में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका भी उजागर की और कहा कि पिछले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर, 2019 को ही रिटायर हो गये थे. लेकिन उनकी जगह भरने के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने अब तक किसी नाम की सिफारिश नहीं की है. तब से सुप्रीम कोर्ट में जजों के पांच पद खाली हो चुके हैं और कॉलेजियम ने एक भी नाम की सिफारिश नहीं की है.

जजों की नियुक्ति को लेकर यूपीए और एनडीए की तुलना

कानून मंत्रालय के अनुसार, 2018 में देश के उच्च न्यायालयों में रेकॉर्ड 618 जज कार्यरत थे जो 2019 में घटकर 677 जबकि 2020 में घटकर 668 हो गये. यूपीए शासन में हाई कोर्टों में सबसे ज्यादा जजों का रेकॉर्ड 2013 में बना था जब इनकी संख्या 639 थी.  मंत्रालय ने कहा कि 2016 में विभिन्न हाई कोर्टों के लिए 126 जजों की नियुक्ति हुई थी जो एक रेकॉर्ड है. यूपीए वन में हर साल औसतन 75 जबकि यूपीए टू में हर साल औसतन 74 हाई कोर्ट जजों की नियुक्ती का रेकॉर्ड रहा था. एनडीए शासन में हर साल औसतन 103 हाई कोर्ट जजों की नियुक्ति हुई है. https://english.lagatar.in/he-central-government-said-its-goal-is-not-to-give-vaccine-to-everyone/46494/

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