Lagatar Desk चाईबासा जिला. लौह अयस्क का सबसे बड़ा भंडार. सरकार को सबसे अधिक राजस्व देने वाला जिला. जाहिर है स्थानीय ग्रामीणों के लिये रोजगार का एक मात्र सहारा. लौह अयस्क की माइंस और लौह अयस्क से जुड़ी अलग-अलग तरह की कंपनियां. मजदूरों की अपनी समस्याएं हैं, अक्सर कुछ मांगें भी होती हैं, जिसे कंपनियां पूरी करती है. थोड़े-थोड़े समय पर छोटे बड़े आंदोलन भी होते हैं. कुछ मांगें पूरी होती हैं, कुछ मांगे थोड़े समय बाद पूरी की जाती हैं. दुनिया भर में सरकारी और गैर सरकारी कंपनियों में यही होता है. मजदूर बेरोजगार नहीं होते.

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मजदूरों को भड़काते हैं और काम ठप कर देते हैं
लेकिन चाईबासा में कुछ अलग होने लगा है. इन आंदोलनों का नेतृत्व करने के लिये कुछ मजदूर नेता अस्तित्व में आ गये हैं. इनमें प्रमुख हैं जॉन मिरन मुंडा और मान सिंह तिरिया. ये मजदूर नेता बाहर से लोगों को जुटाते हैं, माइंस और कंपनियों में काम करने वाले मजदूरों को भड़काते हैं और काम ठप कर देते हैं. नोवामुंडी के करमपदा माइंस में इस बार कुछ अलग हो गया. एसीसी कंपनी समेत अन्य कंपनियों को परेशान करने के कारण कथित मजदूर नेता जॉन मिरन मुंडा जिला बदर हैं. तो उसके सहयोगी मान सिंह तिरिया मे मोर्चा संभाला. मजदूरों को भड़का करके नोवामुंडी के करमपदा माइंस से लौह अयस्क की ढ़ुलाई को ठप करा दिया. बहाना यही कि पुराना बकाया (पीएफ-ग्रेच्युटी) का पहले भुगतान हो.
मजदूर अपने ही मजदूर नेता के खिलाफ हो गये
9-10 दिनों तक तो आंदोलन चला. लेकिन कंपनी प्रबंधन ने जब मजदूरों को समक्ष यह साफ किया कि सभी मजदूरों का बकाये का भुगतान कर दिया गया है. अगर किसी का बकाया है तो वह कंपनी के कार्यालय में आकर भुगतान ले ले, तो मजदूरों को सच पता चला. मजदूर अपने ही मजदूर नेता के खिलाफ हो गये और माइंस में काम शुरू कर दिया. यह देख कथित मजदूर नेता मान सिंह तेरिया बौखला गया और 6 अक्टूबर को माइंस में पहुंच कर काम बंद करवा दिया. तब मजदूर आक्रोशित हो गये और मान सिंह तिरिया और उसके साथ पहुंचे लोगों को घेर लिया. रोजगार के सवाल पूछे. धक्का-मुक्की भी की. जिसके बाद मान सिंह तिरिया किसी तरह वहां से जान बचा करके भागे.
मजदूरों को बरगलाने का खेल बंद
मजदूरों को बरगलाने का खेल जब बंद हो गया है तो अब जोन मिरन मुंडा ने सोशल मीडिया का सहारा लिया. उसने अब ग्रामीण मुंडा मानकी प्रबंधन व्यवस्था पर सवाल उठाया है. एक पोस्ट लिख कर ग्रामीण मुंडा व्यवस्था को दलाल बताने लगा है. जबकि सच्चाई यह है कि ग्रामीण मुंडा व्यवस्था को सरकार से कानूनी अधिकार प्राप्त है. वह ग्रामीणों को रोजगार दिलाने और न्याय देने-दिलाने का काम कर रहे हैं. [wpse_comments_template]
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