Chaibasa (Sukesh Kumar) : झारखंड में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग में शिक्षकों की बहाली करने की प्रक्रिया शुरू नहीं करना झारखंडियों के साथ गहरा षड्यंत्र का हिस्सा है. यही वजह है इससे संबधित फाइल वर्षों से वित्त विभाग के ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है. सरकार भी कुंभकरण की नींद सो रही है. यह बातें झारखंड पुनरुत्थान अभियान के संयोजक सन्नी सिंकु ने कही है. उन्होंने इससे संबंधित एक ट्वीट मुख्यमंत्री को किया है और इससे संबंधित मांगपत्र उपायुक्त को सौंपा है. मांग पत्र के माध्यम से सन्नी सिंकु ने कहा है कि हो, संथाली, मुंडारी, कुडुख, खड़िया, नागपुरी, कुरमाली, खोरठा, पंचगरनिया भाषा विभाग की स्थापना डॉ रामदयाल मुंडा ने 1980 में ही की थी. डॉ रामदयाल मुंडा चाहते थे कि झारखंड के इन मूल भाषाओं से विश्वविद्यालय में छात्र- छात्राएं पढ़े और झारखंडी संस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिले. यह बिहार सरकार के कार्यकाल में फला फूला. लेकिन झारखंड बनने के 22 वर्षों के बाद भी कोई भी पार्टी ने डॉ रामदयाल मुंडा और मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के सपने को पूरा नहीं कर पाया.
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झारखंड की जनता में जागरूकता की घोर कमी
कोल्हान विश्वविद्यालय में हो भाषा की शिक्षक की कमी के कारण हो भाषा से उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले इच्छुक विधार्थी पीएचडी करने से वंचित हो रहे है. कोल्हान भर के विधायकों को भी इसकी तनिक भी चिंता नहीं है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि झारखंड के प्रबुद्ध आदिवासी मूलवासी राजनीत से दूर रहते है और झारखंड की जनता में राजनीतिक जागरूकता की घोर कमी है. झारखंड के आदिवासी मूलवासियों की निर्दोष, निरक्षर, निर्मल, निश्चल होना ही अभिशाप बनते जा रहा है. इसीलिए झारखंड पुनरुत्थान अभियान एक सामाजिक संगठन का गठन किया गया है. ताकि झारखंड के आदिवासी मूलवासियों के बीच समुचित समन्वय स्थापित कर झारखंड की भाषा, संस्कृति, पारंपरिक स्वशासन, सामुदायिक मूल भावना को पुनर्स्थापित किया जा सके.
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