तेज हवा बहने पर स्पंज आयरन कंपनियों से उड़ने वाले धूलकण से छाया अंधेरा
Chandil (Dilip Kumar) : लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के कुछ देर बाद ही मौसम का मिजाज बिगड़ा और तेज हवा बहने के साथ क्षेत्र में बारिश हुई. बारिश होने से कहीं खुशी तो कहीं गम की स्थिति रही. चुनाव की अधिसूचना जारी होने के कुछ देर बाद ही आंधी-तूफान से चांडिल के विकास का वास्तविक नजारा देखने को मिला. तेज हवा बहने के साथ ही प्रखंड क्षेत्र स्थित स्पंज आयरन फैक्ट्रियों से काले धूलकण उड़ने लगे. इस कारण पूरा क्षेत्र अंधेरे की आगोश में चला गया. सड़कों पर चालकों को लाइट जलाकर वाहन चलाना पड़ा. लोगों का घर-आंगन काले धूल से भर गये. यहां स्पंज आयरन फैक्ट्रियों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम को लेकर कई बार आवाज बुलंद की गई, लेकिन हर बार आवाज को दबा दिया गया. कुछ लोगों को अपने पाले में कर फैक्ट्री संचालक विनाशकारी प्रदूषण के खिलाफ आवाज बुलंद करने वालों की आवाज को बंद करवा देते हैं.
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जनप्रतिनिधि भी खामोश
चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में स्थापित स्पंज आयरन फैक्ट्रियों में प्रदूषण रोकने के नियमों की अनदेखी हो रही है. जिसका नतीजा है कि यहां के साग-सब्जी खाना भी दुश्वार हो गया है. तालाब और कुआं में पानी के ऊपर मोटी काली परत जम जा रही है. क्षेत्र में लोगों टीबी और सांस संबंधी बीमारी के मरीजों की संख्या बढ़ने लगा है. स्पंज आयरन फैक्ट्रियों के कारण समूचा इलाका प्रभावित हो रहा है. इस अहम मुद्दे पर क्षेत्र के जनप्रतिनिधि चुप्पी साधे हुए हैं. क्षेत्र के लोग जिस समस्या से त्राहिमाम कर रहे हैं, उस समस्या पर बोलने से अबतक बचते रहे हैं. कारण आखिर कुछ भी लेकिन मानव जीवन की कीमत पर विनाशकारी प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग चलाने की मंजूरी नहीं मिलनी चाहिए. कुछ फैक्ट्रियों के कारण इलाका बर्बाद होने के कगार पर है. क्षेत्र में लाह समेत कई प्रकार का पैदावार अब बंद हो चुका है और जनप्रतिनिधि व बोर्ड मूकदर्शक बने हुए हैं. आने वाले दोनों चुनाव में विनाशकारी प्रदूषण का मुद्दा उभरकर सामने आ सकता है. इसको लेकर लोग गोलबंद होने लगे हैं.
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मानकों का अनुपालन नहीं करते फैक्ट्री
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि क्षेत्र में स्थापित स्पंज आयरन फैक्ट्रियां प्रदूषण नियंत्रण को लेकर तय मानकों को पूरा नहीं करते हैं. इसका नतीजा है कि फैक्ट्री के आसपास के क्षेत्र में लोग त्राहिमाम कर रहें हैं. पेड़ों के हरे पत्ते काले हो जाते हैं. बताया जा रहा है कि प्रदूषण नियंत्रण को लिए इएसपी (इलेक्ट्रो स्टैटिक प्रेसिपिटेटर) लगता है, जिसकी कीमत लगभग दो करोड़ रुपये है. इतना ही नहीं इसे चलाने में प्रतिमाह छह लाख रुपये से अधिक का बिजली बिल भी आता है. इस कारण फैक्ट्रियों में इएसपी को लगाया गया है, लेकिन इसे जांच के दौरान ही चलाया जाता है. कंपनी परिसर और मुख्य पथ तक पक्की सड़क भी नहीं बनायी गयी है. कई फैक्ट्रियों में तो सड़क के ऊपर मोटी धूल जमी रहती है. यहां कंपनी के अंदर भी समूचित रूप से पानी का छिड़काव नहीं किया जाता है. इसके खिलाफ कई बार आंदोलन हुए, धरना-प्रदर्शन किया गया, तालाबंदी हुए और हर बार आश्वासन की घुट्टी पिलाकर आंदोलन को समाप्त करवा दिया जात है.
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