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अंग्रेजी और हिंदी में भी प्रकाशन
उर्दू लेखक व एक्टिविस्ट हुसैन कच्छी ने बताया कि समरुल हक के समसामयिक लेख दिल्ली-रांची के अंग्रेजी और हिंदी के अखबारों में भी छपा करते थे. वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री बलवीर दत्त के बकौल जब वो रांची एक्सप्रेस के संपादक थे तो समरुल हक के राजनीतिक- सामाजिक विषयों पर लेख प्रकाशित होते थे. समरुल बोलते थे और बलवीर दत्त लिखते जाते थे. अंजुमन इस्लामिया के अध्यक्ष अबरार अहमद बताते हैं कि उनके भीतर साहित्य-कला का बीजारोपण समरुल हक ने ही किया. वो उनके सगे मामा लगते थे.छोटनागपुर मेल का पहला संपादकीय
छोटनागपुर मेल के पहले संपादकीय में ही समरुल हक ने अपनी नीति स्पष्ट कर दी थी. उन्होंने लिखा, छोटानागपुर न सिर्फ़ क़ुदरती मनाजिर (प्राकृतिक दृश्यों), पुरबहार फ़िज़ाओं, बलखाती पहाड़ी नदियों, घने जंगलों और इसमें बसने वाले भोले-भाले इंसानों की सर- जमीन है, बल्कि ये वो जगह है जिसके सीने मअदनियात (खनिज) के बेशुमार खजाने दफन हैं. जिसकी वजह से इसको हिंदुस्तानी मअशीयत (अर्थव्यवस्था) में रीढ़ की हड्डी का दर्जा हासिल है. लेकिन ये अजीब सितम जरीफ़ी (विडंबना) है कि सोने की इस धरती पर सोने वालों को असम और अंडमान में जाकर रोटी तलाश करनी पड़ती है....छोटानागपुर मेल इनके हक की लड़ाई लड़ेगा. [caption id="attachment_286204" align="aligncenter" width="1068"]alt="" width="1068" height="1446" /> यह पहला सम्पादकीय[/caption]
स्वतंत्रता सेनानी जैनुलआब्दीन के घर जन्म
समरुल हक का जन्म 3 फ़रवरी 1929 को स्वतंत्रता सेनानी पिता ज़ैनुलआब्दीन के घर रांची में हुआ था. ज़ैनुल असहयोग आंदोलन के दौरान जेल की सजा भी भुगत चुके थे. समरुल की शुरुआती पढ़ाई चर्च रोड के नगरपालिका स्कूल में हुई. अपर प्राइमरी की प्रतियोगी परीक्षा में समूचे छोटानागपुर में अव्वल आये. हर महीने 3 रुपये की छात्रवृत्ति भी मिलनी शुरू हो गई. मिडिल में जब संपूर्ण बिहार में प्रथम आये तो छात्रवृत्ति बढ़कर 5 रुपये प्रति माह हो गई, जो मैट्रिक तक जारी रही. इसी दरम्यान पिता की मौत हो गई. समरुल को बीमारी ने चपेट में ले लिया. 1944 में मैट्रिक पास तो कर लिया, पर उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली. 1946 में संत जेवियर्स कॉलेज, रांची में बीएससी में दाखिला लिया.अखबार की कीमत थी महज 20 पैसे
कॉलेज में प्रवेश तो कर लिया, लेकिन बीमारी ने समरुल का दामन नहीं छोड़ा. लगातार 12 साल तक संकट बना रहा. लेकिन बीमारी की उबासी ने उन्हें साहित्य और लेखन की ओर उन्मुख किया. वो उर्दू में कविता, कहानी और लेख आदि लिखने लगे. रचनाएं छपने भी लगीं. दिल्ली से प्रकाशित अंग्रेज़ी साप्ताहिक मैसेज के लिए रिपोर्टिंग भी की. 1954 में बतौर पत्रकार इन्हें सरकारी मान्यता मिली. देवी प्रसाद गुप्ता के संडे मेल और संडे प्रेस के प्रकाशन में भी सहयोग किया. और आखिर 1967 में छोटानागपुर के पहले साप्ताहिक अखबार छोटानागपुर मेल का आग़ाज कर दिया. कीमत रखी 20 पैसे. यह अखबार 1977 तक छपता रहा. इसके बाद इसके छिटपुट अंक निकले. 15 सितंबर 2012 को समरुल हक का निधन हो गया. इसे भी पढ़ें – लॉयर्स">https://lagatar.in/lawyers-forum-wrote-to-governor-cm-and-cs-demand-action-against-ranchi-dc-who-threatened-advocate-rajiv-kumar/">लॉयर्सफोरम ने राज्यपाल,CM और CS को लिखा पत्र,“अधिवक्ता राजीव कुमार को धमकी देने वाले रांची DC पर हो कार्रवाई” [wpse_comments_template]