Rajan Bobby
Ranchi: गौशाला न्यास समिति की आम सभा में बाढ़ू, बुकरू स्थित गौशाला की जमीन बेचने का मामला गरमाया रहा. सभा की औपचारिकता पूरी करने और आय-व्यय का ब्योरा प्रस्तुत करने के बाद जैसे ही चेयरमैन रतन जालान ने विषय प्रवेश कराया, सशंकित सदस्यों ने सवालों की बौछार कर दी. खास कर गौशाला की जमीन बेचे जाने पर कई सवाल उठाये गए. सदस्यों ने जानना चाहि के आखिर गौशाला की जमीन सस्ती दर पर क्यों बेची गयी. आखिर किस मजबूरी के तहत जमीन बेची गयी. जमीन बेची गयी, तो आम सदस्यों से राय-मशविरा क्यों नहीं किया गया. कुछ इसी तरह के सवाल सदस्य उठाते रहे. फिर 135 सदस्यों की सदस्यता का भी मामला उठा. तय हुआ कि आपस मिलजुल कर हर मामले को सुलझा लिया जाएगा.
प्रेम मित्तल ने पूछा- क्यों बेची गयी गौाशाला की जमीन
सभा शुरू होते ही सबसे पहले प्रदीप मित्तल ने बाढ़ू, बुकरू स्थित गौशाला की जमीन बिक्री का मामला उठाया. इस पर चेयरमैन रतन जालान ने कहा कि गौशाला के नाम पर यह भूमि 1962 में खरीदी गयी थी, न तो उसपर गौशाला का कब्जा था और न ही पुख्ता कागजात थे. इस कारण जमीन बेच दी गयी.

पुराने अनुबंध के तय पैसों पर कैसे बेची गई जमीन ?
सदस्यों ने सवाल उठाये कि 1914 में भूमि का एग्रीमेंट किया गया था और रजिस्ट्री 2021 में की गयी. सात साल में जमीन का भाव कई गुणा बढ़ जाता है. फिर पुराने अनुबंध के तय पैसों पर भूमि कैसे हस्तांतरित की गयी. इस पर रतन जालान ने बताया कि विवादित जमीन का कोई खरीदार नहीं मिल रहा था, इस कारण एग्रीमेंट की अवधि उसी तय मूल्य पर बढ़ायी गयी थी. जब भूमि बिक्री का पैसा आया था, तो गौशाला में डूबा धन मिलने की खुशी में मिठाइयां बांटी गयी थीं.
पुनीत बिफरे- बोले आपके स्टाफ नहीं हैं कि खाता-बही ढोते रहेंगे
चेयरमैन ने गौशाला की अन्य जमीनों में आ रही दिक्क्तों के बारे में भी सदस्यों को जानकारी दी. साथ ही सदस्यों से सहयोग की अपील भी की. इतना सुनते ही एक सदस्य ने कागजात दिखाने की मांग कर दी, इस पर पुनीत पोद्दार विफर गये. कहा कि आपके स्टाफ नहीं हैं कि खाता-बही ढोते रहेंगे. इसी दौरान कमल सिंघानिया ने सवाल उठाया कि न्यास के संविधान के अनुसार गौशाला की भूमि ट्रस्ट से जुड़ा कोई व्यक्ति नहीं खरीद सकता, फिर जिसे जमीन बेची गयी उसे ही ट्रस्टी कैसे बना दिया? उन्होंने यह भी बताया कि जमीन का एग्रीमेंट सबसे पहले मेरे पिता जी ने किया था, पर उस समय जमीन नहीं बेचे जाने की बात कह कर उन्हें जमीन नहीं दी गयी. कहा गया कि भविष्य में जब भी इसकी बिक्री की जाएगी, तो आपको या आपके परिवार को पहला मौका दिया जाएगा. कमल ने कहा कि बावजूद ऐसा नहीं हुआ, इस संबंध में मैने ट्रस्ट को पत्र लिखा है. इसपर पुनीत पोद्दार ने कहा कि पत्र दिखाइए। हलांकि हल्की नोंक-झोंक के बाद दोनों शांत हो गए.
सुरेश अग्रवाल बोले- पदाधिकारी हैं तो कागजात लेकर आना चाहिए
जमीन खरीद-बिक्री के मामले को लेकर सुरेश अग्रवाल ने भी जमकर तकरार की. उन्होंने पुनीत पोद्दार की बातों का प्रतिकार करते हुए कहा- कहते हैं नौकर नहीं है. पदाधिकारी हैं तो कागजात लेकर आना चाहिए, संबंधित जानकारी देनी चाहिए. सब गड़बड़ घोटाला है.
गौशाला सामाजिक संस्था, बाजार में छीछालेदर करने से बाज आयें
बहस, नोंक-झोंक के बीच सूर्यनारायण राजगढ़िया, पवन बजाज, केके पोद्दार,आरके चौधरी, समिति के उपाध्यक्ष प्रेम अग्रवाल आदि ने भी कहा कि गौशाला सामाजिक संस्था है. इसे बाजार में छीछालेदर करने से बाज आयें. मिलजुल कर काम करें, इसी में सबकी महानता है. एकजुटता बनाये रखें, कोई भी समस्या है, तो उसे अपने बीच ही सुलझाने का प्रयास करें. इन लोगों ने गौशाला न्यास के कार्यों की सराहना भी की. कहा कि हाल के दिनों में पहले की अपेक्षा गौशाला का ज्यादा विकास हुआ है.
सभा संपन्न होते ही कृष्ण गोपालका कागजात के साथ पहुंचे
दोपहर डेढ़ बजे जैसे ही सभा का समापन हुआ, कृष्ण गोपालका कागजात के साथ पहुंचे और न्यास समिति के पदाधिकारियों पर आरोप लगाते हुए कहा कि जमीन का एग्रीमेंट उनके साथ किया गया था, बाद में जमीन दूसरे को बेच दी गयी. यह कहां का इंसाफ है. ट्रस्टियों और पदाधिकारियों को नोटिस भी भेजा है, पर अब तक कोई जवाब नहीं दिया गया. बाद में लोगों ने उन्हें समझा-बुझा कर वापस भेज दिया.
गौशाला न्यास के इतिहास में ऐसा हुआ न था
गौशाला न्यास के इतिहास में पहले ऐसा हुआ न था, जब दो-दाे बार चुनाव तिथि की घोषणा के बावजूद चुनाव न कराया जा सका हो. इसी माह दूसरी बार चुनाव स्थगित किया गया. इससे पहले चार फरवरी को चुनाव कराया जाना था, पर 135 सदस्यों की सदस्यता को लेकर उठे विवाद के कारण इसे रद्द करना पड़ा. इसके बाद 28 फरवरी को पुन: चुनाव कराने की घोषणा की गयी थी, लेकिन यह भी सदस्यका के मुद्दे का भेंट चढ़ गया.
ललित पोद्दार ने दो-दो संविधान का मामला उठाया
ललित पोद्दार ने आम सभा में दो-दो संविधान चलाने और 135 सदस्यों की सदस्यता का ममला उठाया. कहा कि जब 2011 में संविधान बना, तो पहले वाला वैसे ही निरस्त हो जाता है. लोग कोर्ट और सरकारी महकमें में जाने की बात को लेकर विफर रहे हैं. सदस्यता रद्द करने की बात कर रहे हैं. क्या मैं समाज के बाहर का हूं. कई संगठनों का कार्यभार भी मेरे कांधे पर है. नियम-कानून मैं जानता हूं. यदि सही प्लेटफॉर्म पर बात नहीं सुनी जाएगी, तो दूसरी जगह जाना तो मजबूरी बन जाती है. इस बाबत पत्र भी लिखा, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई. 135 में से 25 को छांट कर सदस्यता दे दी गयी, बाकी को क्यों छोड़ दिया गया? पुराने जिन लोगों ने इनकी अनुशंसा की थी, क्या उन्होंने गलत किया था. यदि मुद्दा है तो इसपर तत्काल निर्णय किया जाना चाहिए. कोई कोर्ट-कचहरी नहीं जाना चाहता.
रतन बोले- लांक्षन न लगाइये, जो हुआ भूल जाइए
चैयरमैन रतन जालान ने भी करारा जवाब दिया. कहा कि आप भी कार्यकारिणी से जुड़े रहे हैं. पहले इस मुद्दों को क्यों नहीं उठाया. ललित के फोन करने की बात और पत्र देने की बात को खरिज करते हुए रतन ने लांक्षन न लगाने की बात कही. कहा कि यदि सही तरीके से आते तो बैठकर बात हो जाती. गो सेवा आयोग में बुजुर्गों को लेकर गये. पांच घंटा बर्बाद हुआ. जो हुआ उसे भूल जाइए. आइए आगे मिलजुल कर गौ माता की सेवा करें ,इसके लिए सार्थक रास्ता बनायें.
गलतियों को सुधारेंगे, मिल कर करेंगे काम: जालान
पुरानी गलतियों को सुधार कर आगे गोवंश संवर्धन के लिए बेहतर काम करेंगे. जो भी फैसले लिए जायेंगे, वे आम सहमति बना कर ही लिए जायेंगे.15 दिनों के अंदर सदस्यों की सदस्यता का मामला भी सुलझा लिया जाएगा. कहीं कोई गलत काम नहीं हुआ है. यदि किसी को लगता है, तो आकर बात करें, मिल-बैठकर शंका का समाधान करेंगे. उन्होंने कहा कि गौशाला का पैसा खाना, गो मांस खाने जैसा है. हमारा समाज इतना गिरा नहीं कि कोई ऐसा करेगा. पहले जो होना था, वो तो हो चुका, अब आगे बेहतर काम हो, इसके लिए प्रयास किया जाना चाहिए।
कुछ ने सराहा, कुछ ने खरी-खोटी सुनायी
चेयरमैन रतन जालान, अध्यक्ष पुनीत पोद्दार, सचिव प्रदीप राजगढ़िया, कोषाध्यक्ष दीपक पोद्दार, उपाध्यक्ष प्रेम अग्रलाल आदि ने सभा में मंच साझा किया.चेयरमैन, अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष ने अपनी बात रखी और लोगों की सुनी भी. कुछ ने समर्थन कर इनके कार्यों की सराहना की, तो कई लोगों ने खरी-खोटी भी सुनायी.
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