Alok Ranjan Jha ‘Dinkar’
जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव आगे बढ़ रहा है, चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर संदेह के बादल गहराते जा रहे हैं. जिस संस्था पर मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट (एमसीसी) को सख्ती से लागू करने और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी है वह अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वहन करती नहीं दिख रही है. आदर्श आचार संहिता की जिस तरह खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और अपारदर्शी तरीके से चुनाव प्रक्रिया संचालित की जा रही है वह चिंता में डालने वाली है. एमसीसी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को ऐसी गतिविधियों में शामिल होने से रोकती है, जो विभिन्न जातियों और समुदायों के बीच विद्यमान मतभेद को और अधिक बढ़ाएं या परस्पर घृणा उत्पन्न करें. इसके साथ ही राजनीतिक दलों की आलोचना उनकी नीतियों/कार्यक्रमों और पिछले कार्यों तक सीमित रखकर दूसरे दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं की निजी जिंदगी के ऐसे सभी पहुलओं की आलोचना का निषेध करती है, जो उनकी सार्वजनिक गतिविधियों से नहीं जुड़ी हुई हैं. असत्यापित आरोपों के आधार पर दूसरे दलों और नेताओं की आलोचना से बचने का निर्देश देती है. लेकिन वर्जित होने के बावजूद वोट हासिल करने के लिए जाति या संप्रदाय की भावनाओं को भड़काया और चुनाव प्रचार में धार्मिक स्थलों/प्रतीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि दिशा निर्देशों का उल्लंघन करने के बाद भी चुनाव आयोग जिम्मेदार दलों और नेताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पा रहा है.
लोकतंत्र में चुनाव केवल स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होना ही नहीं चाहिए, बल्कि यह दिखाई भी देना चाहिए. लेकिन क्या ऐसा हो रहा है? चुनाव आयोग द्वारा पहले चरण के मतदान के अंतिम आंकड़े और वह भी आधे-अधूरे 11 दिन बाद जारी किए जाने पर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं. विपक्ष का कहना है कि आमतौर पर ये आंकड़े मतदान के 24 घंटे के भीतर जारी कर दिये जाते हैं, लेकिन इस बार ये काफी देरी से जारी हुए हैं. उसका कहना है कि दूसरे चरण के खत्म होने के चार दिन बाद फाइनल डाटा जारी किया गया. यह प्रारंभिक आंकड़े से 5.75 प्रतिशत अधिक है, जो सामान्य नहीं लगता है. विपक्ष ने यह भी कहा है कि चुनाव नतीजों में हेरफेर की आशंका बनी हुई है, क्योंकि गिनती के समय कुल मतदाता संख्या में बदलाव किया जा सकता है. वहीं जाने-माने राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने कहा है कि प्रारंभिक मतदान और अंतिम मतदान आंकड़ों के बीच तीन से पांच प्रतिशत अंकों का अंतर असामान्य नहीं है, क्योंकि ऐसा पहले भी होता रहा है.
इस बार चिंताजनक बात अंतिम आंकड़े प्रकाशित करने में देरी और प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र एवं उसके खंडों के लिए मतदाताओं और डाले गए वोटों की वास्तविक संख्या का खुलासा न करना है. ऐसे में यहां चुनाव आयोग की जिम्मेदारी बनती है कि वह आगे आए और विपक्षी दलों एवं जनता के संदेह को दूर करते हुए देश को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव का भरोसा दिलाये.
इससे पहले विपक्षी दलों ने पहले चरण के मतदान के बाद राजस्थान के बांसवाड़ा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चुनावी रैली में हैरान कर देने वाली की गई टिप्पणी पर चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई. विपक्ष ने ‘हेट स्पीच’ का आरोप लगाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री की टिप्पणी दुर्भावनापूर्ण और विभाजनकारी थी और इसके जरिए एक विशेष धार्मिक समुदाय को निशाना बनाया गया था. इसको लेकर विपक्ष के साथ-साथ अन्य वर्गों के लोगों ने भी प्रधानमंत्री के खिलाफ उचित कार्रवाई की मांग की, लेकिन चुनाव आयोग ने कई दिनों की रहस्यमयी चुप्पी के बाद इस मामले में जैसी कार्रवाई की वैसी पहले कभी नहीं देखी गई थी. चुनाव इतिहास में पहली बार आयोग ने आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले किसी नेता की जगह उसके दल के अध्यक्ष को नोटिस भेजा.
हालांकि इसमें भी संतुलन साधने की कोशिश की गई और तुलनात्मक रूप से कमजोर मानी जा रही एक शिकायत पर विपक्ष के शीर्ष नेता राहुल गांधी से संबंधित पार्टी के प्रधान को भी नोटिस थमा दिया गया. इसके साथ ही यह पहला चुनाव है, जिसमें दो-दो निर्वाचित मुख्यमंत्री जेल में हैं. केंद्रीय एजेंसियां विपक्षी दलों और नेताओं को लगातार निशाने पर ले रही हैं. सत्तारूढ़ दल द्वारा येन-केन-प्रकारेण विपक्षी दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों को अपना नामांकन पत्र वापस लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है, लेकिन चुनाव आयोग मूकदर्शक बना हुआ है. इससे चुनाव आयोग की निष्पक्षता संदेह के घेरे में आती है.
देश ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है. ऐसे में सबकी निगाहें भारत निर्वाचन आयोग पर टिकी हैं कि कैसे वह अपनी गौरवपूर्ण विरासत को आगे बढ़ाते हुए अपनी संदिग्ध गतिविधियों को पारदर्शी करता है. अपने ‘नियोक्ता’ के किसी भी नैतिक या अनैतिक दबाव से मुक्त होने का साहस दिखाकर चुनाव प्रक्रिया में जनता का विश्वास और देश में लोकतंत्र कायम रखने में अपने हिस्से का अति महत्वपूर्ण योगदान देता है. समझने की जरूरत है कि सभी राजनीतिक दलों एवं प्रत्याशियों के लिए लेवल प्लेइंग फील्ड और भयमुक्त माहौल उपलब्ध कराना चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है ताकि चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष तरीके से संपन्न हो सके.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.