Simdega : झारखंड के आदिवासी समाज में मनोरंजन के लिए मुर्गा लड़ाई का खेल एक परंपरा के जैसा सदियों से खेला जाता रहा है. लेकिन आदिवासी समाज के पारंपरिक मनोरंजन का साधन मुर्गा लड़ाई धीरे-धीरे जुआ का रूप धारण करता जा रहा है. जुए के कारण इस परंपरागत मनोरंजन में आपराधिक घटनाओं का इजाफा होता जा रहा है. एक रिपोर्ट
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साप्ताहिक हाट में उत्सव का माहौल
सिमडेगा के सुदुर ग्रामीण क्षेत्रों में साप्ताहिक हाट बाजार हो या गांव का कोई उत्सव और वहां मुर्गा लड़ाई का आयोजन न हो,ऐसा विरले ही देखने को मिलता है. आदिवासी समाज की परंपरा से जुड़ा मनोरंजन का साधन आज जुए का अड्डा बन गया है. जहां यहां के भोले भाले आदिवासियों की गाढ़ी कमाई जुए की भेंट चढ़ जा रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में में होने वाले इस मुर्गा लड़ाई के खेल में नशे की हालत में ग्रामीण अपनी गाढ़ी कमाई को दुगनी करने के चक्कर में दांव लगाते हैं.
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20 से 25 हजार रुपये तक का होता है खेल
इस खेल में 10 रूपये से लेकर एक हजार तक की बोली लगती है, और हरेक दांव में करीब 20 से 25 हजार रुपये तक का खेल होता है. मुर्गा लड़ाई करवाने वाले गांव के हीं दबंग लोग होते हैं. जो चालाकी से ग्रामीणो के पैसे उनके नशे का फायदा उठा कर हारने वाले मुर्गे पर दांव लगा कर पैसे हडप लेते हैं. खेल के नाम पर ग्रामीण अपनी गाढ़ी कमाई लुटाकर बस हाथ मलते रह जाते हैं. मुर्गा लड़ाई में जहाँ ग्रामीण अपनी गाढ़ी कमाई लुटा रहे हैं. वहीं इस खेल में हार जीत के बीच आपराधिक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिल रहा है. अक्सर सुनने को मिलता है कि मुर्गा लड़ाई के दौरान मारपीट होने लगता है. जहां मुर्गा लड़ाई होता है, उसी के आसपास अवैध दारू भी बिकते हैं. आदिवासी नेता लुईस कुजूर भी मनोरंजन की परंपरा में इस तरह जुआ को लेकर काफी चिंतित नजर आए. उन्होंने ने भी मनोरंजन के इस बदलते स्वरूप को गलत बताया. इस खेल का एक पहलु और भी है. इस खेल में मुर्गों के पैर में चाकू बांधा जाता है. जिससे लड़ाई के दौरान मुर्गे लहुलुहान हो जाते हैं. जो पशु क्रूरता है. खुलेआम इस तरह हिंसक खेल के प्रदर्शन से ग्रामीण बच्चों पर भी बिगडने लगते हैं. आज बांसजोर के गिनिकेरा में कोलेबिरा विधायक नमन विक्सल कोंगाडी के सामने भी उनके पंचायत अध्यक्षों के द्वारा इस समस्या को रखा गया. जहां उनकी पहल पर ऐसे जुआ खेलवाने वालों पर पुलिसिया कार्रवाई भी हुई. लेकिन ये तो महज एक बानगी है. ऐसे मुर्गा लडाई के माध्यम से जिले में कई जगहों पर जुआ खेलने की सूचना है. कोई भी परंपरा जब कुरीति बन जाए तो ऐसी परंपरा पर अंकुश लगा देना चाहिए.
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