
टिप्पणीः कोल ट्रांसपोर्टर अभिषेक श्रीवास्तव की हत्या से उठते सवाल

Saurav Singh ज्यादा दिन नहीं हुए हैं कोल ट्रांसपोर्टरों पर टीपीसी के नक्सलियों से सांठ-गांठ के आरोप लगे. यह आरोप लगा था कि ट्रांसपोर्ट के कारोबार में टीपीसी का पैसा लगा है. यह भी आरोप लगा कि उग्रवादी-ट्रांसपोर्टर की सांठ-गांठ से ही चतरा के टंडवा व पिपरवार इलाके में बड़े पैमाने पर (प्रति माह करीब आठ करोड़) की लेवी वसूली कुछ साल पहले तक होती थी. दो दिन पहले कोल ट्रांसपोर्टर अभिषेक श्रीवास्तव की हत्या कर दी गई. अब टीपीसी ने हत्या की जिम्मेदारी ली है. साथ ही उन आरोपों की भी पुष्टि कर दी है, जिनमें ट्रांसपोर्टरों द्वारा उग्रवादियों को पैसे देने की बात कही जा रही थी. हत्याकांड की जिम्मेदारी लेते हुए उग्रवादी संगठन ने कहा है कि जिन ट्रांसपोर्टरों के पास भी संगठन का पैसा है, वह संगठन को वापस कर दें. वैसे तो इस तरह की यह पहली हत्या नहीं है, लेकिन बाकि ट्रांसपोर्टरों को पहली बार चेतावनी दी गई है. टीपीसी संगठन के पैसे से कौन-कौन कोयला कारोबारी बड़ा ट्रांसपोर्टर बन गये, उसके पैसे के बल पर ही बड़े-बड़े कंपनियों को कोयला ट्रांसपोर्ट करने लगे, इस बात की जानकारी न तो टीपीसी ने सार्वजनिक की है और ना ही ट्रांसपोर्टर खुलकर बोलने वाले हैं.. पर जानते बहुत लोग हैं. फर्श से अर्श तक पहुंचने वाले कोल ट्रांसपोर्टरों की लिस्ट छोटी नहीं है. प्रशासन के अफसरों से लेकर बहुत सारे लोगों को इसकी जानकारी है. नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) ने कुछ के खिलाफ़ कार्रवाई भी की. गिरफ्तार कर जेल भी भेजा. कुछ जमानत पर बाहर हैं, तो कुछ अभी भी जेल में ही हैं. लेकिन उग्रवादियों का पैसा बरामद नहीं किया जा सका. वह पैसा ट्रांसपोर्टर के कारोबार में दिन दुना, रात चौगुणा बढ़ता ही चला गया. टीपीसी के संगठन भी कमजोर हो गये. जिसका फायदा उठाते हुए ट्रांसपोर्टरों ने भी चुप्पी साध ली. बहरहाल, अब टीपीसी के उग्रवादियों ने पैसे की वसूली को लेकर हत्या करने तक की दुस्साहस करने लगे हैं. ऐसे में ट्रांसपोर्टरों में डर का माहौल लाज़िमी है. ट्रांसपोर्टरों की मजबूरी यह है कि संगठन का पैसा कारोबार में लगा हुआ है और टीपीसी को चाहिए एकमुश्त वापसी. ट्रांसपोर्टर देना नहीं चाहते. अगर पैसे वापस करते हैं तो तो उनका चलता हुआ कारोबार ठहर जायेगा. और इस कारोबार पर जो वर्चस्व कायम हुआ है, वह ख़त्म हो जायेगा. धमकी के बाद पुलिस के पास तो पहुंचते हैं, लेकिन धमकी की असल वजह बता नहीं पाते. कुल मिलाकर स्थिति यह बन गई है कि आठ-दस साल पहले मलाई की चाहत में कोल ट्रांसपोर्टरों ने जो पैसे बनाये, उसे अब न ही उगलते बन रहा है, ना निगलते. क्योंकि इस दौरान कुछ पैसे तो मैनेज करने में बंटे भी हैं. [wpse_comments_template]