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निजी स्कूलों में कमीशन का खेल शुरू, बच्चों की किताबों, ड्रेस और बस फीस पर मोटा मुनाफा

 Ranchi :  राज्य के निजी स्कूलों में किताब और ड्रेस और बस फीस के नाम पर कमीशन का खेल शुरू हो गया है. किताबों, ड्रेस और बस फीस के नाम पर हर साल लगभग 100 करोड़ रुपये का वारा-न्यारा होता है. किताबों के कमीशन पर 30 करोड़ रुपये चले जाते हैं. वहीं किताब दुकानदार, प्रकाशक और लेखक स्कूल मैनेजमेंट को मोटी रकम देते हैं. नर्सरी से 5वीं तक की किताबों पर 30 फीसदी और 5वीं से 10वीं तक की किताब लेने पर 40 फीसदी कमीशन मिलता है वहीं स्कूल प्रबंधन एक ही ड्रेस की दुकान के साथ टाइ-अप करता है. औसतन पोशाक की कीमत 800 से 1000 रुपये होती है.

किताबें तय करने की कमेटी ही नहीं

किताबें तय करने के लिए अब तक कमेटी नहीं बनी है. नियमतः सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों से पढ़ाने का प्रावधान है, लेकिन स्कूल प्रबंधनों ने इस नियम को ताक में रख दिया है. कई निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की जगह अपने मनपसंद पब्लिकेशन की किताबें चलाई जा रही हैं. डुप्लीकेट किताबें भी बाजार में  : हेल्पबुक के नाम पर एनसीईआरटी की डुप्लीकेट किताबें बाजार में उपलब्ध हैं. इन किताबों में एनसीईआरटी की तर्ज पर टेक्स्ट और जवाब छपे हुए हैं. डुप्लीकेट बुक में एनसीईआरटी का लोगो भी नहीं है. अनियमितता पर 2.50 लाख रुपए दंड का प्रावधान : झारखंड के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन ने बजट सत्र के दौरान सदन में कहा था कि  हर स्कूल में विद्यालय प्रबंध समिति होती है. जिसमें अभिभावक, प्रिंसिपल और शिक्षक होते हैं. अगर यह समिति गड़बड़ी करती है तो डीसी की अध्यक्षता में कमेटी बनी हुई है. जिसमें सांसद और विधायक भी शामिल हैं. गड़बड़ी पाये जाने पर 50 रूपए से 2.50 लाख रुपए तक दंड का प्रावधान है. इसके बाद भी गड़बड़ी पाई जाती है तो स्कूल की मान्यता रद्द कर दी जाती है.

ऐसे समझें बस फीस की गणित

  • 1.25 लाख बच्चे बस से स्कूल जाते हैं.
  • 53 सीटर बस में 75 और 45 सीटर बस में 66 बच्चों को बैठाने की अनुमति है.
  • औसतन बस फीस से हर माह लगभग 6.50 करोड़ रुपये की प्राप्ति होती है.
  • बस ऑनर को प्रति माह 35 से 40 हजार रुपये मिलते है.
  • एक बस से हर माह 43000 रुपये की प्राप्ति होती है.
  • 13000 रुपये स्कूल प्रबंधन को बचते है.
ऐसा है किताबों का गणित
  • कमीशन पर जाते हैं 30 करोड़ रुपये.
  • दुकानदारों को मिलता हैं 40 फीसदी कमीशन.
  • स्कूलों का बनता है 20 फीसदी हिस्सा.
  • एजेंट का बनता है 10 फीसदी कमीशन.
कैसे बढ़ता है अभिभावकों पर बोझ
  • सीबीएसई से संबद्धता प्राप्त 620 स्कूल झारखंड में हैं.
  • वर्ग एक से 12वीं तक दो लाख बच्चे अध्ययन करते हैं..
  • नर्सरी से पांचवीं तक के बच्चे पर औसतन स्टेशनरी सहित 3000 रुपये और पांचवीं से 10वीं तक के बच्चों पर औसतन 5000 रुपये खर्च होते हैं.
  • बीच में और प्रोजेक्ट सहित अन्य किताबों की भी मांग की जाती है.
इन प्रकाशकों की पाइरेटेड किताबें है उपलब्ध
  • आरएस अग्रवाल की मैथ
  • केसी सिन्हा की मैथ
  • एनसीईआरटी की हेल्पबुक
  • साइंस में प्रदीप प्रकाशन की फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ
  • एससी वर्मा की फिजिक्स
  • कांप्रिहेंसिव एबीसी
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