Vivek Mishra
एक सफल लोकतंत्र की कसौटी यह है कि जिस देश में लोकतंत्र है, वहां उसके सभी स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और प्रेस मुस्तैदी से काम करें. लेकिन वर्तमान समय में यह व्यवस्था अपने देश में कैसे काम कर रही है, सबको पता है. लोकतांत्रिक व्यवस्था जो कुल मिलाकर जनमत पर बनती है, इस व्यवस्था को निस्तेज करने की लगातार कोशिश की जा रही है और हमारा रुख तानाशाही की ओर अग्रसर है.
14 महीने की नजरबंदी के बाद भी महबूबा मुफ्ती और उनके परिवार को परेशान किया जा रहा है. अगस्त 2019 में किए गए ऐलान को भाजपा शायद भूल गई है कि – कश्मीर में सबकुछ सामान्य है. अगर महबूबा मुफ्ती की मां गुलशन नजीर विदेशी जमीन पर जाएंगी, तो भारत की एकता और अखंडता को किस तरह का खतरा पहुंचेगा, यह समझना मुश्किल है! आखिर वह कौन सी परिस्थिति थी, जिसमें भाजपा पीडीपी के साथ गठबंधन की थी और तीन साल बाद कौन सी परिस्थिति आयी कि भाजपा को पीडीपी से समर्थन खींच लेना पड़ा? क्या यह गलाकाट राजनीति का सीधा-सादा उदाहरण नहीं था ?
अगर आप यह सोच रहे हैं कि महबूबा मुफ्ती मुसलमान हैं या वे पाकिस्तान को फायदा पहुंचा सकती हैं अथवा आतंकवादी संगठनों के साथ उनकी सांठ-गांठ है, इसलिए उनका और उनकी मां का पासपोर्ट रद्द किया गया है, तो यह गलत सोच है. हमें यह समझना चाहिए कि अगर कोई व्यक्ति कानून के खिलाफ़ जाकर कोई ग़लत काम करता है, तब उसे दोषी माना जाता है और उसपर कार्रवाई की जाती है. ना कि शक के आधार पर या विचारधारा भिन्न होने की वजह से.
कश्मीर घाटी के तमाम नेताओं को नजरबंद करके कुछ दिन पहले वहां चुनाव संपन्न कराया गया था. जब कश्मीर में मुख्यधारा की पार्टियों को आप चुनाव ही नहीं लड़ने देंगे, तब वहां कैसे लोकतंत्र काम करेगा?
भाजपा समर्थक आये दिन अजीबोगरीब तर्क गढ़ते रहते हैं. जिसे सुनकर सिर्फ अफसोस किया जा सकता है. असली सवाल पीछे रह जाता है. सवाल तो अब यह पूछा जाना चाहिए कि क्या कश्मीर के लोग यह फैसला लेने में असमर्थ हैं कि कौन उनका प्रतिनिधित्व करेगा? अगर असमर्थ मान भी लिया जाये तो भी जो बीते साल कश्मीर के साथ बर्ताव हुआ क्या वही मात्र उसका हस्र हो सकता था ? और इसी आधार पर क्या यह भी कहा जा सकता है कि भारत के लोग सही पार्टी का चुनाव करने में असमर्थ हैं, जो देशहित में काम करती हो ?
दरअसल, भाजपा द्वारा इस पूरी टेक्निक को अपनाने के पीछे के कारण का अगर हम मुस्तैदी से निरीक्षण करें तो यह किसी पार्टी या व्यक्ति को एक ऐसे घेरे में कैद कर देने की कवायद है, जिससे उस पार्टी या व्यक्ति की छवि धूमिल होती हो और लोग उसके विषय में बात करना भी गुनाह समझने लगते हों. कांग्रेस पार्टी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. कांग्रेस पर भ्रष्टाचारी मुसलमान परस्त, पाकिस्तान हितैषी, पप्पू की पार्टी जैसे अनेक टैग चिपकाए गए.
दिल्ली में केजरीवाल के साथ जो कुछ हुआ उसे देखककर लोकतंत्र का कोई भी समर्थक स्तब्ध हो सकता है. जीएनसीटीडी विधेयक की सहायता से जनता द्वारा चुनी गई दिल्ली सरकार को बेकाम कर दिया गया. अब दिल्ली सरकार मतलब केजरीवाल नहीं उप-राज्यपाल हो गया है. यह विधेयक सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को जिसमें दिल्ली सरकार से कहा गया था कि उसे रोज के कामकाज में उप-राज्यपाल से सलाह लेने की कोई जरूरत नहीं है, को बेमानी कर दिया है. यह लोकतंत्र पर सीधा हमला है.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.