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पड़ताल : कोरोना की स्याह रात, जिंदगी की जद्दोजहद, एंबुलेंस की कतारें और सांस के लिए भटकते लोग !

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के लिए Saurav Shukla की एक्सक्लुसिव रिपोर्ट

Ranchi : एंबुलेंस की घूमती बत्ती बुधवार की इस स्याह रात के अंधेरे को रह-रह कर चीर देती है. सायरन की आवाज से दिल ऐसा धड़कता है, मानो बैठ ही जायेगा. हवा में बेतहाशा, बेचैनी और घबराहट तारी है. हर शख्स बैचेन है. हर आदमी परेशान. हवा में भरपूर ऑक्सीजन है, लेकिन फेफड़े लाचार हैं. यहां आनेवाला हर आदमी जिंदगी की उम्मीद में आया है. घरवाले दिलासा देते हैं. घबराओ नहीं मां. अस्पताल आ गये हैं. तुम्हें कुछ नहीं होगा. थोड़ी हिम्मत रखो. लेकिन अस्पताल के अंदर जाते ही उम्मीदें टूट जाती हैं. हमारा सामना एक क्रूर सिस्टम से होता है. यहां हर तरफ लाचारी, बेबसी और मौत का मंजर है. यह रांची का सदर अस्पताल है.

अस्पताल के पहले तल्ले पर रांची के चुटिया कृष्णापुरी के रहने वाले परिजन ऑक्सीजन का सिलेंडर लिये हांफते-हांफते सीढ़ियां चढ़ते दिखते हैं. तीसरे तल्ले पर कोविड वार्ड का मंजर देख कलेजा कांप जाता है. एक बुजुर्ग कुर्सी पर बैठे हैं. उन्हें ऑक्सीजन दी जा रही है. कुर्सी पर इसलिए हैं, क्योंकि अस्पताल में बेड की कमी है. बमुश्किल सांस ले रहे उस बुजुर्ग की आंखों में तैरता मौत का खौफ हमारे दिलों तक उतर जाता है.

बेड नहीं मिला तो चेयर को ही बना डाला बेड

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सदर अस्पताल में कुर्सी पर इलाज कराता मरीज

सदर अस्पताल में जीने की उम्मीद लेकर आये कांके बुकरु के एक मरीज को जब बेड नहीं मिला, तो किसी तरह ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था की गयी. कुर्सी को ही बेड बनाकर ऑक्सीजन दिया जाने लगा.

हाथ में स्लाइन पकड़े हैं परिजन

सदर अस्पताल राजधानी रांची का दूसरा सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है. आये दिन यहां स्वास्थ्य मंत्री, स्वास्थ्य सचिव और उपायुक्त दौरा करते हैं.

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हाथ में स्लाइन की बोतल लिए खड़ी मरीज की परिजन

यहां बदइंतजामी का आलम यह है कि मरीज के परिजन स्लाइन की बोतल थामे बैठे हैं. इसकी तस्वीर लगातार.. के पास है. जब एक कोविड मरीज को स्लाइन देने की जरूरत पड़ी, तो एक परिजन हाथ में स्लाइन पकड़ कर खड़ी हो गयी.

न ट्रॉलीमैन, न कोई ऑक्सीजन बदलने वाला

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खुद ही ऑक्सीजन की सिंलेडर लेकर जाता परिजन, ताकि अपनों की जान बचा सके

सदर अस्पताल में दर्जनों मरीजों के परिजन आरोप लगाते मिले कि अस्पताल में न तो ट्रॉली मैन है और न ही ऑक्सीजन लगाने वाले एक्सपर्ट. परिजन खुद ही ऑक्सीजन लाते हैं और सिलेंडर बदलने वाले को ढूंढते हैं कि वह आकर लगा दे. ऑक्सीजन लगाने वाले की कृपा नहीं हुई, तो खुद से मरीज का ऑक्सीजन भी बदलना पड़ता है.

एक डॉक्टर के भरोसे 120 कोरोना मरीज

सदर अस्पताल का कोविड बिल्डिंग अव्यवस्था, या यूं कहें कि कुव्यवस्था की तस्वीर बन चुका है. रांची के आकाश ने कहा कि उनके मरीज की स्थिति बिगड़ती जा रही है, लेकिन डॉक्टर ध्यान नहीं देते. यहां 120 मरीजों की जिंदगी एकमात्र डॉक्टर के भरोसे पर है. बहुत आरजू-मिन्नत करने के बाद डॉक्टर किसी मरीज को देखने का एहसान कर देते हैं.

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सदर अस्पताल में कोरोना मरीज के दम तोड़ने के बाद की तस्वीर

हरमू के सुमित के मरीज विजय प्रसाद यहां भर्ती हैं. उनका कहना है कि रात में वार्ड में डॉक्टर और नर्स नहीं रहते. ट्रॉली मैन और व्हीलचेयर भी नहीं है. बदइंतजामी के कारण एक मरीज की मौत भी हो गयी है.

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कोरोना मरीज को सदर अस्पताल में कुर्सी पर बैठाकर ही ऑक्सीजन दिया जा रहा था

ऑक्सीजन के पास रख दिया संक्रमित का शव

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कोरोना मरीज के डेड बॉडी रखी हुई जगह पर दिया जा रहा ऑक्सीजन सिलिंडर

सदर अस्पताल के कोविड वार्ड में जहां मरीजों को ऑक्सीजन सिलेंडर दिया जा रहा था, वहीं एक कोरोना संक्रमित का शव भी रखा था. ऐसी तस्वीरें मजबूत से मजबूत दिल के इंसान को भी विचलित कर देती हैं.

शासक एसी में सो रहे थे, प्रजा जिंदगी से जंग लड़ रही थी

लगातार. इन के संवाददाता ने सदर अस्पताल में करीब 3 घंटे बिताये और यहां का हाल देखा. लोगों को मौत से लड़ते देखना कभी भी एक अच्छा अनुभव नहीं होता है. लेकिन अगर लोग इलाज, संसाधनों और इच्छाशक्ति के अभाव में दम तोड़ रहे हों, तो विचलित कर देता है.
आधी रात को जब व्यवस्था के जिम्मेदार लोग अपने ठंडे एसी कमरों में सो रहे हैं, हजारों लोग जिंदगी से जंग लड़ रहे हैं.

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सदर अस्पताल में लगातार कोरोना मरीजों को लेकर पहुंच रहे एंबुलेंस

कुछ अपनी हिम्मत और किस्मत से इस जंग में जीत जायेंगे, पर शायद कुछ लोग इतने खुशनसीब नहीं होंगे. एक और एंबुलेंस का सायरन बज रहा है. कोई और जिंदगी की उम्मीद लेकर यहां आया है. मैं सौरभ शुक्ला ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि उसकी उम्मीद पूरी हो.

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