Lagatar Desk: नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मीडियाकर्मियों को कोरोन योद्धा का दर्जा देने की मांग की है. एनयूजे-आई के अध्यक्ष रास बिहारी ने इस बारे में पीएम को को एक पत्र भेजा है. उनका कहना है कि देशभर में कोविड-19 से संक्रमित मीडियाकर्मियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. आर्थिक तौर पर कमजोर होने के कारण बड़ी संख्या में पत्रकार उचित इलाज नहीं करा पा रहे हैं.
प्रधानमंत्री को पत्र के माध्यम से जानकारी दी है कि इटंरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स से संबंद्ध, नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) की राज्य इकाइयां, अपने-अपने स्तर पर राज्यों में मीडियाकर्मियों को कोरोना योद्धा का दर्जा दिलाने के लिए अनुरोध कर रही हैं. राजस्थान सरकार ने पत्रकारों को कोरोना योद्धा का दर्जा देते हुए 50 लाख की सहायता देने की घोषणा की है.
एनयूजे-आई की तरफ से कहा गया है कि पिछले एक वर्ष से जारी कोरोना महामारी के प्रकोप के दौरान डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिस और प्रशासन और अन्य सरकारी विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों की तरह ही मीडियाकर्मी भी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं. जनता को महामारी से बचने के उपायों की जानकारी देने के साथ ही तमाम सूचनाएं उपलब्ध करा रहे हैं. कोरोना महामारी से देशवासियों को बचाने और उपचार के तरीके बताने में मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. मीडियाकर्मी अपने दायित्व का निर्वाह करते हुए प्रशासनिक खामियों को सरकार और जनता के सामने लाते हैं, ताकि समय रहते हुए सुधार किया जा सके.
आर्थिक संकट से गुजर रहा है कई मीडियाकर्मियों का परिवार, हजारों हुए बेरोजगार
रास बिहारी ने पीएम को लिखे पत्र में कहा है कि कोरोना महामारी के कारण पिछले दो सप्ताह में देशभर में लगभग 200 पत्रकारों की जान जाने के समाचार मिले हैं. पिछले वर्ष बड़ी संख्या में पत्रकार कोरोना का शिकार हुए थे. कई वरिष्ठ पत्रकारों की कोरोना के कारण मृत्यु हुई है. पत्रकारों के निधन के बाद उनके परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. कई परिवार भुखमरी के कगार पर हैं. उन्होंने पत्र में लिखा है कि कोरोना काल में तमाम अखबारों और चैनलों से बड़ी संख्या में पत्रकारों को नौकरी से निकाला गया है.
एक जानकारी के अनुसार, 50 हजार से ज्यादा मीडियाकर्मी इस दौरान बेरोजगार हुए हैं. बड़ी संख्या में मध्यम और लघु समाचार पत्र बंद हो रहे हैं. आर्थिक तौर पर कमजोर अखबारों और चैनलों के लिए भी केंद्र और राज्य सरकारों को आर्थिक सहयोग के लिए विचार करने की आवश्यकता है.