Deoghar : बाबा मंदिर परिसर बसंत पंचमी पर बिहार के मिथिलांचल से आए तिलकहरुओं से खचाखच भरा है. 26 दिसंबर को बाबा भोलेनाथ का तिलक होगा तथा महाशिवरात्रि के दिन विवाह. इस अवसर पर बाबा भोलेनाथ की विशेष पूजा होगी. देवघर में हर वर्ष तीन मेले का आयोजन किया जाता है. भादो मेला, शिवरात्रि और बसंत पंचमी का मेला. बसंत पंचमी मेला सिर्फ अढ़ाई दिनों की होती है तथा ज्यादातर श्रद्धालु या कांवड़िए बिहार के मिथिलांचल से आते हैं. दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, समस्तीपुर समेत मिथिलांचल के अन्य जिलों के कांवड़ियों की भीड़ उमड़ पड़ती है. कांवड़िए बांस से बने कांवर लेकर आते हैं.

त्रेयायुग से चली आ रही परंपरा
परंपरा अनुसार तिलकोत्सव के अवसर पर मिथिलावासी बाबा भोलेनाथ को अपने खेत में उपजी धान की बाली, घर में तैयार घी, गुलाल और बेसन का लड्डू अर्पित कर तिलकोत्सव का रस्म पूरा करते हैं. इसके बाद एक दूसरे को गुलाल लगाकर तिलकोत्सव की खुशियां बांटते हैं. तलकोत्सव के बारे में बताया जाता है कि यह परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है. ऋषि-मुनि भी तिलकोत्सव में भाग लेने आते थे. मिथिलावासी भी त्रेता युग से ही इस परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं.
खुद को हिम राजा की प्रजा मानते हैं मिथिलावासी
मिथिलांचल जिसे तिरहुत के नाम से भी जाना जाता है, हिमालय की तराई में बसा है. यहां के लोगों का मानना है कि हमलोग हिम राजा के प्रजा हैं तथा पार्वती हिमालय की बेटी है. इस तरह मिथिलावासी खुद को कन्या पक्ष वाले मानते हैं. बसंत पंचमी के दिन तिलक चढ़ाकर महाशिवरात्रि के दिन (फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी) बारात लेकर आने का न्योता दिया जाता है. उस दिन शिव और पार्वती वैवाहिक बंधन में बंधते हैं. पार्वती हिमालय की बेटी है, इसलिए उस परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है. बाबा भोलेनाथ की पूजा कर तिलकहरुए घर लौट जाते हैं.
बसंत पंचमी को देखते हुए बाबा मंदिर परिसर और आसपास के इलाके में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है. कतारबद्ध होकर श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश करेंगे. शीघ्र दर्शनम कूपन का शुल्क पूर्ववत 250 रुपए ही है.

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